अपडेटेड 1 June 2025 at 20:51 IST
छिपकली को तो हम सभी ने कभी न कभी अपने घरों या दीवारों पर रेंगते देखा ही होगा। लेकिन क्या आपने गौर किया है कि जब छिपकली को खतरे का अहसास होता है, तो वह अक्सर अपनी पूंछ छोड़कर भाग जाती है? दरअसल, यह उसका एक प्राकृतिक बचाव तंत्र है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में "ऑटोटॉमी (Autotomy)" कहा जाता है। जब छिपकली को कोई शिकारी पकड़ने की कोशिश करता है, तो वह जानबूझकर अपनी पूंछ तोड़ देती है। टूटी हुई पूंछ कुछ समय तक हिलती-डुलती रहती है, जिससे शिकारी का ध्यान भटकता है और छिपकली को भागने का मौका मिल जाता है। यह उसकी रक्षा प्रणाली का एक अनोखा तरीका है।
छिपकली की पूंछ केवल खतरे के समय ही नहीं टूटती। कई बार पूंछ में संक्रमण, चोट या अंदरूनी बीमारी के कारण भी पूंछ टूट जाती है। कुछ मामलों में यह टूटना शरीर की मरम्मत प्रणाली का हिस्सा होता है, और समय के साथ पूंछ दोबारा विकसित भी हो जाती है। छिपकली की पूंछ टूटने को कई संस्कृतियों में शुभ-अशुभ संकेतों से भी जोड़ा जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अगर किसी के पास छिपकली की पूंछ टूट जाए, तो यह किसी अनहोनी या बुरे संकेत की ओर इशारा करता है। वहीं कुछ लोग इसे बुरे वक्त के टलने का भी प्रतीक मानते हैं। हालांकि, इन सभी मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह केवल लोकविश्वास और परंपराओं पर आधारित धारणाएं हैं, जिनका प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों में देखा जाता है।
छिपकली की पूंछ सिर्फ उसका शरीर का हिस्सा नहीं होती, बल्कि वह उसकी रक्षा प्रणाली का एक खास हथियार होती है। पूंछ में एक खास जगह होती है जिसे "फ्रैक्चर लाइन" कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक विभाजन रेखा होती है, जहां की मांसपेशियां बिना किसी आंतरिक नुकसान के एक-दूसरे से अलग हो सकती हैं। जब छिपकली को खतरा महसूस होता है, तो वह अपनी पूंछ को खुद ही गिरा देती है। यह उसकी डिफेंस स्ट्रैटेजी का हिस्सा है। जैसे ही शिकारी उसका पीछा करता है, वह पूंछ को गिराकर उसका ध्यान भटका देती है। पूंछ हिलती-डुलती रहती है, जिससे शिकारी वहीं रुक जाता है और छिपकली इस मौके का फायदा उठाकर भाग जाती है। इस तरह, छिपकली की पूंछ न सिर्फ उसे बचाती है, बल्कि यह प्रकृति की एक बेहद होशियार रचना भी है।
आपने अक्सर देखा होगा कि जब छिपकली की पूंछ टूटती है, तो वह कुछ समय तक फड़फड़ाती रहती है। यह नज़ारा कई लोगों को हैरान कर देता है, लेकिन इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण छिपा है। दरअसल, छिपकली अपनी पूंछ को जानबूझकर गिरा सकती है, खासकर तब जब वह किसी शिकारी से बचना चाहती है। यह एक तरह की डिफेंस मेकेनिज़्म है, जिसमें छिपकली अपनी पूंछ को अलग कर दुश्मन का ध्यान भटकाती है और खुद बच निकलती है। ऊर्जा और तंत्रिका तंत्र। पूंछ टूटने से पहले, छिपकली के शरीर में मौजूद क्रेनियल नर्व्स, उसकी पूंछ की नसों और मांसपेशियों को लगातार सिग्नल भेजते रहते हैं। जैसे ही पूंछ शरीर से अलग होती है, सिग्नल देने वाला संपर्क टूट जाता है, लेकिन पूंछ में पहले से मौजूद एनर्जी और नर्व सिग्नल्स के कारण वह कुछ समय तक रैंडम मूवमेंट करती रहती है। यह प्रकृति की एक अनोखी व्यवस्था है, जो छिपकली को बचने का एक अतिरिक्त मौका देती है।
छिपकली की पूंछ टूटना एक प्राकृतिक और रक्षात्मक प्रक्रिया है, जिसका विज्ञान से गहरा संबंध है। हालांकि कई क्षेत्रों में इससे जुड़ी धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं, लेकिन इन्हें केवल अंधविश्वास के रूप में ही देखा जाना चाहिए जब तक कि कोई ठोस प्रमाण मौजूद न हो। एक बार जब छिपकली की पूंछ कट जाती है , तो वह शिकारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है। और उसके बाद वह काफी तेजी से भाग सकती है। आपने देखा भी होगा कि छिपकली जिसकी पूंछ कटी हुई है। वह काफी बेहतर तरीके से अपना बचाव करने मे सक्षम होती है। यह पूंछ कुछ दिनों बाद अपने आप ही आ जाती है।
पब्लिश्ड 1 June 2025 at 20:51 IST