अपडेटेड 15 January 2025 at 17:20 IST

जब विश्व को मिले अपने पाँचवें जगद्गुरु: श्री कृपालु जी महाराज

जब विश्व को मिले अपने पाँचवें जगद्गुरु: श्री कृपालु जी महाराज

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श्री कृपालु जी महाराज
श्री कृपालु जी महाराज | Image: श्री कृपालु जी महाराज

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज को 14 जनवरी, 1957 को काशी विद्वत् परिषद् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि प्रदान की गयी।

वेदों से लेकर रामायण तक, सारे ग्रन्थ कहते हैं कि वास्तविक गुरु से बड़ा कोई तत्व नहीं होता। भगवान् को प्राप्त कर चुका सच्चा गुरु ही मनुष्य को हर प्रकार का ज्ञान देकर, उसे सब दुःखों से मुक्त कर सकता है और भगवान् से मिलाकर सदा-सदा के लिए उसे आनंद प्रदान कर सकता है। 

अब प्रश्न यह उठता है कि जब गुरु से बड़ा कोई तत्व नहीं हो सकता तो जगद्गुरु शब्द कहाँ से उत्पन्न हुआ। जगद्गुरु धर्म ग्रंथों का शब्द है जो श्री कृष्ण के लिए प्रयोग हुआ है, यथा - कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्। 

आदि शंकराचार्य से प्रारम्भ हुई जगद्गुरु परंपरा

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हमारे संसार में जगद्गुरु की परंपरा आदि जगद्गुरु शंकराचार्य से प्रारम्भ हुई। इसका कारण यह था कि उस समय समाज में बहुत कुरीतियाँ फ़ैल गयीं जिस कारण लोगों में शास्त्रों-वेदों के प्रति भी भ्रम उत्पन्न हो गया। ऐसे में देश के उच्चतम विद्वानों को यह आवश्यकता महसूस हुई कि किसी महापुरुष को, जो कि समस्त शास्त्रों-वेदों का ज्ञाता हो, जगद्गुरु नियुक्त किया जाए जिससे कोई भी व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शंकाएँ, उनसे पूछकर, बिना किसी भ्रम में पड़े भगवान् की ओर चल सके।

आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के बाद इस गौरवशाली परंपरा को जगद्गुरु रामानुजाचार्य, जगद्गुरु निम्बार्काचार्य एवं जगद्गुरु माध्वाचार्य ने आगे बढ़ाया। परन्तु फिर 700 वर्षों का एक लंबा अंतराल आया जब किसी महापुरुष को जगद्गुरु की मूल उपाधि नहीं प्रदान की गयी। 14 जनवरी, 1957 का वो शुभ दिन था जब विश्व को अपना पाँचवाँ मूल जगद्गुरु प्राप्त हुआ। वो विभूति हैं भगवदनन्त-श्रीविभूषित जगद्गुरु 1008 स्वामि श्री कृपालु जी महाराज। कई लोग इन जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज को वृन्दावन के प्रेम मंदिर के संस्थापक के रूप में भी जानते हैं। 

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काशी विद्वत् परिषद् ने प्रदान की जगद्गुरु उपाधि 

सिर्फ 34 वर्ष की अल्प आयु में, कृपालु जी महाराज को शास्त्रार्थ के लिए काशी विद्वत् परिषद् द्वारा आमंत्रित किया गया। यह उस समय के भारत की 500 महान विद्वानों की उच्चतम सभा थी जिन पर जगद्गुरु नियुक्त करने का कार्यभार था। 

काशी विद्वत् परिषद् के विद्वान श्री कृपालु जी महाराज के ज्ञान और भक्तियोग स्वरूप को देखकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होनें बिना किसी वाद-विवाद के ही उन्हें जगद्गुरु की मूल उपाधि प्रदान कर दी। केवल जगद्गुरु ही नहीं उन्हें जगद्गुरूत्तम की उपाधि दी गयी यानि सभी जगद्गुरुओं में उत्तम। तभी से मकर संक्रांति, 14 जनवरी का दिन, 'जगद्गुरूत्तम दिवस' के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। 

रूपध्यान मेडिटेशन की उन्नत विधि सिखायी

जगद्गुरु बनने के बाद से जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने पूरे भारत में धुआँधार प्रचार किया। अपने स्वास्थ्य आदि की चिंता न करते हुए उन्होनें सारे देश में घूम-घूमकर सनातन धर्म के सिद्धांतों को लोगों तक पहुँचाया। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने जन सामान्य को समझाया कि हम अनादिकाल से दुःखी हैं। इस दु:ख को समाप्त करने और सुख पाने का बस एक ही तरीका है — माया से छुटकारा पाकर भगवान् को प्राप्त करना। 

श्री कृपालु जी महाराज ने श्री राधा-कृष्ण की भक्ति का उपदेश दिया। इसके लिए उन्होंने प्रैक्टिकल तरीका बताया जिसे उन्होंने "रूपध्यान" नाम दिया। ध्यान या मेडिटेशन की इस विधि में श्री राधा-कृष्ण के मनचाहे रूप का ध्यान करके उनसे प्रेम बढ़ाने का अभ्यास करना होता है। 

शारीरिक उपासना को गौण बताते हुए श्री कृपालु जी महाराज ने बताया कि हर कर्म का कर्ता मन है। अतः मन से ही किये हुए पुण्य या पाप का फल हमें भगवान् देते हैं। इसी प्रकार भगवान् की भक्ति भी हमें मन से करनी होगी। हम जो भी पूजा, अर्चना,  तीर्थाटन आदि करते हैं, यदि उसमें हमारे मन का योग होगा तो ये सारे कर्म भक्तिमय बन जायेंगे और हमें इसका उत्तम फल प्राप्त होगा परन्तु मन के लगाव के बिना किसी कर्म का कोई फल नहीं मिलता।

जगद्गुरु पद का मान बढ़ाया

इस प्रकार अथक परिश्रम करके जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने 91 वर्ष की आयु पर्यन्त मानव जाति के भौतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया। 

श्री वृन्दावन धाम में प्रेम मंदिर, प्रयागराज के निकट श्री कृपालु धाम - मनगढ़ में भक्ति मंदिर एवं श्री बरसाना धाम में कीर्ति मंदिर की स्थापना करने के अतिरिक्त, श्री कृपालु जी महाराज ने कई धर्मार्थ अस्पताल, स्कूल, कॉलेज आदि भी स्थापित किये जहाँ आज भी बिना किसी शुल्क के समाज के वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सराहनीय कार्य किया जा रहा है। इस प्रकार श्री कृपालु जी महाराज ने अपने जगद्गुरु पद को चरितार्थ करते हुए एक सच्चे जगद्गुरु की परिभाषा संसार के समक्ष प्रस्तुत की और जगद्गुरु पद का मान बढ़ाया।

Published By : Hindi Seo

पब्लिश्ड 15 January 2025 at 17:20 IST