अपडेटेड 25 May 2023 at 08:40 IST

Sengol: क्या है सेंगोल जिसे नए संसद भवन में स्थापित करेगी मोदी सरकार? जानें भारत के 'राजदंड' की कहानी

28 मई को पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे, जिसमें सेंगोल को भी स्थापित किया जाएगा।

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Sengol in NEw Parliament House
Sengol in NEw Parliament House | Image: self

Sengol in New Parliament House: नए संसद भवन के उद्घाटन की तारीख अब करीब आ रही है। 28 मई को पीएम मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस बीच सेंगोल चर्चा में आया है, जिसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। सेंगोल को हिन्दी में राजदंड कहा जाता है। भारतीय इतिहास से इस राजदंड का किस्सा जुड़ा हुआ है। तमिल परंपराओं के साथ इसे स्थापित किया जाएगा।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि राजदंड का हमारे इतिहास में बड़ा योगदान है। इसे राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा।  
सेंगोल तमिल शब्द सेम्मई से बना है, जिसका मतलब धर्म सच्चाई और निष्ठा है। सेंगोल भारतीय सम्राट अशोक की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। ये चांदी का बना है जिसपर सोने की परत चढ़ाई गई है।  

क्यों सुर्खियों में आया सेंगोल?

दरअसल, सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है। अंग्रेजों से भारत को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान मूल रूप से इसका इस्तेमाल एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता था। इसे लोकसभा स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा।

इस संबंध में केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा,  ‘‘हमारी सरकार का मानना है कि इस पवित्र 'सेंगोल' को संग्रहालय में रखना अनुचित है। 'सेंगोल' की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक मुनासिब, पवित्र और उपयुक्त कोई अन्य स्थान नहीं हो सकता है।’’ यही कारण है कि इतने सालों के बाद सेंगोल चर्चा में है। अबतक इसे इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था।

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नए संसद भवन में इसकी स्थापना के दौरान तमिल के शैव मठों के अधीनम मौजूद रहेंगे। सेंगोल को पवित्र जल से शुद्ध किया जाएगा। तमिल मंदिर के गायक कोलरू पाधिगम इसे पेश करेंगे। अनुष्ठान के बाद इसे पीएम मोदी को सौंपा जाएगा, जिसे फिर नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।

पंडित नेहरू से जुड़ा है इतिहास

केंद्रीय गृहमंत्री ने बताया कि 14 अगस्त 1947 को करीब 10 बजकर 45 बजे इसे पंडित जवाहर लाल नेहरू को तमिलनाडु की जनता की तरफ से दिया गया था। उन्होंने कहा कि ये जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन की अपेक्षा की जाती है। भारत को राजदंड मिलने के बाद इसे एक जुलूस के  साथ संविधान सभा हॉल में ले जाया गया था।

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चोल, मौर्य और गुप्त वंश से है खास संबंध

चोल, मौर्य और गुप्त वंश के शासन काल के दौरा राजाओं के राज्याभिषेक के दौरान इसे महत्व दिया जाता था। यह एक शासक के द्वारा दूसरे शासक को सत्ता हस्तांतरण के दौरान दिया जाता था। इसे विरासत और परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है।

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आधिकारिक सूत्रों ने PTI को बताया कि राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय से दिल्ली लाया गया है। सूत्रों के अनुसार, ‘‘रस्मी राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी के हिस्से के रूप में जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं के साथ रखा गया था।’’

संग्रहालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संग्रहालय के वर्तमान भवन की आधारशिला 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू द्वारा रखी गई थी और इसे 1954 में कुंभ मेले के समय जनता के लिए खोला गया था।
 

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Published By : Kanak Kumari Jha

पब्लिश्ड 25 May 2023 at 08:40 IST