अपडेटेड 11 May 2025 at 22:18 IST

शिव तांडव की धुन से शुरू हुई 'ऑपरेशन सिंदूर' और पाकिस्तान से तनाव पर प्रेस कॉन्फ्रेंस, जानिए किसकी रचना

भारत के पाकिस्तान में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना के सैन्य संचालन महानिदेशक राजीव घई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की।

Follow : Google News Icon  

Shiv Tandav in Press Conference: भारत के पाकिस्तान में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना के सैन्य संचालन महानिदेशक राजीव घई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। बता दे इस खास प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत शिव तांडव की धून से हुई। प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, वाइस एडमिरल एएन प्रमोद और एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बातचीत की।

DDMO ने कहा- 'आप सबको पता है कि पहलगाम अटैक में किस क्रूरता से 26 लोगों को मारा गया था। लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने बताया, ऑपरेशन सिंदूर साफ तौर पर आतंकवाद के साजिशककर्ताओं और उनके ठिकानों को तबाह करने के लिए किया गया था। हमने सीमा पार टेरर कैंप और इमारतों को पहचाना। यह बहुत बड़ी समस्या में थे। इनमें से कई को पहले ही खाली कर दिया था, क्योंकि उन्हें हमारे एक्शन का डर था।'

शिव तांडव के बारे में भी जाने…

भगवान शिव को समर्पित शिव तांडव स्तोत्र को अत्यंत शक्तिशाली और फलदायक माना जाता है। खास तौर पर सोमवार के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र की रचना स्वयं लंकापति रावण ने की थी, जो भगवान शिव का परम भक्त था।पुराणों में वर्णन मिलता है कि एक बार रावण ने अपनी शक्ति के घमंड में आकर कैलाश पर्वत को ही उठा लेने की कोशिश की, जो भगवान शिव का निवास स्थान था। भगवान शिव ने रावण की यह उद्दंडता देखकर पर्वत को अपने अंगुष्ठ से दबा दिया। इससे रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया और वह असहनीय पीड़ा से व्याकुल हो उठा।

लेकिन रावण ने हार नहीं मानी। पीड़ा और क्रोध की अवस्था में भी उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत भावपूर्ण स्तुति गाना आरंभ किया। उसकी यह स्तुति इतनी प्रभावशाली और शक्तिशाली थी कि स्वयं भगवान शिव प्रसन्न हो उठे। यही स्तुति आगे चलकर शिव तांडव स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस स्तोत्र में रावण ने भगवान शिव के तांडव रूप, उनकी दिव्य महिमा और सौंदर्य का अत्यंत प्रभावशाली वर्णन किया है। यह स्तोत्र आज भी शिवभक्तों द्वारा श्रद्धापूर्वक पढ़ा और गाया जाता है।

Advertisement

शिव तांडव स्त्रोत

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी_
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर_
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा_
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्‍धगद्‍धगज्ज्वलद्_
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्‍धदुर्धरस्फुरत्_
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा_
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी_
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजङ्गमश्वसद्_
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल_
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

Advertisement

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्_
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥

यह भी पढ़ें : ऑपरेशन सिंदूर पर PM का साफ संदेश- पाक से गोली चली तो यहां से गोला चलेगा

Published By : Nidhi Mudgill

पब्लिश्ड 11 May 2025 at 18:51 IST