अपडेटेड 16 December 2024 at 18:23 IST

EXCLUSIVE/ 'टांगों से चीरकर फेंक दिया था...', चश्मदीद ने बतायी रूह कंपा देने वाली 1978 में संभल दंगों की कहानी

एक घटना तो बहुत ही हृदय विदारक थी जिसमें एक शख्स की टांगों की तरफ दो भागों में चीर कर रख दिया था। ऐसे माहौल में हिन्दू परिवार वहां से पलायन को मजबूर हो गए थे।

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चश्मदीद ने बतायी रूह कंपा देने वाली 1978 में संभल दंगों की कहानी | Image: Republic Video Grab

कविता सिंह

Eye Witness Tells Story of Sambhal Riots:  शनिवार को उत्तर प्रदेश के संभल के खग्गू सराय इलाके में एसडीएम के बिजली चोरी के औचक निरीक्षण के दौरान एक 400 साल पुराने मंदिर का पता चला है। ये मंदिर साल 1978 के बाद से बंद पड़ा था। एसडीएम ने जब डीएम को इस बात की जानकारी दी तो पुलिस दल-बल के साथ वहां डीएम वहां पहुंचे और मंदिर को खुलवाया। संभल जिला प्रशासन ने सालों से बंद पड़े इस भस्म शंकर मंदिर को खोला, जिसमें हनुमान जी की एक मूर्ति और एक शिवलिंग था। रविवार को मंदिर में सुबह की आरती हुई और फिर महादेव का रुद्राभिषेक भी किया गया। आखिर क्या वजह थी कि इस इलाके से हिन्दू पलायन कर गए और मंदिर में कोई पूजा तक करने वाला नहीं बचा था। इस बात को लेकर 1978 में हुए संभल दंगों के चश्मदीद सुरेंद्र गौड़ ने रिपब्लिक भारत को इसकी सच्चाई बयां की, जिसे सुनकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी।


साल 1978 में हुए संभल दंगों के चश्मदीद सुरेंद्र गौड़ ने रिपब्लिक भारत से बातचीत करते हुए इस बात की सच्चाई बयां की है कि आखिर अचानक से कैसे यहां रहने वाले हिन्दू पलायन को मजबूर हो गए? आखिर वो क्या वजह थी कि एक भस्म शिवमंदिर में पूजा करने के लिए कोई पुजारी ही नहीं रहा? आखिर क्यों 46 सालों से हिन्दू मंदिर पर ताला लगा रहा इन धधकते सवालों के जवाब सुनकर आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सुरेंद्र गौड़ ने बताया कि 'यहां पर 40 से 50 हिन्दू परिवार रहते थे लेकिन साल 1978 के दंगों में मुस्लिमों ने हिन्दू परिवारों पर बहुत जुल्म ढाए क्योंकि वो संख्या में ज्यादा थे। अपने परिवार और बच्चों की खातिर हिन्दू परिवारों ने वहां से पलायन करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे वहां एक भी हिन्दू परिवार नहीं रह गया।


किसी को चीर कर फेंक दिया तो किसी के घर में ट्रैक्टर घुसा दिया...

सुरेंद्र गौड़ ने 1978 के दंगों का जिक्र करते हुए बताया, कैसे 1978 के दौरान संभल में प्रायोजित दंगे हुए थे और कैसे मुसलमानों ने हिन्दू परिवारों पर जुल्म ढाए थे। उन्होंने बताया कि यहां पर मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी हो गई थी और हिन्दुओं के आने-जाने का रास्ता उनके मोहल्ले से होकर जाता था। एक दिन दंगों के दौरान एक पिता-पुत्र अपनी साइकिल पर आ रहे थे इन दरिंदों ने उन दोनों को पकड़कर बहुत मारा और एक दिन बाद बोरे में उनके शव बरामद हुए। एक घर में तो ट्रैक्टर घुसा दिया उसका गेट तोड़ते हुए ट्रैक्टर घर में जा घुसा और घरवालों पर दंगाइयों ने जुल्म ढाए। वहीं एक घटना तो बहुत ही हृदय विदारक थी जिसमें एक शख्स की टांगों की तरफ दो भागों में चीर कर रख दिया था। ऐसे माहौल में हिन्दू परिवार वहां से पलायन को मजबूर हो गए थे।


1978 में हुए दंगों की वजह से यहां हिन्दुओं की आबादी घटी

सुरेंद्र गौड़ ने आगे बताया कि मैं आज भी नाम बता सकता हूं कि यहां पर भरोसे लाल जी का परिवार रहता था। अब वो लोग दुर्गा कॉलोनी में जा बसे हैं। उनके भाई हरिशंकर अग्रवाल आज भी हैं। ऐसे ही कन्हैया रस्तोगी का परिवार यहां रहता था जो यहां से अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के चलते पलायन कर गए। कोई भी शख्स यहां से गरीबी की वजह से घर बेचकर नहीं गया है। यहां शहर के संपन्न लोग रहते थे लेकिन हर किसी को यहां रहने वाले लोगों से अपनी और अपने परिवार की जान का खतरा दिखाई दे रहा था। इस वजह से लोगों ने यहां से पलायन किया था। 1978 में हुए दंगों में हिन्दू आबादी पलायन करने को मजबूर हो गई और जो बचे वो मौत के घाट उतार दिए गए।

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जब लोग ही नहीं रहें तो मंदिर में दिया कौन जलाता

यहां पर शनिवार को जब भस्म शंकर मंदिर के मिलने की बात मीडिया में आई तो लोगों को शिवमंदिर भी याद आया। उन्होंने आगे बताया कि जब हिन्दू ही नहीं बचे तो मंदिरों में दीपक जलाने कौन जाता। हमारे पलायन के बाद इस विशेष समुदाय के लोगों ने अपने अतिक्रमण से हमारे मंदिरों पर भी कब्जा जमा रखा था। यहां पर भाईचारा तो नेताओं के मुताबिक कहने के लिए था और ये कैसा भाईचारा था कि एक समुदाय दूसरे समुदाय के लोगों को कत्लेआम कर रहा था और दूसरा समुदाय या तो मारा जा रहा था या फिर पलायन कर रहा था। इस दौरान उन्होंने कन्हैया रस्तोगी का जिक्र किया जिनकी यहां पर बड़ी कोठी हुआ करती थी। अब वहां कोई नहीं रह गया।


देश के हर शहर में एक घोषित बंटवारा हुआ

सुरेंद्र गौड़ ने बताया कि मैं ऑन द रिकॉर्ड कह रहा हूं कि देश का बंटवारा हो गया लेकिन एक घोषित बंटवारा प्रत्येक शहर में हो रहा है एक समुदाय योजनाबद्ध तरीके से रोड पर जा रही है वहीं दूसरा समुदाय जो अपने आप को कमजोर समझ रहे हो वह अपने लिए सुरक्षित स्थान तलाश कर पलायन करने को मजबूर है। मैं यह नहीं कह सकता कि दिलों में आखिर इतना फर्क क्यों आया, लेकिन जो कुछ हुआ उसके पीछे कुछ नेताओं की और कुछ जनता की बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव है जब तक इस देश में शक्ति के साथ जनसंख्या कानून लागू नहीं होगा आप कुछ भी कर लीजिए असंभव है।

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Published By : Ravindra Singh

पब्लिश्ड 15 December 2024 at 17:34 IST