अपडेटेड 26 December 2025 at 12:07 IST
Guru Gobind Singh Ji 5Ks Vision: गुरु गोबिंद सिंह के बनाए सिख धर्म के पांच ककार का क्या है महत्व? जिसने बदल दिया इतिहास
Guru Gobind Singh Ji 5Ks Vision : सिख इतिहास में साल 1699 की बैसाखी एक युगांतरकारी घटना थी, जब दशमेश पिता गुरु गोबिंद सिंह जी ने 'खालसा पंथ' की स्थापना कर सिखों को एक नई और विशिष्ट पहचान दी। गुरु साहिब ने हर अमृतधारी सिख के लिए 'पांच ककार' को अनिवार्य किया, जो केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान, अनुशासन और वीरता का दर्शन हैं।
- धर्म और अध्यात्म
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Guru Gobind Singh Ji 5Ks Vision : सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व एक ऐसे सूर्य के समान है, जिसने न केवल आध्यात्मिक प्रकाश फैलाया, बल्कि समाज को निर्भयता और स्वाभिमान का पाठ भी पढ़ाया। साल 1699 की बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में 'खालसा पंथ' की स्थापना कर उन्होंने एक ऐसी कौम तैयार की, जो अन्याय के खिलाफ ढाल बनकर खड़ी हुई। इस क्रांतिकारी बदलाव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पांच ककार हैं।
ये केवल धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, बल्कि एक सिख के जीवन के अनुशासन, शक्ति और नैतिकता का आधार हैं। आइए इस लेख में विस्तार से इन पांच ककारों के बारे में और उसके अर्थ को जानते हैं।
केश है अध्यात्म का प्रतीक
गुरु साहिब ने सिखों को केश न काटने का आदेश दिया। केश को ईश्वर की दी हुई देन माना जाता है। यह मनुष्य की स्वाभाविकता और ऋषि-मुनियों जैसी उच्च आध्यात्मिक अवस्था का प्रतीक है। केश रखने का अर्थ है, ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करना और अपने अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ न करना।
कंघा अनुशासन और सफाई का प्रतीक
केशों को संवारने के लिए कंघा अनिवार्य है। जहां केश आध्यात्मिकता का प्रतीक हैं, वहीं कंघा 'स्वच्छता' और 'व्यवस्था' का संदेश देता है। यह सिखाता है कि जिस प्रकार कंघा बालों की उलझनें सुलझाता है, उसी प्रकार एक सिख को अपने मन और विचारों की उलझनों को सुलझाकर अनुशासित जीवन जीना चाहिए।
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कड़ा है संयम और अटूट विश्वास का प्रतीक
दाहिने हाथ की कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का कड़ा 'अकाल पुरख' अनंतता का प्रतीक है, जिसका न कोई आदि है और न अंत। यह कड़ा सिख को याद दिलाता है कि वह गुरु का हाथ पकड़कर चलें।
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कछैरा है चरित्र और सतर्कता का प्रतीक
कछैरा अच्छे चरित्र का प्रतीक है। उस दौर के लंबे और ढीले वस्त्रों के अलावा , कछैरा युद्ध के मैदान में फुर्ती और गतिशीलता के बारे में दर्शाता है। यह धर्म की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहने की प्रेरणा देता है।
कृपाण है न्याय की तलवार का प्रतीक
कृपाण शब्द 'कृपा' और 'आन' यानी कि मर्यादा से मिलकर बना है। यह जुल्म के खिलाफ उठने वाली शक्ति का प्रतीक है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने स्पष्ट किया था कि कृपाण का उपयोग किसी को डराने के लिए नहीं, बल्कि निर्बलों की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए किया जाना चाहिए।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 26 December 2025 at 12:07 IST