अपडेटेड 10 July 2024 at 23:24 IST
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि 'धर्म तटस्थ' प्रावधान सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक अलग लेकिन सहमति वाले फैसले में कहा, '(अ.) सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम विवाहित महिलाओं सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है। (ब.) सीआरपीसी की धारा 125 सभी गैर-मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं पर लागू होती है।'
न्यायालय ने कहा कि जहां तक तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं का सवाल है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, जो पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है, विशेष विवाह अधिनियम के तहत सभी मुस्लिम महिलाओं पर लागू होती है, चाहे वे विवाहित हों या तलाकशुदा। पीठ ने कहा, 'यदि मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम कानून के तहत विवाहित हैं और तलाकशुदा हैं, तो सीआरपीसी की धारा 125 के साथ-साथ मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधान लागू होते हैं। मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के पास विकल्प है कि वे दोनों में से किसी एक कानून या दोनों कानूनों के तहत राहत मांगें। ऐसा इसलिए है कि 1986 का अधिनियम सीआरपीसी की धारा 125 का उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि उक्त प्रावधान के अतिरिक्त है।'
शीर्ष अदालत ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने गुजारा भत्ता के संबंध में परिवार अदालत के फैसले में हस्तक्षेप करने संबंधी समद का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने अपने 99 पृष्ठ के फैसले में कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार, अवैध तलाक के मामले में महिला अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है।
उसने कहा, 'गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए उक्त अधिनियम की धारा पांच के तहत राहत प्राप्त की जा सकती है या विकल्प के तौर पर ऐसी मुस्लिम महिला द्वारा सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उपाय का लाभ भी लिया जा सकता है।' पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिका के लंबित रहने के दौरान किसी मुस्लिम महिला का 'तलाक' हो जाता है तो वह सीआरपीसी की धारा 125 का सहारा ले सकती है या 2019 के कानून के तहत याचिका दायर कर सकती है।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, '2019 अधिनियम के प्रावधान सीआरपीसी की धारा 125 के अतिरिक्त उपाय प्रदान करते हैं, न कि उसके विरुद्ध।' न्यायमूर्ति मसीह ने पीठ के 43 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सीआरपीसी 1973 की धारा 125 के धर्मनिरपेक्ष प्रावधान और 1986 के अधिनियम की धारा 3 के पर्सनल लॉ प्रावधान, अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में समानांतर रूप से अस्तित्व रखते हैं।' उन्होंने कहा, 'इस प्रकार, सामंजस्यपूर्ण व्यवस्था बनी और 1986 के अधिनियम के अधिनियमित होने के बावजूद सीआरपीसी 1973 के प्रावधानों के तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला के लिए भरण-पोषण मांगने के अधिकार का अस्तित्व में बना रहा।'
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपने सहमति वाले दृष्टिकोण के लिए अलग से तर्क देते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला का पुनर्विवाह 1986 के अधिनियम के तहत न्यायोचित समझौते के उसके दावे को निरस्त नहीं करता है। उन्होंने कहा, 'इसलिए, मैं यह मानती हूं कि सीआरपीसी की धारा 125 को तलाकशुदा मुस्लिम महिला पर लागू होने के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता, चाहे वह किसी भी कानून के तहत तलाकशुदा हो।'
उन्होंने कहा, 'किसी महिला के विवाहित या तलाकशुदा होने के कानून के आधार पर उसे भरण-पोषण मिलने में कोई असमानता नहीं हो सकती। यह सीआरपीसी की धारा 125 या किसी व्यक्तिगत या अन्य कानून, जैसे कि 1986 के अधिनियम के तहत निर्धारित शर्तों के अनुसार गुजारा भत्ता की हकदार तलाकशुदा महिला के साथ भेदभाव करने का आधार नहीं हो सकता है।' न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारतीय महिलाओं के वास्तविक सशक्तीकरण के लिए उनकी वित्तीय सुरक्षा के साथ-साथ निवास की सुरक्षा को भी संरक्षित और मजबूत किया जाना आवश्यक है।
उन्होंने अपने 45 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'भारतीय महिलाओं की ‘वित्तीय सुरक्षा’ के साथ-साथ ‘निवास की सुरक्षा’ को भी संरक्षित और मजबूत किया जाना चाहिए। इससे ऐसी भारतीय महिलाओं को वास्तविक रूप से सशक्त किया जा सकेगा, जिन्हें ‘गृहिणी’ कहा जाता है और जो भारतीय परिवार की ताकत और रीढ़ हैं, जो भारतीय समाज की मूलभूत इकाई है, जिसे बनाए रखा जाना चाहिए और मजबूत किया जाना चाहिए।'
पब्लिश्ड 10 July 2024 at 23:24 IST