अपडेटेड 17 October 2025 at 20:08 IST

Dhanteras 2025 Katha: इस कथा के बिना अधूरी है धनतेरस की पूजा, घर की तिजोरी हमेशा भरी रहेगी

Dhanteras 2025 Katha: धनतेरस के दिन धनवंतरी देवता की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। इस दिन कथा पढ़ने की मान्यता है। आइए इस लेख में कथा के बारे में जानते हैं। जिससे आपके घर कभी भी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आएगी।

Dhanteras 2025 Katha
Dhanteras 2025 Katha | Image: Meta AI
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Dhanteras 2025 Katha: हिंदू पंचांग के हिसाब से कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का त्योहार मनाने की परंपरा है। ये त्योहार पंच दिवसीय होता है और इसका आरंभ धनतेरस के दिन से आरंभ होता है। इस दिन धन्वंतरी और कुबेर देवता के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो सकती है। अब ऐसे में इस दिन कथा पढ़ने का विशेष विधान है। इसके बिना धनतेरस की पूजा अधूरी मानी जाती है।

धनतेरस की पूजा में पढ़ें भगवान धन्वंतरि की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक युग ऐसा भी आया जब तीनों लोक में देवताओं की शक्ति क्षीण पड़ गई। दानवों और राक्षसों के प्रकोप से पराजित होकर देवगण अपना राज्य, ऐश्वर्य और यहां तक कि अपनी अमरता भी गँवा चुके थे। इस संकट की घड़ी में, सृष्टि के पालनहार, भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ एक संधि करने और 'समुद्र मंथन' करने का अलौकिक सुझाव दिया। समुद्र की गहराइयों से 'अमृत' निकालना, जिसे पीकर देवता अपनी शक्ति और अमरत्व पुनः प्राप्त कर सकें।

भगवान विष्णु के मार्गदर्शन में, देवताओं और दानवों ने मिलकर महासागर में मंथन शुरू किया। इस कार्य के लिए, विशाल मंदराचल पर्वत को मथानी और सर्पों के राजा, महानाग वासुकी को रस्सी बनाया गया। यह मंथन एक अत्यंत कठिन और लंबी प्रक्रिया थी।

जैसे-जैसे मंथन आगे बढ़ा, समुद्र से एक-के-बाद-एक अद्भुत और अनमोल वस्तुएं प्रकट होने लगीं, जिन्हें 'चौदह रत्न' कहा गया। सबसे पहले, 'कालकूट' नामक अत्यंत भयानक विष निकला, जिसकी ज्वाला से पूरी सृष्टि जलने लगी। तब 'देवों के देव महादेव' शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर सृष्टि को महाविनाश से बचाया।

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इसके बाद, कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, इच्छापूर्ति करने वाला कल्पवृक्ष, स्वर्ग की अप्सराएं और धन-संपदा की देवी, महालक्ष्मी स्वयं प्रकट हुईं। यह महामंथन चलता रहा और कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी के शुभ दिवस पर, एक अत्यंत तेजस्वी और भव्य पुरुष, अपने हाथों में अमृत से भरा हुआ स्वर्ण कलश लेकर समुद्र से बाहर आए। ये स्वयं भगवान धन्वंतरि थे।

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वे चतुर्भुज थे, जिनके चारों हाथों में शंख, चक्र, अमूल्य औषधियां और अमृत से परिपूर्ण मंगल कलश सुशोभित था। उनका संपूर्ण शरीर ऐसे दैवीय तेज से दमक रहा था, मानो हजारों सूर्य एक साथ उदय हो गए हों।

भगवान धन्वंतरि हैं आयुर्वेद के जनक

भगवान धन्वंतरि को 'भगवान विष्णु का अंशावतार' और सम्पूर्ण चिकित्सा विज्ञान, यानी 'आयुर्वेद का जनक' माना जाता है। उनके प्राकट्य के साथ ही, संसार को उत्तम स्वास्थ्य और रोग-मुक्ति के अमूल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। उनके हाथ में थमा 'अमृत कलश' अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और रोगों से मुक्ति का शाश्वत प्रतीक बना। देवताओं ने इसी अमृत को पीकर अपनी खोई हुई अमरता और शक्ति को फिर से प्राप्त किया।

Published By : Aarya Pandey

पब्लिश्ड 17 October 2025 at 20:08 IST