अपडेटेड 16 August 2025 at 22:28 IST

Janmashtami: 1994 की काली रात, 6 जवान शहीद और बुझे कान्‍हा के दीये...अब 31 साल बाद UP के इस जिले में ‍फिर ‍फिर गूंजी कृष्‍ण के बांसुरी की धुन

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पुलिस लाइन और थानों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह वही जिला है जहां 31 साल पहले जन्माष्टमी की रात पुलिस महकमे के 6 जवान शहीद हो गए थे और तब से पुलिस विभाग के लिए यह पर्व अशुभ माना जाने लगा था।

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After 31 years, Kushinagar police are reviving a historic tradition celebrating Sri Krishna Janmashtami in all police stations
Janmashtami: 1994 की काली रात, 6 जवान शहीद और बुझे कान्‍हा के दीये...अब 31 साल बाद UP के इस जिले में ‍फिर ‍फिर गूंजी कृष्‍ण के बांसुरी की धुन | Image: Republic/AI

Shi Krishna Janmashtami: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व पुलिस लाइन और थानों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह वही जिला है जहां 31 साल पहले जन्माष्टमी की रात पुलिस महकमे के 6 जवान शहीद हो गए थे और तब से पुलिस विभाग के लिए यह पर्व अशुभ माना जाने लगा था। तीन दशक से अधिक समय तक जिस जन्मोत्सव की बांसुरी खामोश रही, अब एसपी संतोष कुमार मिश्रा के आदेश पर वही धुन दोबारा गूंजेगी।

आपको बता दें कि 13 मई 1994 को देवरिया से अलग होकर पडरौना (अब कुशीनगर) नया जिला बना था। जिले के पहले ही साल जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा था। थानों में झांकियां सजी थीं, मेले-उत्सव का माहौल था। लेकिन 29 अगस्त की रात सब कुछ बदल गया।सूचना मिली कि जंगल पार्टी के खूंखार डकैत बेचू मास्टर और रामप्यारे कुशवाहा डकैती और हत्या की योजना बना रहे हैं। जंगल पार्टी उस दौर में आतंक का पर्याय थी। पुलिस की दो टीमें सीओ पडरौना आरपी सिंह और एसओ तरयासुजान अनिल पांडेय के नेतृत्व में बांसी नदी किनारे पहुंचीं।

डकैतों की गोलियों ने नदी को रणभूमि बना दिया

पुलिस टीमों ने डकैतों को पकड़ने के लिए नाव से नदी पार की। पहली खेप तो सुरक्षित लौट आई, लेकिन जैसे ही दूसरी नाव बीच धारा में पहुंची, डकैतों ने बम और गोलियों से हमला कर दिया। नाविक भुखल और सिपाही विश्वनाथ यादव गोली लगते ही शहीद हो गए। नाव अनियंत्रित होकर डूब गई। पुलिसकर्मी पानी में तैरने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन डकैतों की गोलियां नदी को रणभूमि बना चुकी थीं। इस नरसंहार में एसओ अनिल पांडेय, एसओ राजेंद्र यादव, आरक्षी नागेंद्र पांडेय, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव और परशुराम गुप्त शहीद हो गए। नाविक भुखल भी मारा गया। कई पुलिसकर्मी किसी तरह तैरकर अपनी जान बचा पाए। उस रात का मंजर इतना भयावह था कि पूरा जिला सन्न रह गया।

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थानों में बुझ गए कान्हा के दीये

उस रात के बाद पुलिस महकमे ने तय किया कि अब जन्माष्टमी का पर्व थानों में नहीं मनाया जाएगा। जवानों के खून से सनी जन्माष्टमी कुशीनगर पुलिस के लिए मनहूस मानी गई। न झांकियां निकलीं, न मंदिरों में सजे कान्हा की झूलन। तीन दशक तक पुलिस लाइन और थानों में जन्माष्टमी की परंपरा पर ताला लटक गया।

31 साल बाद हालात बदल रहे हैं। पुलिस अधीक्षक संतोष मिश्रा ने सभी थानों को आदेश दिया है कि इस बार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पूरे पारंपरिक ढंग से मनाया जाए। थानों में झांकियां सजेंगी, कान्हा की पूजा होगी और पुलिस लाइन में सामूहिक आयोजन होगा। एसपी मिश्रा ने कहा “हमारे जवानों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता। जन्माष्टमी उनके बलिदान की याद दिलाती है। इस बार हम यह पर्व मनाकर अपने शहीद साथियों को श्रद्धांजलि देंगे और नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे।”

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(कुशीनगर से पीके विश्वकर्मा का रिपोर्ट)

Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 16 August 2025 at 22:28 IST