अपडेटेड 5 August 2025 at 12:47 IST

150 रुपये की घड़ी, रसीद बुक और आधी सदी का ड्रामा, 49 साल चला घड़ी चोरी केस; तारीखों से परेशान होकर बताई सच्चाई

Jhansi में 150 रुपये की घड़ी चोरी का केस 49 साल चला है। तारीखों से परेशान होकर आरोपी ने हार मान ली और कोर्ट में कहा मैंने ही चोरी की है।

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verdict after 49 years in theft of watch worth rs 150 in Jhansi court
49 साल चला 150 रुपये की घड़ी चोरी का केस | Image: AI Photo (सांकेतिक फोटो)

Jhansi News : एक घड़ी, दो रसीद बुक और आधी सदी का ड्रामा, सुनने में तो ये किसी बॉलीवुड फिल्म का टाइटल लगता है। लेकिन ये सच्ची घटना उत्तर प्रदेश के झांसी की है, जहां 150 रुपये की घड़ी और कुछ रसीद बुक चोरी के केस ने 49 साल तक कोर्ट की तारीखें खींचीं। 1976 में शुरू हुआ ये कांड 2025 तक चला, और अब जाकर इसका पटाक्षेप हुआ।

बात 1976 की है, जब झांसी के टहरौली थाना क्षेत्र के बमनुआ गांव में LSS सहकारी समिति में चपरासी कन्हैयालाल और उनके दो साथी, लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ पर 150 रुपये की घड़ी और रसीद बुक चुराने का आरोप लगा था। साथ ही, 14,472 रुपये के गबन का भी चार्ज था। अब सोचिए, 150 रुपये की घड़ी! उस जमाने में तो ये रकम भी ठीक-ठाक थी, लेकिन आज तो इतने में एक अच्छा सा बर्गर भी नहीं मिलता। फिर भी, इस घड़ी ने कोर्ट-कचहरी में ऐसा तांडव मचाया कि आरोपी ने भी हार मान ली।

49 साल का लंबा इंतजार

इस केस ने 49 साल तक कोर्ट की सीढ़ियां घिसीं। कन्हैयालाल पर चोरी का आरोप लगा तो उनकी उम्र 25 साल की थी, जो अब करीब 75 साल के हो चुके थे, आखिरकार हार मान गए। उन्होंने कोर्ट में कहा, "बस, अब और तारीख नहीं!" बीमारी और थकान ने उन्हें घुटनों पर ला दिया और उन्होंने जुर्म कबूल कर लिया। कोर्ट ने भी दया दिखाई और जेल में बिताए समय को सजा माना और 2000 रुपये का जुर्माना लगाकर उन्हें रिहा कर दिया। बाकी दो आरोपी, लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है।

ये था पूरा मामला

जानकारी के मुताबिक, झांसी में टहरौली थाना क्षेत्र के बमनुआ गांव स्थित एलएसएस सहकारी समिति में कन्हैया लाल चपरासी थे। कन्हैया मध्य प्रदेश के ग्वालियर का रहने वाले हैं। उसके साथ लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ भी कर्मचारी थे। 1976 में तत्कालीन सचिव बिहारीलाल गौतम ने तीनों के खिलाफ टहरौली थाने में रसीद बुक और 150 रुपये की घड़ी चोरी करने का मुकदमा दर्ज कराया था। सचिव ने आरोप लगाया था कि तीनों ने रसीद बुक पर सदस्यों के फर्जी हस्ताक्षर कर लोगों से 14472 रुपये वसूले हैं।

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भारतीय कोर्ट की रफ्तार

ये केस भारतीय न्याय व्यवस्था की गति का एक जीता-जागता नमूना है। सोचिए, 150 रुपये की घड़ी का केस 49 साल चला। लेकिन मजाल है कि कोर्ट ने जल्दबाजी की हो! झांसी की ये घटना हमें सिखाती है कि अगर आपने कभी छोटी-मोटी चोरी की है, तो तैयार रहें- आपके पोते-पोतियों को भी कोर्ट में गवाही देनी पड़ सकती है।

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 5 August 2025 at 12:47 IST