अपडेटेड 26 January 2023 at 19:01 IST
कौन हैं देश के हुनर को अपनी जिंदगी बनाने वाली जोधईया बाई ? 60 की उम्र में थामा था ब्रश, अब मिलेगा Padma Shree
चित्रकार जोधैया बाई बैगा ने 60 साल की उम्र में मजदूरी छोड़कर हाथों में ब्रश थामा था। आज उनकी कला पेरिस, इटली और फ्रांस की आर्ट गैलेरियों में भी प्रदर्शित हो चुकी है
- भारत
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Jodhaiya Bai Baiga: अगर इरादों में दम हो लहरों को मात दी जा सकती है, और बुलंद हौसला हो तो किसी भी उम्र में सपनों को पूरा किया जा सकता है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा हुई तो उसमें एक नाम मध्य प्रदेश के उमरिया (Umaria) की जोधईया बाई बैगा (jodhaiya bai baiga) का भी था। साल 2023 के लिए 106 लोगों को पद्म अवॉर्ड के लिए चुना गया है। इसी सूची में कई ऐसे गुमनाम लोग हैं जिनके हुनर को सरकार ने पहचाना और अब उन्हें सम्मानित किया जाएगा।
चित्रकार जोधईया बाई बैगा वो नाम है जिसने 60 साल की उम्र में मजदूरी छोड़कर हाथों में ब्रश थामा और अपने हुनर को उकेरना शुरू किया। महज 20 सालों में उन्होंने अपने हुनर से ना सिर्फ बैगा चित्रकला (Baiga Painting) को नई पहचान दिलाई, बल्कि अपनी तकदीर भी बदल डाली। अब उन्हें 15 अगस्त को पद्मश्री (Padma Shree award) से सम्मानित किया जाएगा। जोधईया बाई ने विलुप्ति की कगार पर खड़ी भारत की बैगा चित्रकला को वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाई है।
'मेरे गुरू का सपना पूरा हो गया'
आदिवासी चित्रकार जोधईया बाई की कला का पेरिस, इटली और फ्रांस की आर्ट गैलेरियों में भी प्रदर्शन हो चुका है। इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका और जापान जैसे देशों में भी बैगा जनजाति के पारंपरिक चित्रों की प्रदर्शनी लगाई जा चुकी है। जब पद्मश्री पुरस्कार के लिए उन्हें चुना गया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने कहा- पद्म पुरस्कार के बारे में जानकर बहुत खुशी हुई। मैंने अपने काम में अपने परिवार के अलावा पूरे गांव को जोड़ा है। पुरस्कार के बारे में जानकर लगा मेरे गुरू का सपना पूरा हो गया।
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‘नारी शक्ति सम्मान’ से हो चुकी हैं सम्मानित
इससे पहले साल 2022 में जोधईया बाई बैगा को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ‘नारी शक्ति सम्मान’ से सम्मानित किया था। जोधईया, बैगा जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। जो आधुनिक पद्धति से बैगा चित्रकला को उकेरती हैं। बैगा कला में भगवान शिव और बाघ के चित्र बनाए जाते हैं।
कौन हैं जोधईया बाई ?
एक वक्त था जब जोधईया बाई मजदूरी कर अपना पेट पालती थी। महज 30 साली की उम्र में उनके पति का निधन हो गया था। जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी जोधईया के कंधों पर आ गई। बच्चों को पालने के लिए मजदूरी को चुना। इस दौरान उन्होंने मिट्टी का काम किया। आज उनके नाम पर भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में एक स्थायी दीवार भी है, जिसे उनकी पेंटिंग से सजाया गया है।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 26 January 2023 at 19:01 IST