अपडेटेड 1 August 2024 at 16:31 IST
मथुरा कृष्ण जन्मभूमि केस में हिंदुओं को मिली जीत, मुस्लिम पक्ष की अर्जी खारिज होने के बाद आगे क्या?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के दायर आदेश 7 नियम 11 के आवेदन को खारिज कर दिया और माना कि ये सभी 18 मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम द्वारा वर्जित नहीं हैं।
- भारत
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Mathura Krishna Janmabhoomi Case: मथुरा कृष्ण जन्मभूमि मामले में हिंदू पक्ष के लिए बड़ा फैसला लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में हिंदू पक्ष की तरफ से दायर 18 मुकदमे विचार करने योग्य हैं। ये कहते हुए हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को झटका दिया और उसकी याचिकाओं को खारिज कर दिया। हिंदू पक्षों की तरफ से दायर याचिकाओं को शाही ईदगाह मस्जिद प्रबंधन ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि ये मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम, सीमा अधिनियम और विशिष्ट राहत अधिनियम के तहत वर्जित हैं। हालांकि आज न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मुस्लिम पक्ष के आवेदन को खारिज कर दिया।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन कहते हैं, 'आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के दायर आदेश 7 नियम 11 के आवेदन को खारिज कर दिया है और माना है कि ये सभी 18 मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम द्वारा वर्जित नहीं हैं। अगली सुनवाई की तारीख 12 अगस्त है। अंतिम परिणाम ये है कि मुकदमे आगे बढ़ेंगे और स्थिरता के मुद्दे पर मुकदमे में हस्तक्षेप करने का इरादा और प्रयास खारिज कर दिया गया है। हम सुप्रीम कोर्ट के सामने कैविएट दाखिल करेंगे और अगर शाही ईदगाह मस्जिद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है, तो हम वहां मौजूद रहेंगे।
क्या है मथुरा जमीन विवाद?
इस विवाद की शुरुआत हिंदू पक्ष की ओर से दायर मूल मुकदमे से हुई, जिसमें दावा किया गया कि मथुरा शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि भूमि पर बनाई गई थी। सभी 18 मुकदमों में एक ही प्रार्थना है जिसमें मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर के साथ 13.37 एकड़ के परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। दावा किया गया कि इस दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए कई संकेत थे कि शाही-ईदगाह मस्जिद वास्तव में एक हिंदू मंदिर है। पिछले साल 14 दिसंबर को हाईकोर्ट ने हिंदू देवता भगवान श्री कृष्ण विराजमान और 7 अन्य हिंदू पक्षों की ओर से शाही ईदगाह मस्जिद के निरीक्षण के लिए कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति के लिए दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्देश पर रोक लगा दी थी। इस मामले की कार्यवाही 2023 में ट्रायल कोर्ट से हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दी गई।
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इस मुकदमे को सितंबर 2020 में मथुरा सिविल कोर्ट ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत मामले को स्वीकार करने पर रोक का हवाला देते हुए खारिज कर दिया था। हालांकि, मथुरा जिला न्यायालय के सामने अपील के बाद इस फैसले को पलट दिया गया। मई 2022 में मथुरा जिला न्यायालय ने माना कि मुकदमा विचारणीय है और मुकदमे को खारिज करने वाले सिविल कोर्ट के आदेश को पलट दिया था। बाद में मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने इस साल फरवरी में मस्जिद समिति की आपत्तियों पर सुनवाई शुरू की थी।
क्या कहते हैं हिंदू और मुस्लिम पक्ष
मुस्लिम पक्ष की दलील है कि लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं, जो 1968 में श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय था। जिसके तहत विवादित भूमि को विभाजित किया गया और दोनों समूहों को एक-दूसरे के क्षेत्रों (13.37 एकड़ के परिसर के भीतर) से दूर रहने को कहा गया। हालांकि ये मुकदमे कानून (उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963) के तहत पोषणीय नहीं है।
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हिंदू पक्षकारों का कहना है कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है और उस पर अवैध कब्जा है। अगर उक्त संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की। इसके अलावा हिंदू पक्ष कहता है कि पूजा स्थल अधिनियम यहां लागू नहीं होगा क्योंकि यह एएसआई संरक्षित स्मारक है।
Published By : Dalchand Kumar
पब्लिश्ड 1 August 2024 at 16:31 IST