Published 22:37 IST, October 20th 2024
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ''अदालत विपक्ष का रोल नहीं निभा सकती"
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के पहले इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने अदालत की भूमिका को पर अपनी राय रखी।
अखिलेश राय
गोवा में आयोजित सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के पहले इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि जनता की अदालत के तौर पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को भविष्य के लिये कायम रखा जाना चाहिए लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने ये भी कह दिया कि जनता की अदालत होने का मतलब ये नहीं है कि हम संसद में विपक्ष की भूमिका निभा रहे है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लेकर होने वाली प्रतिक्रिया पर चीफ जस्टिस ने इस सम्मेलन में खुलकर अपनी बात रखी। CJI ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट किसी के पक्ष में फैसला देता है तो उन लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट शानदार काम कर रहा है। मगर जब उन्ही लोगों के खिलाफ फैसला आता है तो लोग कोर्ट की खूब आलोचना करते हैं। लेकिन फैसले की आलोचना क़ानूनी पहलुओं की जाए तो उससे हमें कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन आलोचना का आधार ये नहीं होना चाहिए कि फैसला उनके पक्ष में नहीं आया है। जजों का अधिकार है कि वो स्वतंत्र होकर मुकदमों में मौजूद तथ्यों और सबूतों के आधारपर फैसला दे।
सुप्रीम कोर्ट बडी कोर्ट है मगर बड़े लोगों के लिए नहीं- CJI
सुप्रीम कोर्ट पर अक्सर ये भी आरोप लगता रहा है कि बड़े लोगों या यूं कहें साधन सम्पन्न लोगों के मामले की जल्द सुनवाई करता है। इस आरोप का भी मुख्य न्यायाधीश ने साफ शब्दों मे जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर यह आरोप लगाता रहा है कि यह सिर्फ बड़े लोगों के लिए या साधन सम्पन्न लोगों के केस सुनता है। इस तरह का आरोप लगाना बहुत आसान रहा है क्योंकि ज्यादातर लोग के पास इस आरोप के परीक्षण की सुविधा नहीं थी, लेकिन जबसे कोर्ट की सुनवाई हो रही है लोगों को पता चल रहा है कि कोर्ट सभी मामलों पर सभी लोगों के मामले की सुनवाई उसी गंभीरता से करता है।
CJI ने आगे कहा कि कई बार सवाल इस बात को लेकर भी उठता है कि सुप्रीम कोर्ट बेहद छोटे मामलों को भी देखता है लेकिन हमें समझना चाहिए कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के सुप्रीम कोर्ट से अलग है, भारत का सुप्रीम कोर्ट। यह गरीब जनता की समस्याओं के समाधान के लिए बनाया गया था। आज बदलते वक़्त में भी समाज के कई तबके पिछड़े हैं। ऐसी सूरत में सुप्रीम कोर्ट का रोल महज सवैंधानिक विवादों का निपटारा करने का नहीं है। समाज में बदलाव सिर्फ बड़े विषयों से नहीं आता, बल्कि उन छोटे-छोटे केस से भी आता है, जिन्हें हम रोजाना निपटाते है।
एक महिला का दर्द बयां कर भावुक हुए जस्टिस संजय करोल
समारोह मे शामिल हुए सुप्रीम कोर्ट एक जज जस्टिस संजय करोल ने सुदूर ग्रामीण इलाके की एक महिला का फोटो सामने रखा। जस्टिस करोल ने उस इलाके के लोगों की सोच और उस महिला द्वरा झेले जा रहे दर्द को साझा किया। दरअसल उस फोटो को खुद जस्टिस करोल ने ही अपने कैमरे मे कैद किया था। महिला की दर्द भरी कहानी ये थी कि उसे पीरियडस के दिनों में घर से बाहर एक टेंट में रहने के लिए मजबूर किया गया था। महिला को पांच दिनों तक सिर्फ इसलिए घर मे नहीं घुसने दिया गया क्योंकि वो शारीरिक बदलाव से गुजर रही थी। जस्टिस करोल ने कहा कि यह उस भारत की तस्वीर है जिसमें हम रह रहे है। लेकिन हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम ऐसे लोग तक पहुंचे। हालांकि अपने भाषण में जस्टिस करोल ने इस बात का खुलासा तो नहीं किया कि ये तस्वीर उन्होंने कहां खीची थी लेकिन उन्होंने बिहार और त्रिपुरा के सुदूर पिछडे इलाकों का जिक्र जरूर किया जहां न्यायिक व्यवस्था अभी तक पहुंच नहीं पाई है।
जस्टिस संजय करोल ने कहा कि हमारी न्यायिक व्यवस्था का एप्रोच 'मेट्रो सेंट्रिक' है। हमें ये समझना होगा कि भारत सिर्फ दिल्ली या मुंबई नहीं है, संविधान के गार्जियन होने की नाते हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम उन लोगों तक पहुंचे जिनकी पहुंच जस्टिस सिस्टम तक नहीं हो पाई है या फिर जिन्हें इस बात की समझ ही नहीं है कि आखिर न्याय होता क्या है। ये हमारी अहम जिम्मेदारी है।
Updated 22:37 IST, October 20th 2024