अपडेटेड 3 September 2025 at 07:43 IST

Parivartini Ekadashi Vrat Katha: रवि योग में परिवर्तिनी एकादशी व्रत आज, जरूर पढ़ें ये व्रत कथा; मिलेगा अश्वमेध यज्ञ जितना फल

Parivartini Ekadashi Vrat Katha: आज रवि योग में परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। अब ऐसे में जो जातक इस दिन व्रत रख रहे हैं, उन्हें कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। आइए इस लेख में व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Parivartini Ekadashi Vrat Katha
Parivartini Ekadashi Vrat Katha | Image: Freepik

Parivartini Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में सभी एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सकती है और जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर हो सकती है और व्यक्ति का भाग्योदय हो सकता है। इतना ही नहीं, इस दिन जो व्यक्ति व्रत कथा सुनता और पढ़ता है, उसे अश्वमेध यज्ञ जितने फल की प्राप्ति होती है। अब ऐसे में आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद त्रिपाठी से विस्तार से व्रत कथा के बारे में जानते हैं।

आज परिवर्तिनी एकादशी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा

भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत के साथ भगवान विष्णु के परम भक्त राजा बलि की कथा अवश्य सुननी चाहिए। त्रेतायुग में बलि नामक एक पराक्रमी दैत्यराज था। वह महान विष्णु भक्त था और प्रतिदिन यज्ञ, व्रत तथा ब्राह्मणों की सेवा करता था। लेकिन उसे देवताओं के राजा इंद्र से द्वेष था। अपनी शक्ति के बल पर उसने इंद्र समेत समस्त देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।इंद्र और अन्य देवता भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे।

तब श्रीहरि ने वामन अवतार धारण किया। वे ब्राह्मण बालक का रूप लेकर बलि के यज्ञ मंडप में पहुंचे और दान में केवल तीन पग भूमि मांगी। 

बलि ने उन्हें सामान्य बालक समझकर वचन दे दिया।फिर भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे में पूरा स्वर्ग लोक। अब तीसरा पग रखने को स्थान नहीं बचा, तो बलि ने विनम्र होकर अपना सिर आगे कर दिया। भगवान ने तीसरा पग उसके सिर पर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया, लेकिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि वे सदैव उसके पास रहेंगे।

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इसी कारण भाद्रपद शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु की मूर्ति बलि के आश्रम में स्थापित की गई। इस दिन व्रत रखने और कथा सुनने से हजारों अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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Published By : Aarya Pandey

पब्लिश्ड 3 September 2025 at 07:43 IST