अपडेटेड September 5th 2024, 16:42 IST
Haritalika Teej Vrat Katha: मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाने वाला हरतालिका तीज का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही खास और महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और विधिवत पूजा अर्चना करती हैं, लेकिन अगर इस व्रत में कथा का पाठ न किया जाए, तो कितने भी विधि-विधान से इस व्रत को कर लो यह पूरा नहीं होगा। क्योंकि हरतालिका तीज व्रत की कथा खुद भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी। आइए जानते हैं इस व्रत में कौन सी कथा पढ़नी चाहिए।
दरअसल, हिंदू धर्म में कोई भी पूजा-पाठ बिना कथा के अधूरा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कथा का पाठ किए या सुनें बिना धार्मिक कार्य पूरा नहीं होता है। वहीं अगर बात सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माने जाने वाले हरतालिका तीज के व्रत का हो तो कथा बहुत ही जरूरी है। अगर आपने भी हरतालिका तीज का व्रत रखा है, तो पूजा के समय इसकी कथा पढ़ना या सुनना न भूलें।
पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान शंकर माता पर्वती और सभी गणों के साथ विराजमान थे। तभी मां गौरा जी ने शिव जी से एक प्रश्न करते हुए पूछा, हे महेश्वर मेरे बड़े सौभाग्य हैं, जो आप मुझे पति रूप में मिले हैं, लेकिन क्या मैं जान सकती हूं कि मैंने वह कौन सा पुण्य किया है, जिसकी वजह से आपने मेरा वरण किया। आप कृपा कर मुझे मेरे उस पुण्य के बारे में बताएं।
माता पार्वती की ऐसी प्रार्थना सुनकर शंकर जी बोले, प्रिय तुमने अति उत्तम पुण्य किया था, जिसकी वजह से तुमने मुझे पति स्वरुप प्राप्त किया है। वह अति गुप्त व्रत है, लेकिन मैं तुम्हें इसके बारे में बताता हूं। शिव जी ने कहा, गौरी तुमने भादो माह के शुक्ल पक्ष की तीज का व्रत किया था, जो हरतालिका तीज व्रत के नाम से जाना जाता है। यह व्रत इतना श्रेष्ठ होता है जैसे तारों में चंद्रमा, नवग्रहों में सूर्य, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में साम, इंद्रियों में मन होता है। ऐसा सुनकर माता पार्वती ने आगे पूजा कि प्रभू मैंने कब और कैसे तीज का व्रत किया था? विस्तार से सुनने की इच्छा है।
माता पार्वती के इतना कहने पर शिव जी से बोले भाग्यवान उमा-भारतवर्ष के उत्तर में हिमाचल श्रेष्ठ पर्वत है और उसके राजा हिमाचल हैं और उनकी पत्नी भाग्यवती रानी मैना देवी। तुमने राजा हिमाचल और रानी मैना देवी की पुत्री के रूप में जन्म लिया था। तुम बचपन से ही मेरी आराधना करती थी। कुछ उम्र बढ़ने पर तुमने सहेली के साथ जाकर हिमालय की गुफाओं में मुझे पाने के लिए कठोर तप किया। जंगल में रहकर विकट परिस्थितियों में आंधी, तूफान, बारिश को सहन किया। अन्न और जल का त्याग कर दिया। यहां तक कि कई बार सूखे पत्तों को खाया। जीवन की कठिन परिस्थितियां भी तुम्हें अपने पथ से नहीं हटा पाईं। यह सब देखकर आपके पिता दुखी हो गए।
राजा हिमाचल को दुखी देखकर नारद जी उनके पास गए और कहा कि भगवान विष्णु ने उनको भेजा है। वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में आपका विचार जानना चाहते हैं। इस बात को सुनकर तुम्हारे पिता खुश हो गए। उनको इस बात पर कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन जब तुम्हें इस बारे में पता चला तो तुम दुखी हो गईं। तुमने अपनी एक सहेली को अपने दुख का कारण बताया और उससे कहा कि सच्चे मन से शिव का वरण किया है, ऐसे में पिता ने उनका विवाह विष्णु जी से तय कर दिया। इस धर्मसंकट में प्राण त्यागने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
तुम्हारी बातें सुनने के बाद वह सहेली तुम्हें लेकर एक घनघोर वन में चली गई और एक गुफा में छिपा दिया, ताकि तुम्हारे पिता यानी राजा हिमाचल तुम्हें खोज न पाएं। तुम्हारे पिता तुम्हें न पाकर दुखी थे और लगातार तुम्हारी खोज करते रहे। तुमने जंगल में रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। वहां पर कठोर तपस्या करने लगी। देवी तुमने हजारों वर्ष तक जप, तप, उपवास किया। जिससे प्रसन्न होकर मैंने वर मांगने को कहा। तब तुमने कहा कि यदि आप तप से प्रसन्न हैं तो आप मुझे पति के रूप में प्राप्त हों। तब मैंने तुम्हें मनोकामना पूर्ति का वरदान दिया।
इस घटना के बाद जब राजा हिमाचल जंगल पहुंचे। तब तुमने सारा वृतांत उनको सुनाया और तुमने कहा कि शिव से विवाह होगा, तभी घर जाएंगी। इस पर राजा हिमाचल और तुम्हारे पिता सहमत हो गए। फिर उन्होंने विधि विधान से शिव और पार्वती का विवाह कराया, जिसके बाद से भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को जो भी महिला इस व्रत को पूरे मन से विधिपूर्वक करती हैं, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
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पब्लिश्ड September 5th 2024, 16:42 IST