अपडेटेड 17 November 2025 at 14:52 IST

पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम: सतत कृषि और ग्रामीण विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल

पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम न केवल खेती की पद्धतियों में सुधार करता है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने पर भी केंद्रित है।

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Baba Ramdev
Baba Ramdev | Image: Patanjali

भारत की कृषि प्रणाली लगातार बदलते जलवायु, भूमि क्षरण, उत्पादन लागत में वृद्धि और किसानों की आय संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे समय में पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम किसानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह कार्यक्रम न केवल खेती की पद्धतियों में सुधार करता है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने पर भी केंद्रित है।

कार्यक्रम की कार्यप्रणाली (Methodology)

पतंजलि किसान समृद्धि कार्यक्रम एक सुव्यवस्थित चरणबद्ध पद्धति पर काम करता है:

1.    किसानों की पहचान एवं पंजीकरण: गांवों में जाकर किसानों को कार्यक्रम से जोड़ना तथा उनकी भूमि, फसल और आवश्यकताओं का आकलन करना।

2.    जैविक एवं प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण: किसानों को रसायन-मुक्त खेती, जैविक खाद (घनजीवामृत, जीवामृत), बीज उपचार, पानी संरक्षण और फसल विविधीकरण का प्रशिक्षण देना।

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3.    इनपुट सपोर्ट: किसानों को जैविक खाद, पौध सामग्री, औषधीय पौधों के बीज जैसे इनपुट उपलब्ध कराना।

4.    तकनीकी सहायता: कृषि विशेषज्ञों द्वारा नियमित खेत भ्रमण और फसल-आधारित समाधान प्रदान करना।

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5.    मार्केट लिंकिंग: किसानों को पतंजलि के सप्लाई चेन से जोड़कर उनकी फसलें उचित मूल्य पर खरीदना।

कार्यक्रम का कवरेज (Coverage)

●    यह कार्यक्रम भारत के कई राज्यों में सक्रिय रूप से लागू किया जा चुका है।

●    वर्तमान में हज़ारों छोटे और सीमांत किसान जैविक खेती मॉडल से जुड़ चुके हैं।

●    औषधीय, सुगंधित और पारंपरिक फसलों में प्रशिक्षण देकर किसानों की आय बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है।

क्रियान्वयन में चुनौतियां (Challenges Faced)

हालांकि कार्यक्रम ने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, फिर भी कुछ प्रमुख चुनौतियां सामने आती हैं—

●    पारंपरिक रासायनिक खेती से हटकर जैविक खेती अपनाने में समय और व्यवहारिक बदलाव की आवश्यकता।

●    जैविक खेती में प्रारंभिक दो-तीन वर्षों में उपज में थोड़ी कमी।

●    किसानों में लगातार जागरूकता और प्रशिक्षण की जरूरत।

●    ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिक कृषि तकनीक की सीमित पहुँच।

प्रभाव एवं परिणाम (Impact Analysis)

●    इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले किसानों की उत्पादन लागत 20–40% तक कम हुई है।

Published By : Ruchi Mehra

पब्लिश्ड 17 November 2025 at 14:52 IST