अपडेटेड 30 December 2025 at 19:24 IST

पतंजलि के दृष्टिकोण से सतत उर्वरक के रूप में सीवेज स्लज: संभावनाएं, चुनौतियां और भविष्य की दिशा

वर्तमान समय में जब कृषि भूमि की उर्वरता घट रही है, रासायनिक उर्वरकों की लागत बढ़ रही है और पर्यावरण पर उनका दुष्प्रभाव स्पष्ट होता जा रहा है, तब सीवेज स्लज का कृषि में उपयोग सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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Patanjali Sewage sludge as a sustainable fertilizer perspective Prospects challenges and future direction
पतंजलि सस्टेनेबल फर्टिलाइजर | Image: Patanjali

Patanjali Sustainable Ferticlizer: सीवेज स्लज, जो कि नगरपालिका अपशिष्ट जल शोधन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाला अर्ध-ठोस अवशेष है, आज अपशिष्ट के बजाय एक उपयोगी संसाधन के रूप में देखा जाने लगा है। उचित वैज्ञानिक उपचार के बाद यही सीवेज स्लज “बायोसॉलिड्स” के रूप में जाना जाता है, जिसमें प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं। वर्तमान समय में जब कृषि भूमि की उर्वरता घट रही है, रासायनिक उर्वरकों की लागत बढ़ रही है और पर्यावरण पर उनका दुष्प्रभाव स्पष्ट होता जा रहा है, तब सीवेज स्लज का कृषि में उपयोग सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह विचार पतंजलि जैसे स्वदेशी और प्रकृति-आधारित दृष्टिकोण से भी मेल खाता है, जो संसाधनों के पुनः उपयोग और प्राकृतिक संतुलन पर बल देता है।

सीवेज स्लज को उर्वरक के रूप में अपनाने की सबसे बड़ी विशेषता इसकी पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण की क्षमता है। आधुनिक कृषि प्रणाली अत्यधिक रूप से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर हो गई है, जिनके निर्माण में भारी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है और जो सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित होते हैं। अपशिष्ट जल से प्राप्त पोषक तत्वों को पुनः खेतों तक पहुँचाना पोषक तत्व चक्र को पूरा करता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करता है। सीवेज स्लज में मौजूद कार्बनिक पदार्थ मिट्टी की संरचना को सुधारते हैं, जल धारण क्षमता बढ़ाते हैं और लाभकारी सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को प्रोत्साहित करते हैं। यह वही सिद्धांत है जिसे पतंजलि की कृषि एवं पर्यावरण संबंधी सोच में “मिट्टी की जीवंतता” के रूप में देखा जाता है।

पर्यावरणीय दृष्टि से भी सीवेज स्लज का पुनः उपयोग कई लाभ प्रदान करता है। लैंडफिल में निस्तारण या दहन की तुलना में भूमि पर इसका नियंत्रित उपयोग ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है और शहरी अपशिष्ट प्रबंधन पर पड़ने वाले दबाव को घटाता है। यदि सीवेज स्लज का उपचार एनेरोबिक डाइजेशन के माध्यम से किया जाए, तो उससे बायोगैस का उत्पादन भी संभव है, जो एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। इस प्रकार अपशिष्ट से ऊर्जा और उर्वरक दोनों प्राप्त होते हैं, जो पतंजलि द्वारा समर्थित “वेस्ट टू वेल्थ” की अवधारणा को साकार करता है।

हालांकि, सीवेज स्लज को उर्वरक के रूप में अपनाने में कई गंभीर चुनौतियां भी मौजूद हैं। सबसे प्रमुख चिंता रोगजनकों की उपस्थिति को लेकर है। घरेलू, चिकित्सीय और औद्योगिक अपशिष्ट जल से उत्पन्न बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी यदि पर्याप्त उपचार न किया जाए तो मानव और पशु स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। यद्यपि आधुनिक तकनीकें जैसे कम्पोस्टिंग, तापीय सुखाना और एनेरोबिक डाइजेशन रोगजनकों को काफी हद तक समाप्त कर देती हैं, फिर भी गुणवत्ता नियंत्रण और निगरानी अत्यंत आवश्यक है।

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रासायनिक प्रदूषण एक और महत्वपूर्ण समस्या है। सीवेज स्लज में कैडमियम, सीसा और पारा जैसी भारी धातुएं, औद्योगिक रसायन, औषधीय अवशेष, माइक्रोप्लास्टिक और पीएफएएस जैसे उभरते प्रदूषक पाए जा सकते हैं। ये तत्व लंबे समय तक मिट्टी में बने रह सकते हैं और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते हैं। इस संदर्भ में सतर्कता और सावधानी का वही सिद्धांत लागू होता है जिसे पारंपरिक भारतीय ज्ञान प्रणालियों और पतंजलि जैसे संस्थान प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक मानते हैं।

सीवेज स्लज आधारित उर्वरकों को लेकर सामाजिक स्वीकार्यता भी एक महत्वपूर्ण कारक है। “सीवेज” शब्द से जुड़ी नकारात्मक धारणाएं किसानों और उपभोक्ताओं के मन में संदेह पैदा करती हैं, भले ही वैज्ञानिक रूप से इसका उपयोग सुरक्षित क्यों न हो। इस स्थिति को बदलने के लिए पारदर्शिता, सख्त गुणवत्ता मानक और जन-जागरूकता आवश्यक है। प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर बढ़ते झुकाव के दौर में, जैसा कि पतंजलि द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, विश्वास निर्माण की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

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भविष्य में सीवेज स्लज को सतत उर्वरक के रूप में स्थापित करने के लिए उन्नत उपचार तकनीकों, दीर्घकालिक अनुसंधान और सटीक पोषक प्रबंधन की आवश्यकता होगी। आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक पर्यावरणीय दृष्टिकोण का समन्वय, जैसा कि पतंजलि की विचारधारा में दिखाई देता है, इस दिशा में प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकता है।

अंततः, सीवेज स्लज में सतत उर्वरक बनने की अपार संभावनाएं हैं, बशर्ते उसका उपयोग जिम्मेदारी, वैज्ञानिक समझ और पर्यावरणीय संवेदनशीलता के साथ किया जाए। स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक चिंताओं का समाधान कर यह संसाधन मिट्टी की उर्वरता, संसाधन संरक्षण और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण कृषि व्यवस्था को मजबूत कर सकता है।
 

Published By : Samridhi Breja

पब्लिश्ड 30 December 2025 at 19:17 IST