अपडेटेड 26 July 2024 at 11:24 IST
25 Years Of Kargil War: 'अगर मौत मेरे रास्ते आया तो...' इस परमवीर का साहस देख कांपा था पाकिस्तान
25 Years Of Kargil War: 1999 में हुए करगिल युद्ध को जब भी याद किया जाएगा तो कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जिक्र जरूर होगा।
- भारत
- 3 min read

25 Years Of Kargil War: 26 जुलाई 2024 को करगिल युद्ध के 25 साल पूरे हो गए। इस अवसर पर पूरा देश भारत माता के उन सपूतों को याद कर रहा है जिन्होंने देश की मिट्टी की रक्षा के लिए अपनी जान की बलिदान दे दी। 1999 में हुए करगिल युद्ध (Kargil Yudh) को जब भी याद किया जाएगा तो कैप्टन मनोज कुमार पांडे (Captain Manoj Pandey) का जिक्र जरूर होगा। गोरखा रेजिमेंट (Gorkha Regiment) के कैप्टन मनोज पांडे से तो मौत भी हार गया था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा भी था कि इस युद्ध में अगर मौत मेरे रास्ते आई तो मैं उसे भी मार दूंगा।
गोरखा रेजिमेंट के कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुद्रा गांव में हुआ था। बचपन से ही मनोज ने भारतीय सेना (Indian Army) में जाने का मन बना लिया था। उनके सपने को साकार करने में परिवार वालों ने पूरा साथ दिया। लखनऊ के सैनिक स्कूल में उनका दाखिला हुआ। उन्होंने एनडीए में हिस्सा लिया और सफलता हासिल की। एनडीए के इंटरव्यू में जब मनोज पांडे से पूछा गया कि सेना में क्यों भर्ती होना चाहते हो तो उनका जवाब था- मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं।
'मैं मौत को ही मार दूंगा'
करगिल युद्ध में पाकिस्तान का सामना करना भारतीय सेना के लिए आसान नहीं था। दुश्मन ऊंचाई पर बैठा था और गोली कहां से बरस रही है इससे भारतीय फौजी अनजान थे। लेकिन कहते हैं ना कि युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं बल्कि हिम्मत से भी लड़ी जाती है। गोरखा रेजिमेंट के कैप्टन मनोज पांडे पाकिस्तान के लिए काल साबित हुए। उन्होंने अपनी बहादुरी से उनके एक के बाद एक बंकर को तबाह कर दिया। 24 साल के कैप्टन मनोज पांडे युद्ध के दौरान भी अपनी डायरी लिखा करते थे। उस डायरी में भी देशभक्ति झलकती थी। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, ''अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझपर हमला करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा।''
24 साल की उम्र में हुए शहीद
Advertisement
गोरखा रेजिमेंट के कैप्टन मनोज पांडे और उनकी टीम को खालूबार चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी मिली थी। इस ऑपरेशन से पहले भी मनोज पांडे ने करगिल युद्ध में दी गई जिम्मेदारी का डटकर सामना किया और जीत हासिल की। 2 और 3 जुलाई की रात को कैप्टन मनोज पांडे खालूबार के रास्ते 19700 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहलवान चौकी के लिए रवाना हुए।
दुश्मनों को पता लग गया था कि भारतीय जवान उनके बंकर के करीब पहुंच गए हैं। पाक सैनिकों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। गोलीबारी के बीच कैप्टन मनोज पांडे नहीं रुके और उन्होंने निडरता से जय महाकाली के नारे लगाते हुए आगे बढ़ा और दुश्मनों के तीन बंकर तबाह कर दिए। इस दौरान उन्हें कई गोलियां लगी। करगिल युद्ध में कई दिनों तक दुश्मनों से निडर होकर लड़ने के बाद आखिरकार कैप्टन मनोज पांडे का जवाब दे गया और महज 24 साल में वो शहीद हो गए। भारत के वीर सपूत मनोज पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
Advertisement
Published By : Ritesh Kumar
पब्लिश्ड 26 July 2024 at 10:27 IST