अपडेटेड 1 March 2023 at 14:39 IST

कुछ ऐसा है Tripura Sundari मंदिर का रहस्य, हिंदुओं के लिए क्यों खास है North East का यह शक्तिपीठ?

सोलह कलाओं से युक्त माता त्रिपुर सुंदरी ने की थी भगवान इंद्र की सहायता, दर्शनमात्र से भक्तों की पूरी होती है मनचाही मुराद, जानिए पूरी कहानी

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trupura website | Image: self

Tripura Tourism: हिंदू धर्म में देवी 'त्रिपुर सुंदरी' को लेकर विशेष आस्था है। देवी त्रिपुर सुंदरी का उल्लेख देवी पुराण सहित कई अन्य पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। देवी त्रिपुरेश्वरी को समर्पित, एक ऐतिहासिक मंदिर भारत के त्रिपुरा राज्य की पूर्व राजधानी उदयपुर शहर में स्थित है। यह हिंदू मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसे माताबारी के नाम से जाना जाता है।

देवी के इस शक्तिपीठ में शक्ति के स्वरूप में 'त्रिपुर सुंदरी' और भैरव के स्वरूप में 'त्रिपुरेश' स्थापित हैं। देवी के इस सिद्धपीठ को कूर्म पीठ नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यह मंदिर एक कछुए के उभार की तरह दिखाई देता है। लगभग 500 साल पुराने इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों में विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि यहां देवी सती के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था, इसलिए यहां शक्ति पीठ की स्थापना हुई।

त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा के भंडार के रूप में जाना जाता है। सनातन धर्म में विशेष महत्व रखने वाले इस मंदिर का आकार एक कछुए के जैसा है।

मंदिर का आर्किटेक्चर

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माता त्रिपुर सुंदरी के इस मंदिर को मूल रूप से महाराज धन्य माणिक्य ने 1501 में बनवाया था। इसके बाद सन् 1896 से 1990 में महाराजा राधा किशोर माणिक्य के बहादुर के शासनकाल में इस मंदिर को पुनर्जीवित किया गया। त्रिपुर सुंदरी मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम में बनाया गया है। इसके साथ ही मंदिर में उत्तर की ओर भी एक बेहद ही संकरा प्रवेश द्वार मौजूद है। मंदिर के चारों कोनों में चार स्तंभ बने हैं, जिन पर यह मंदिर टिका हुआ है। इन स्तंभों की ऊंचाई 75 फीट की है। इसके साथ ही इस मंदिर के शीर्ष पर 1 झंडा और सात घड़े बने हैं।

इसके साथ ही मंदिर में मध्ययुग बंगाल का चार चाला यानी 4 तिरछी छतों का एक असाधारण मिश्रण बना हुआ है। मंदिर में शंकु के आकार के गुंबद के साथ एक चौकोर आकार का गर्भगृह है। मुख्य मंदिर को बंगाली एक रत्ना डिजाइन में बनाया गया है।

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कैसे हुआ शक्तिपीठ का निर्माण

शिव पुराण के अनुसार जब प्रजापति दक्ष की बेटी देवी सती का विवाह भगवान शंकर से हुआ, तो वह इस विवाह से प्रसन्न नहीं थे। ऐसे में उन्होंने अपनी बेटी सती और दामाद भगवान शंकर को उपेक्षित करना शुरू किया। इसी क्रम में एक बार प्रजापति दक्ष ने अपने यहां यज्ञ का आयोजन किया। जहां उन्होंने समस्त लोकों से लोगों को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शंकर और देवी सती को निमंत्रण नहीं भेजा। देवी सती को जब अपने पिता के यहां होने वाले इस आयोजन की जानकारी हुई, तो वह सीधे अपने पिता के यहां पहुंच गई। जहां उन्हें अपमान सहना पड़ा। मायके में हुए अपमान से क्षुब्ध देवी सती ने स्वयं को वहीं यज्ञ की वेदी में भस्म कर दिया।

जब भगवान शंकर को इस बात की जानकारी हुई, तो वह सीधे यज्ञ स्थल पहुंचे और देवी सती के पार्थिव शरीर को लेकर तीनों लोकों में तांडव करने लगे। भगवान शंकर के क्रोध से देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब प्रजा पालक भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भगवान देवी सती के शव के 51 टुकड़े किए। ऐसे में उनका अंग जहां गिरा वह शक्तिपीठ की स्थापना हुई। ऐसा ही एक शक्तिपीठ है- त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ, जहां देवी सती का बाएं पैर का अंगूठा गिरा था।

मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा

त्रिपुरा के उदयपुर में बने माता त्रिपुर सुंदरी के इस मंदिर के गर्भगृह में एक समान दो चित्र मौजूद हैं। जिनमें से एक 'त्रिपुर सुंदरी' और दूसरी 'छोटीमा' के रूप में पूजी जाती हैं। माता त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति की ऊंचाई 5 फीट और छोटीमा के मूर्ति की ऊंचाई 2 फीट है। इसके साथ ही मंदिर में मां काली के चिन्ह को 'सोरोशी' के रूप में पूजा जाता है। मां काली का यह मूर्ति कस्ती पत्थर से बनी हुई है, जो लाल काले रंग की है। यह मूर्ति भगवान शिव की छाती पर खड़ी हुई मां काली के स्वरूप में है।

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Published By : Priya Gandhi

पब्लिश्ड 1 March 2023 at 14:39 IST