अपडेटेड 17 September 2025 at 19:14 IST

बीमा से सुरक्षा का सपना टूटा, बढ़ते बोझ तले दब रहा है आम आदमी

अस्पतालों का कहना है कि बीमा कंपनी 2022 से भी कम रेट पर इलाज कराने की मांग कर रही है। उनका तर्क है कि अगर पुराने रेट पर दबाव डाला गया, तो डॉक्टरों की उपलब्धता, आधुनिक उपकरण और मरीज की सुरक्षा पर असर पड़ेगा।

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Health Insurance
Health Insurance | Image: Republic

लाखों लोग जब बीमा पॉलिसी खरीदते हैं, तो उन्हें लगता है कि अब इलाज के समय पैसों की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन हकीकत इससे उलट निकल रही है। बढ़ते प्रीमियम, घटती सेवाएं और क्लेम न मिलने की परेशानी मरीजों के लिए नई मुसीबत बन गई है।

हाल ही में एक बड़े अस्पताल-समूह और निवा बूपा के बीच विवाद इसकी मिसाल है। अस्पतालों का कहना है कि बीमा कंपनी 2022 से भी कम रेट पर इलाज कराने की मांग कर रही है। उनका तर्क है कि अगर पुराने रेट पर दबाव डाला गया, तो डॉक्टरों की उपलब्धता, आधुनिक उपकरण और मरीज की सुरक्षा पर असर पड़ेगा। यानी कटौती का सीधा असर उस मरीज पर होगा, जो बीमा के भरोसे इलाज कराने आता है।

इस विवाद का असर कैशलेस सुविधा पर भी दिखा। कुछ अस्पतालों में बीमा कंपनियों के साथ समझौते टलने लगे हैं और कैशलेस इलाज अस्थायी रूप से रोका जा रहा है। कंपनियां इसे कागजी प्रक्रियाओं और अनुबंध की शर्तों से जोड़ती हैं, लेकिन असली परेशानी तो मरीज झेल रहा है- अचानक एडवांस में पैसा देना या दूसरे अस्पताल जाना, और कई बार ये देरी उसकी जान पर भी भारी पड़ सकती है।

समस्या यहीं खत्म नहीं होती। इंश्योरेंस ओम्बुड्समैन रिपोर्ट 2023-24 बताती है कि बीमा कंपनियों पर शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। स्टार हेल्थ, केयर और निवा बूपा के खिलाफ़ सबसे ज्यादा शिकायतें दर्ज हुईं। सिर्फ स्टार हेल्थ पर ही 13,308 शिकायतें आईं, जिनमें ज्यादातर मामले क्लेम खारिज होने से जुड़े थे।

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ऊपर से एक और चौंकाने वाला आंकड़ा है- Incurred Claims Ratio (ICR)। कई बीमा कंपनियों का ICR सिर्फ 54% से 67% के बीच रहा है। इसका मतलब यह है कि जितना प्रीमियम लोगों से वसूला गया, उसका आधा भी दावों पर खर्च नहीं हुआ। यानी कंपनियां या तो क्लेम देने से बच रही हैं, या मुनाफे को इलाज से ऊपर रख रही हैं। दोनों ही हालात मरीज के लिए नुकसानदेह हैं।

नतीजा यह है कि आम आदमी जो बीमा को सुरक्षा समझकर हर साल प्रीमियम भरता है, वही सबसे ज्यादा परेशान है। इलाज के नाम पर उसे कभी क्लेम न मिलने, कभी एडवांस पैसे भरने, और कभी अस्पताल बदलने की मजबूरी झेलनी पड़ती है।

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बीमा कंपनियां मुनाफे की जंग लड़ रही हैं और अस्पताल अपने खर्च पूरे रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस रस्साकशी में सबसे ज़्यादा पिस रहा है वही आम आदमी, जिसने बीमा को अपनी सबसे बड़ी ढाल समझा था।

अब हालात ऐसे बन गए हैं कि लोगों का भरोसा बीमा से मिलने वाली सुरक्षा पर ही डगमगाने लगा है। बढ़ते प्रीमियम और घटती सुविधाओं के बीच मरीज यह सोचने को मजबूर है कि बीमा पॉलिसी उनके लिए राहत है या फिर एक नया बोझ।

Published By : Priyanka Yadav

पब्लिश्ड 17 September 2025 at 19:13 IST