अपडेटेड 23 November 2024 at 00:03 IST
भारत की प्रगति की कुंजी है ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना: राष्ट्रपति मुर्मू
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत को विकसित देश बनाने के लिए शुक्रवार को लोगों के बीच ‘‘राष्ट्र सर्वोपरि’’ की भावना पैदा करने के महत्व पर जोर दिया।
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत को विकसित देश बनाने के लिए शुक्रवार को लोगों के बीच ‘‘राष्ट्र सर्वोपरि’’ की भावना पैदा करने के महत्व पर जोर दिया और कहा कि तीन पुराने आपराधिक कानूनों को बदलना, दिल्ली में राजपथ का नाम कर्तव्यपथ और राष्ट्रपति भवन में दरबार हॉल का नाम बदलकर ‘गणतंत्र मंडप’ करना उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
मुर्मू ने एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि यह नामकरण लोकतंत्र की प्राचीन परंपरा के अनुरूप है।
‘‘राष्ट्रवादी विचारकों’’ की संगोष्ठी ‘‘लोकमंथन-2024’’ के उद्घाटन के बाद इसे संबोधित करते हुये मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय में हाल ही में न्याय की देवी की नई प्रतिमा के अनावरण का जिक्र किया, जिसकी आंखों पर पट्टी हटी हुई है। उन्होंने कहा कि ऐसे सभी परिवर्तन औपनिवेशिक मानसिकता के उन्मूलन के सराहनीय उदाहरण हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि औपनिवेशिक शासकों ने न केवल ‘‘भारत का आर्थिक शोषण किया’’ बल्कि ‘‘इसके सामाजिक ताने-बाने को भी नष्ट करने का प्रयास किया।’’
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उन्होंने कहा, ‘‘(औपनिवेशिक) शासकों ने हमारी समृद्ध बौद्धिक परंपराओं की उपेक्षा की, उन्होंने नागरिकों में सांस्कृतिक हीनता का भाव पैदा किया। हमारी एकता को कमजोर करने के लिए ऐसी प्रथाएं हम पर थोपी गईं। सदियों की पराधीनता ने नागरिकों को गुलामी की मानसिकता में पहुंचा दिया। विकसित भारत के लिए ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना पैदा करना आवश्यक है।’’
उन्होंने नागरिकों द्वारा भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझने तथा इसकी अमूल्य परंपराओं को मजबूत बनाने में योगदान देने के महत्व पर बल दिया।
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उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को विभाजित करने और कृत्रिम मतभेद पैदा करने के प्रयासों का उद्देश्य एकता को कमजोर करना था। हालांकि, उन्होंने कहा कि भारतीयता की भावना ने राष्ट्रीय एकता की लौ को जीवित रखा है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम चाहे वनवासी हों, ग्रामीण अथवा शहर में रहने वाले लोग, हम पहले भारतीय हैं। राष्ट्रीय एकता की इसी भावना ने विभिन्न चुनौतियों के बावजूद हमे एकजुट रखा है।’’
भारत के प्राचीन वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए, मुर्मू ने कहा कि देश की धार्मिक मान्यताओं, कला, संगीत, चिकित्सा प्रणालियों, प्रौद्योगिकी, भाषा एवं साहित्य की व्यापक रूप से सराहना की गयी है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय दार्शनिक प्रणालियां वैश्विक समुदाय को आदर्श जीवन मूल्य प्रदान करने वाली थीं। इस गौरवशाली परंपरा को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी है।’’
राष्ट्रपति ने ‘लोकमंथन-2024’ के आयोजन के लिए सभी हितधारकों की सराहना की तथा इसे भारत की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और विरासत में एकता के सूत्र" को मजबूत करने का एक सराहनीय प्रयास बताया।
इस कार्यक्रम में तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा, केंद्रीय कोयला और खान मंत्री जी किशन रेड्डी, तेलंगाना महिला और बाल कल्याण मंत्री डी अनसूइया और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत शामिल हुए।
Published By : Kanak Kumari Jha
पब्लिश्ड 23 November 2024 at 00:03 IST