Published 21:35 IST, August 23rd 2024
बहुत दुखद है कि अदालतें आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी में अंतर को नहीं समझतीं: सुप्रीम कोर्ट
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यह ‘बहुत दुखद’ है कि अदालतें आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी में महीन अंतर को समझने में सक्षम नहीं हैं।
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यह ‘बहुत दुखद’ है कि अदालतें आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी में महीन अंतर को समझने में सक्षम नहीं हैं जबकि यह दंड कानून 162 सालों से अधिक समय से प्रभावी है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दुर्भाग्य से पुलिस के लिए यह एक आम चलन है कि किसी तरह की बेईमानी या धोखाधड़ी के केवल आरोप पर दोनों अपराधों के लिए बिना किसी उचित समझ-बूझ के नियमित और यंत्रवत प्राथमिकी दर्ज की जाती है।
समय आ गया है कि पुलिस अधिकारियों को कानून का उचित प्रशिक्षण दिया जाए- कोर्ट
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि देशभर के पुलिस अधिकारियों को कानून का उचित प्रशिक्षण दिया जाए ताकि धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के अपराधों के बीच के बारीक अंतर को समझा जा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘दोनों अपराध स्वतंत्र और अलग हैं। दोनों अपराध एक तरह के तथ्यों की स्थिति में साथ-साथ नहीं हो सकते। वे एक-दूसरे के विपरीत हैं।’’
शीर्ष अदालत की टिप्पणियां एक फैसले में आईं जिसमें इस साल अप्रैल में पारित इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को रद्द कर दिया गया था।
आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के बीच अंतर है- कोर्ट
उच्च न्यायालय ने दिल्ली रेस क्लब (1940) लिमिटेड और अन्य के खिलाफ एक शिकायत के मामले में उत्तर प्रदेश की एक निचली अदालत द्वारा दिये गये समन के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने कहा, ‘‘आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के बीच अंतर है। धोखाधड़ी के लिए शुरुआत से ही आपराधिक इरादा आवश्यक है...। आपराधिक विश्वासघात के लिए केवल अविश्वास का सबूत ही पर्याप्त है।’’
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Updated 21:35 IST, August 23rd 2024