sb.scorecardresearch

Published 12:41 IST, September 17th 2024

MP: 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में कोर्ट की टिप्पणी, कहा...

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर ने बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई सजा के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए 11 सितंबर को तीखे लहजे में यह बात कही।

Follow: Google News Icon
  • share
Delhi High Court bans Crocodile International from using Lacoste’s trademark
MP: Court's comment in the case of rape of a 4-year-old girl, said | Image: Freepik

इंदौर, 17 सितंबर (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर में चार वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में टिप्पणी की है कि ऐसी आपराधिक घटनाओं में शामिल नाबालिगों के साथ 'काफी नरम बर्ताव’’ किया जा रहा है और विधायिका ने 2012 के निर्भया कांड की भयावहता से अब तक कोई सबक नहीं सीखा है।

पिता ने याचिका दायर की…

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर ने बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई सजा के खिलाफ दायर याचिका खारिज करते हुए 11 सितंबर को तीखे लहजे में यह बात कही। मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की ओर से उसके पिता ने यह याचिका दायर की।

दोषी ठहराया गया यह व्यक्ति 2017 में की गई दुष्कर्म की घटना के समय 17 साल का था और सजा सुनाए जाने के छह महीने बाद सात अन्य लड़कों के साथ एक बाल सुधार गृह से 2019 में भाग गया था।

उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने इस घटनाक्रम पर नाराजगी जताते हुए कहा,‘‘अदालत एक बार फिर यह देखकर व्यथित है कि इस देश में किशोरों के साथ काफी नरम व्यवहार किया जा रहा है और विधायिका ने निर्भया कांड की भयावहता से अब भी कोई सबक नहीं लिया है। यह ऐसे अपराधों से पीड़ित लोगों के लिए अत्यंत दुर्भाग्य की बात है।’’

अदालत ने कहा कि चार वर्षीय लड़की से दुष्कर्म के मौजूदा मामले में उपलब्ध प्रचुर चिकित्सकीय सबूतों के मद्देनजर यह पता लगाने के लिए किसी विशेषज्ञ की मदद लेने की आवश्यकता नहीं है कि दोषी का आचरण नाबालिग अवस्था में कितना ‘‘राक्षसी’’ था।

एकल पीठ ने कहा,‘‘...और इस व्यक्ति की मानसिकता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वह सुधार गृह से भाग चुका है और अब तक उसका कोई अता-पता नहीं है। शायद वह गली के किसी अंधेरे कोने में एक और शिकार करने के लिए छिपा हुआ है और उसे रोकने वाला कोई नहीं है।’’

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में हालांकि संवैधानिक न्यायालयों द्वारा बार-बार आवाज उठाई जा रही है, लेकिन पीड़ितों के लिए निराशा की बात है कि निर्भया कांड के एक दशक के बाद भी विधायिका पर इसका कोई असर नहीं हो सका है। इंदौर के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भारतीय दंड विधान और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत आठ मई 2019 को याचिकाकर्ता के बेटे को 10 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी और आदेश दिया था कि वह जब 21 साल का हो जाए, तो उसे जेल भेज दिया जाए।

बाल सुधार गृह से सात अन्य लड़कों के साथ 13 नवंबर 2019 को फरार हुए दोषी की ओर से याचिका दायर कर निचली अदालत के दंडादेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि फरार दोषी के खिलाफ वारंट जारी करते हुए उसे गिरफ्तार किया जाए ताकि वह चार वर्षीय लड़की के साथ दुष्कर्म के मामले में कारावास की बची सजा भुगत सके।

उच्च न्यायालय ने इस मामले में उसके आदेश की प्रति केंद्रीय विधि कार्य विभाग के सचिव को भेजने का भी आदेश दिया।

ये भी पढ़ें - विधायक बनने से CM की कुर्सी तक, यूं बढ़ता चला गया आतिशी का सियासी 'कद'

(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)

Updated 12:41 IST, September 17th 2024