अपडेटेड 12 November 2025 at 10:07 IST
Kaal Bhairav Jayanti 2025 Vrat Katha: आज कालभैरव जयंती के दिन इस कथा के बिना अधूरी है पूजा, यहां पढ़ें
Kaal Bhairav Jayanti 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में कालभैरव बाबा की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। कालभैरव बाबा भगवान शिव का रौद्र स्वरूप हैं। अब ऐसे में इस दिन व्रत कथा पढ़ने की मान्यता है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
- धर्म और अध्यात्म
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Kaal Bhairav Jayanti 2025 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के हिसाब से हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालभैरव जयंती मनाने की मान्यता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव बाबा की पूजा-अर्चना करने का विधान है। यह दिन सभी प्रकार के भय, नकारात्मकता और ग्रह दोषों से मुक्ति दिलाता है। कालभैरव देव को समय का स्वामी और न्याय का संरक्षक कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत और पूजा करने के साथ-साथ, उनकी जन्म कथा का पाठ या श्रवण किए बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है। अब ऐसे में अगर आप कालभैरव जयंती के दिन पूजा-पाठ कर रहे हैं तो व्रत का पढ़ने का विशेष विधान है। आइए इस लेख में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
कालभैरव जयंती के दिन पढ़ें ये व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं के बीच यह विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें से सबसे श्रेष्ठ कौन है? इस प्रश्न के समाधान के लिए एक विशाल सभा बुलाई गई, जिसमें सभी देवताओं और ऋषियों ने भाग लिया। विचार-विमर्श के बाद, अधिकांश देवताओं ने भगवान शिव को सर्वश्रेष्ठ माना। भगवान विष्णु ने इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया, लेकिन ब्रह्मा जी अहंकार से भर गए और उन्होंने इस निर्णय का विरोध किया। ब्रह्मा जी ने क्रोधित होकर भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना शुरू कर दिया। उनके अहंकारपूर्ण व्यवहार से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे। महादेव का यह क्रोध इतना विकराल था कि इसी क्रोध से एक अत्यंत भयंकर और रौद्र रूप प्रकट हुआ। यह रूप भयानक, विशाल और दंडात्मक था, जिनके एक हाथ में छड़ी थी और उनका वाहन काला कुत्ता था। यही स्वरूप भगवान कालभैरव कहलाया। भगवान शिव के इस रुद्र रूप को देखकर सभी देवता भयभीत हो गए। कालभैरव ने क्रोध में आकर अपने त्रिशूल से या अपने नाखून से, ब्रह्मा जी के जिस मुख ने शिव का अपमान किया था, उस अहंकार भरे पांचवें मुख को काट दिया। इस घटना के बाद, ब्रह्मा जी के केवल चार मुख ही रह गए।
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कालभैरव बाबा कैसे बनें काशी के कोतवाल?
ब्रह्मा जी का सिर काटने के कारण, कालभैरव पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। यह दोष निवारण के लिए उन्हें कई वर्षों तक भिखारी के रूप में भटकना पड़ा। वे भटकते हुए मोक्ष की नगरी काशी पहुंचे। काशी में पहुंचते ही, उनके हाथ से ब्रह्मा जी का वह कटा हुआ सिर तुरंत अलग हो गया और वे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गए। उनकी इस भक्ति और त्याग को देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए।
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भगवान शिव ने कालभैरव को काशी नगरी का कोतवाल बना दिया और उन्हें कथा कि कालभैरव को यह अधिकार दिया जाता है कि उनके अनुमति के बिना कोई भी काशी में प्रवेश नहीं कर सकता है। तभी से, भगवान कालभैरव काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि बिना कालभैरव के दर्शन किए काशी की यात्रा पूर्ण नहीं होती।
कालभैरव बाबा की पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अहंकार सभी पापों का मूल है, और भगवान कालभैरव इसी अहंकार का नाश करते हैं।
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Published By : Ankur Shrivastava
पब्लिश्ड 12 November 2025 at 10:07 IST