अपडेटेड 15 February 2024 at 18:09 IST

पूर्व सीईसी कुरैशी ने चुनावी बॉण्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लोकतंत्र के लिए वरदान बताया

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) एस. वाई. कुरैशी ने कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने वाला उच्चतम न्यायालय का फैसला लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान है।

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सुप्रीम कोर्ट | Image: PTI/File

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) एस. वाई. कुरैशी ने बृहस्पतिवार को कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने वाला उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान है। प्रमुख न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ ने कहा कि चुनावी बॉण्ड योजना संविधान के तहत प्रदत्त सूचना के अधिकार और भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करती है।

न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक को निर्वाचन आयोग को राजनीतिक फंडिंग के लिए छह साल पुरानी योजना में चंदा देने वालों के नामों का खुलासा करने का भी आदेश दिया। कुरैशी ने ‘पीटीआई-वीडियो’ से कहा, ‘‘इससे लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बहाल होगा। यह सबसे बड़ी बात है जो हो सकती थी। यह पिछले पांच-सात वर्षों में उच्चतम न्यायालय से हमें मिला सबसे ऐतिहासिक फैसला है। यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा वरदान है।’’

पूर्व सीईसी ने इस महत्वपूर्ण फैसले के लिए शीर्ष अदालत की सराहना करते हुए सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट भी डाला। उन्होंने लिखा, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनावी बॉण्ड को असंवैधानिक घोषित किया गया। उच्चतम न्यायालय को शुभकामनाएं!’’

सरकार द्वारा दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित इस योजना को राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था। कुरैशी ने कहा कि यह सुनिश्चित करना ठीक है कि चंदा बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से हो, लेकिन ‘हमारा तर्क यह था कि किसी राजनीतिक दल को दिए गए चंदे को गुप्त क्यों रखा जाना चाहिए?’

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उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा पारदर्शिता की मांग की है। उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को राजनीतिक दलों को चंदा देने दीजिए। वे 70 साल से चंदा दे रहे हैं, कोई समस्या नहीं है। अगर आपने विपक्षी दलों को चंदा दिया तो भी कोई प्रतिशोध नहीं हुआ। किसी ने कोई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई नहीं की है।’’

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कुरैशी ने कहा, ‘‘कॉर्पोरेट एक ही चुनाव में लड़ने वाली सभी दलों को चंदा देते रहे हैं। जो प्रणाली 70 वर्षों से सही काम कर रही थी, उसमें एकमात्र चीज यह थी कि 60-70 प्रतिशत चंदा नकद में दिया जाता था, जो चिंता का विषय था।’’

(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)

Published By : Sujeet Kumar

पब्लिश्ड 15 February 2024 at 18:09 IST