अपडेटेड 26 September 2025 at 09:54 IST
शरीर के हर अंग से किसी न किसी देवी का नाता... नवरात्रि में माता के नौ स्वरूप और मां के गर्भ में शिशु के नौ महीने के बीच क्या है संबंध?
Navratri 2025: हर स्त्री के जीवन में मां बनना एक ऐसा अद्भुत मोड़ है, जो सिर्फ शरीर को ही नहीं बदलता, बल्कि आत्मा को एक नई शक्ति, एक नया रूप देता है। यह सिर्फ नौ महीने की अवधि नहीं है, यह एक तपस्या, एक त्याग, और सबसे बढ़कर, एक जागरूकता की यात्रा है।
- धर्म और अध्यात्म
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Navratri 2025: हमारे धर्मशास्त्रों में, शक्ति और ऊर्जा की प्रतीक देवी नवदुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों का वर्णन है। यह एक गहरा आध्यात्मिक सत्य है कि जब एक स्त्री मातृत्व की अलौकिक यात्रा पर निकलती है, तो उसके भीतर भी ये नौ देवियाँ जागृत होती हैं। यह केवल नौ महीने का शारीरिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि उसके आत्मबल और स्त्री शक्ति का एक नया, तेजस्वी रूप है।
जिस तरह नवरात्रि में देवी की पूजा होती है, उसी प्रकार गर्भधारण के पहले महीने से लेकर नौवें महीने तक, मां अपने बच्चे का पालन-पोषण करते हुए एक महान तपस्या से गुजरती है।
आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पहला महीना (शैलपुत्री)
यह दृढ़ता और स्थिरता का समय है। जिस तरह शैलपुत्री अटल हैं, मां के भीतर एक नए जीवन की नींव पड़ती है और वह इस यात्रा के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करती है।
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दूसरा महीना (ब्रह्मचारिणी)
शुरुआती असहजता, जी मिचलाना और शारीरिक बदलाव एक तपस्या के समान होते हैं। यह संयम, त्याग और दृढ़ संकल्प को जाग्रत करता है।
तीसरा महीना ( चंद्रघंटा)
आने वाली बड़ी जिम्मेदारी और बदलाव का डर हो सकता है, लेकिन चंद्रघंटा की तरह स्त्री अपने भीतर साहस और निर्भीकता को स्थापित करती है, हर चुनौती का सामना करने की शक्ति जुटाती है।
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चौथा महीना (कूष्मांडा)
यह बच्चे के तीव्र विकास का समय है। मां अपने गर्भ में पूरे ब्रह्मांड को धारण करने वाली शक्ति का अनुभव करती है।
पांचवां महीना (स्कंद माता)
यह वह चरण है जब ममता और वात्सल्य का भाव अपने चरम पर होता है। मां का मन बच्चे के लिए गहरे स्नेह और अपनत्व से भर जाता है, जो देवी स्कंदमाता के प्रेम का प्रतीक है।
छठा महीना (कात्यायनी)
शरीर में हो रहे बड़े बदलावों और प्रसव की चुनौतियों के लिए हिम्मत और शक्ति का जागरण होता है। मां कात्यायनी की तरह खुद को मजबूत और सक्षम महसूस करती है।
सातवां महीना (कालरात्रि)
यह समय अक्सर बेचैनी और नींद की कमी वाला होता है। कालरात्रि यानी हर मुश्किल से लड़कर उम्मीद को थामे रखना। मां अपने मन में शांति बनाए रखती है और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करती है।
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आठवां महीना (महागौरी)
नौ महीने पूरे होने के करीब, एक शांति, शुद्धता और निर्मलता का अनुभव होता है। जैसे महागौरी पवित्रता का प्रतीक हैं, मां का मन प्रसव की तैयारी और निर्मल स्नेह से भर जाता है।
नौवां महीना (सिद्धिदात्री)
यह पूर्णता का महीना है। इस महीने में, मां अपनी नौ महीने की तपस्या को पूर्ण करके, एक नए जीवन को जन्म देने की सबसे बड़ी सिद्धि प्राप्त करती है।
Published By : Aarya Pandey
पब्लिश्ड 25 September 2025 at 09:10 IST