अपडेटेड 17 June 2024 at 16:02 IST
BJP के लिए कितना अहम है लोकसभा स्पीकर का पद? 1999 में एक वोट से गिर गई थी सरकार
26 जून को लोकसभा स्पीकर का चुनाव होना है, ऐसे में स्पीकर बीजेपी का कोई नेता होगा या फिर NDA के सहयोगी दलों का, इसे लेकर मंथन चल रहा है।
- भारत
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Lok Sabha Speaker Election: लोकसभा चुनाव के चुनावी नतीजों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार शपथ ले चुके हैं। मोदी कैबिनेट में विभागों के बंटवारे के बाद तमाम मंत्री बारी-बारी से अपना-अपना कामकाज संभाल चुके हैं। 24 जून से संसद का 18वां लोकसभा सत्र शुरू होना है। इस बीच स्पीकर चुनाव का मुद्दा भी गरमाता जा रहा है। लोकसभा सत्र से पहले नए स्पीकर को लेकर सियासी गुणाभाग शुरू हो गया है। लोकसभा का 'बॉस' बनने के लिए रविवार को NDA नेताओं की रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के आवास पर बैठक हुई। तो INDI गठबंधन के नेता भी ताल ठोक रहे हैं।
26 जून को लोकसभा स्पीकर का चुनाव होना है, ऐसे में स्पीकर बीजेपी का कोई नेता होगा या फिर NDA के सहयोगी दलों का, इसे लेकर मंथन चल रहा है। राजनाथ सिंह के घर पर NDA नेताओं की बड़ी बैठक में जेपी नड्डा के अलावा, अश्विनी वैष्णव, किरण रिजिजू, ललन सिंह और चिराग पासवान मौजूद रहे। सूत्रों की मानें तो बैठक में लोकसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव को लेकर रणनीति पर चर्चा की गई है।
INDI गठबंधन का सियासी खेल
INDI गठबंधन को भले ही लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन लोकसभा स्पीकर के लिए सियासी खेल शुरू कर दिया है। INDI गठबंधन ने NDA के सहयोगी को मोहरा बनाकर सियासी चाल खेलने की कोशिश की है। कांग्रेस कह रही है कि अगर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को अपनी पार्टी बचानी है, तो उनको अपना स्पीकर बनाना ही होगा। वहीं उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने भड़काऊ बयान देते हुए कहा है कि अगर NDA का लोकसभा स्पीकर नहीं बना तो TDP-JDU टूट जाएंगी।
तीन दल सबसे आगे
इन दोनों नेताओं के बयान पर पलटवार करते हुए केसी त्यागी ने INDI गठबंधन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि लोकसभा स्पीकर पद पर पहला अधिकार सत्तारूढ़ दल का है। बतादें, मौजूदा NDA सरकार में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद के लिए तीन सबसे बड़े दल हैं। इसमें सबसे पहले नंबर पर तो बीजेपी, दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार की जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली टीडीपी है।
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कैसे होता है स्पीकर का चुनाव?
भारत में किसी भी सरकार के गठन के बाद लोकसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के पद अहम होते हैं। लोकसभा स्पीकर पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए पहले नोटिस ऑफ मोशन की प्रक्रिया होती है। जिसमें लोकसभा सदस्यों को उम्मीदवारों के समर्थन प्रस्तावों का नोटिस एक दिन पहले लोकसभा सचिवालय में जमा किए जा सकते हैं। संविधान में लोकसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनावों के लिए न तो कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। यह चुनाव प्रक्रिया पूरी तरह से सदन पर निर्भर है।
सरकार के गठन के बाद लोकसभा स्पीकर चुनाव के लिए राष्ट्रपति एक तारीख निर्धारित करते हैं। इसके बाद स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव के लिए तारीख तय की जाती है। स्पीकर का चुनाव सदन के सदस्य मतदान से होता है। जिसमें बहुमत हासिल करना जरूरी होता है। ये ही वजह है कि सत्तारूढ़ दल का सदस्य ही स्पीकर बनता है। लोकसभा अध्यक्ष का पद कभी खाली नहीं होता है। स्पीकर की मौत या इस्तीफे को छोड़कर अगले सदन की शुरुआत तक स्पीकर अपने पद पर बने रहते हैं।
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बीजेपी के लिए क्यों अहम?
लोकसभा में स्पीकर के पद को सत्ताधारी पार्टी की ताकत माना जाता है। लोकसभा के कामकाज का पूरा कंट्रोल स्पीकर के ही पास होता है। लोकसभा कैसे चलेगी, इसकी पूरी जिम्मेदारी स्पीकर की होती है। संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत स्पीकर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का फैसला भी स्पीकर करता है।
लोकसभा स्पीकर के पास कुछ विशेष अधिकार भी होते हैं। इसकी अहमियत साल 1999 में देखने को मिली थी। जब लोकसभा स्पीकर ने अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल किया था और एक वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी। बीजेपी के पास इस बार लोकसभा में पुर्ण बहुमत नहीं है। अपने सहयोगी दलों की मदद से बीजेपी को सरकार चलानी होगी। ये ही वजह है कि बीजेपी के लिए स्पीकर का पद अहम है।
Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 17 June 2024 at 15:39 IST