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अपडेटेड September 30th 2024, 07:48 IST

Masik Shivratri 2024: मासिक शिवरात्रि आज, पूजा में करें शिव चालीसा का पाठ; भोलेनाथ हो जाएंगे खुश

Masik Shivratri 2024: आज मासिक शिवरात्रि मनाई जा रही है। ऐसे में अगर आपने भी इसका व्रत रखा है तो आपको पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।

Reported by: Kajal .
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Maha Shivratri
मासिक शिवरात्रि 2024 | Image: X

Masik Shivratri 2024 Shiv Chalisa: हिंदू धर्म नें भगवान शिव को एक विशेष स्थान प्राप्त है। कहते हैं कि अगर एक बार भोले की कृपा किसी पर पड़ गई तो वह उसकी हर दुख-परेशानी का नाश कर उसके जीवन को खुशियों से भर देते हैं। वहीं, हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मास शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। इस महीने ये तिथि आज यानी 30 सितंबर को है। यानी कि आज मासिक शिवरात्रि मनाई जा रही है।

मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन भगवान शिव के लिए व्रत कर विधि विधान से उनकी पूजा करता है, भगवान उसे मनचाहा फल देते हैं। शिवरात्रि की तरह ही मासिक शिवरात्रि के दिन भी भगवान शिव के लिए व्रत रखा जाता है और उनकी पूजा की जाती है। ऐसे में अगर आप भी मासिक शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा कर रहे हैं तो आपको पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होकर आपके जीवन को सुख समृद्धि और शांति से भर देंगे। तो चलिए जानते हैं शिव चालीसा के पाठ के बारे में।

शिव चालीसा (Shiv Chalisa ka path)

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाए।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र होन कर इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

दोहा

बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार।

तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय।

दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥

कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सिर्फ अलग-अलग सूचना और मान्यताओं पर आधारित है। REPUBLIC BHARAT इस आर्टिकल में दी गई किसी भी जानकारी की सत्‍यता और प्रमाणिकता का दावा नहीं करता है।

पब्लिश्ड September 30th 2024, 07:48 IST