अपडेटेड 18 September 2023 at 20:54 IST

संसद में सुधांशु त्रिवेदी ने बताई लोकतंत्र की खूबसूरती, बोले- 'जो स्थान शरीर में आत्मा का है, वो भारत का विश्व में'

पुराने संसद में भारतीय लोकतंत्र के 75 साल पूरे हुए। 19 सितंबर से नए संसद भवन में सत्र चलेगा। पुराने संसद की विरासत को संजोते हुए सदस्यों ने 75 सालों की यादों का जिक्र किया।

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Dr Sudhanshu Trivedi BJP in Parliament
Dr Sudhanshu Trivedi BJP in Parliament | Image: self

पुराने संसद में भारतीय लोकतंत्र के 75 साल पूरे हुए। 19 सितंबर से नए संसद भवन में सत्र चलेगा। पुराने संसद की विरासत को संजोते हुए सदस्यों ने 75 सालों की यादों का जिक्र किया। लोकतंत्र का ये मंदिर बीते 75 सालों में कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी बना। पुराने संसद भवन के साथ जुड़ी यादों को सदस्यों ने सबके सामने रखा। भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने भी अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां किया।

खबर में आगे पढ़ें:

  • पुराने संसद भवन में आज का सत्र
  • तमाम सांसदों ने याद किया 75 साल का इतिहास
  • भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने भी सुनाया किस्सा

लोकतंत्र के मंदिर में 75 सालों के इतिहास पर भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, "स्वतंत्रता से लेकर आज तक की सभी बड़ी घटनाएं और निर्णय आंखों के सामने आ जाते हैं। महर्षि अरविंद ने ये कहा था कि जो स्थान शरीर में आत्मा का है, वो भारत का इस विश्व में है। इसका मतलब ये है कि जब भारत स्वतंत्र हुआ तो  पूरे विश्व की मानवता की सोई हउई आत्मा जीवंत हुई। लोकमान्य तिलक का पूर्ण स्वाराज्य का उद्घोष, महात्मा गांधी का हिन्द स्वाराज्य, सुभाष चंद्र बोस की सैन्य शक्ति और बाबा साहब अंबेडकर की लेखनी की शक्ति ये सब कहीं ना कहीं इसी विचार से प्रेरित है।"

उन्होंने कहा कि जब भारत ने तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू के नेतृत्व में ये देश ने आधी रात को नीयति के साथ अपना पहला मिलन देखा तो उसकी हमें बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। विश्व युद्ध-2 के दौर में दुनिया के कई देश तबाह बी हुई और विभाजित भी। हमने भी उस आजादी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी, जिसमें लाखों लोगों ने प्राण गंवाए थे। और डेढ़ से दो करोड़ लोग बेघर होकर इधर से उधर गए। जब इतनी बड़ी कीमत चुका कर हमें आजादी मिली तो उसके मूल्य को समझना चाहिए। ये सारे देश जो हमारे साथ आजाद हुए थे, ये एक दौर में बहुत तेजी से आगे बढ़ें, लेकिन आज हम कह सकते हैं कि मोदी जी के नेतृत्व में उस पंक्ति में आकर खड़े हुए हैं, जिस में हमारी गिनती उन देशों के साथ होती है।

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विपक्ष पर सुधांशु त्रिवेदी ने कसा तंज

भाजपा नेता ने संसद में विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा, "प्रतिपक्ष के नेता मनोज झा ने उल्लेख किया कि समाज में उन्हें कटुता दिखाई पड़ती है, जितनी विभाजन के समय भी नहीं थी। मैं कहना चाहता हूं कि विभाजन के समय कटुता नहीं दृढ़ता की कमी थी। जो दृढ़ता आज है अगर वो होती तो शायद विभाजन का विधान ही पास नहीं होता। यदि देश विभाजन का विधान स्वीकार नहीं होता तो भारत मां का अंचल पाकिस्तान नहीं होता।"

उन्होंने कहा कि 75 साल के इस कालखंड को मैं तीन कालखंड में विभाजित करूंगा। पहले 25 वर्ष 1947 से 1972, दूसरे 1972 से 1997 और तीसरे 25 वर्ष 1998 से आज तक का समय है। पहले 25 वर्ष में लोगों को संशय था कि भारत लोकतंत्र रह पाएगा या नहीं! मैं उनकी बात का समर्थन करता हूं। क्योंकि उस समय भारत गर्भावस्था में था। मगर जानते हैं कि इस बात का शक किनको था? उन्हीं को शक था जिन्हें भारत की परंपरा और व्यवस्था के बारे में पता नहीं था। 

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भाजपा नेता ने संसद में कहा कि दुनिया में जितने भी देश थे उनमें कहीं भी धार्मिक विषय पर डेमोक्रेसी का उल्लेख नहीं था। लेकिन सिर्फ हमारे यहां था, वैदिक काल में शास्त्रार्थ होता था। मैं कह सकता हूं कि इंडिया इज दी मदर ऑफ डेमोक्रेसी। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे अच्छे से समझा। लेकिन जब डेमोक्रेसी अपने प्रारंभिक कालखंड में थी तो कहा जाता है कि सत्ता प्रतिपक्ष ने बड़ा योगदान दिया।

सुधांशु त्रिवेदी बोले कि प्रतिपक्ष के रुप में जब भी देश के सामने चुनौती आई, हमने कभी इस बात की चिंता नहीं की कि हमारे साथ क्या हुआ? जब चीन के साथ 1962 में युद्ध हुआ तो हमारे भारतीय जनसंघ के रुप में और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इतना सहयोग किया कि नेहरू जी ने पूरी-पूरी प्रशंसा की और 26 जनवरी 1963 के परेड में बुलाया। 1965 के युद्ध में लाल बहादुर शास्त्री का सहयोग किया, उन्होंने ऑल पार्टी मीटिंग में जन संघ के अध्यक्ष नहीं गुरुजी को भी बुलायाथा। 1971 के युद्ध के समय अटल जी ने इंदिरा गांधी की पूरी-पूरी प्रशंसा की। विपक्ष के रुप में हमने लोकतंत्र को मजबूत करने में पूरी भूमिका निभाई। 

सुधांशु त्रिवेदी ने संसद को तीन कालखंडों में बांटा। दूसरे कालखंड का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1972 से 1997 के कालखंड में सरकारें बदलनी शुरू हुई। लोकतंत्र ने इमजेंसी का काला अध्याय देखा है, जो बहुत दर्दनाक और दुखद था। भारत का लोकतंत्र इतना जीवंत था कि जेपी के नेतृत्व में हमने वो आंदोलन खड़ा किया कि चाहे जितनी भी दमनकारी शक्ति थी उसका अंत हुआ और भारत में पहली बार केंद्र में नई सरकार आई। 1995 में जब गठबंधन बना तो सभी लोगों ने मिलकर बनाया लेकिन जल्द ही वो छल और प्रपंच में बिखर गया। प्रधानमंत्री जी सदन में नहीं आए। उस समय अटल जी ने एक कविता लिखी, लगी कुछ ऐसी नजर, बिखरा शीशे सा शहर, अपनों के मेले में मीत नही पाता हूं, गीत नहीं गाता हूं। आज मेला कई बार लग चुका है। पटना से लेकर, बेंगलुरु से लेकर मुंबई तक। मेले में कौन किसका मीत है ये तो अंदर बैठे लोगों को ही पता होगा।

भाजपा नेता ने कहा कि 1980 के दशक में ऐसा दौर देखा जब सत्ता में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई। विपक्ष की सरकार इस तर्क पर बर्खास्त कर दी गई कि केंद्र में तो आपकी पार्टी हार गई है इसलिए राज्य में भी आपको शासन करने का अधिकार नहीं। ये बी लोकतंत्र के लिए चुनौती का दौर था। एक दौर तब आया जब बहुमत की दो सरकारों के शासन में भारत ने आतंकवाद देखा।

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Published By : Kanak Kumari Jha

पब्लिश्ड 18 September 2023 at 20:53 IST