अपडेटेड 31 March 2024 at 18:02 IST

Manipur: रिलीफ कैंप में रहीं, 10 रुपए तक नहीं थे... फिर हुआ कुछ ऐसा कि महिलाओं की बदल गई जिंदगी

सेल्फ हेल्प ग्रुप की सैकड़ों विस्थापित महिलाओं से उनके कौशल का आकलन करने और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उपलब्ध अवसरों का पता लगाने के लिए बातचीत की।

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women self help group
मणिपुर में कौशल प्रशिक्षण से कुशल हो रही महिलाएं | Image: x/ @NBirenSingh (rep)

Manipur News: मणिपुर में जातीय हिंसा की वजह से विस्थापित होकर राहत शिविरों में रहने को मजबूर महिलाओं को कई स्वयं सहायता समूह अगरबत्ती, मोमबत्ती और कीटाणुनाशक बनाने जैसे कौशल-आधारित प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में मदद मिल सके।

पूर्वी इंफाल जिले के वांगखेई राहत शिविर में रह रही सेरोउ क्षेत्र की 30 वर्षीय विस्थापित महिला कोंगखम मोनिका ने बताया कि उन्हें एक महिला स्वयं सहायता समूह से अगरबत्ती, मोमबत्ती बनाने का प्रशिक्षण मिला है।

तीन बच्चों की मां मोनिका ने बताया, ‘‘मई में हमारे घर जलाए जाने के बाद से हम इस शिविर में रह रहे हैं... और पूरी तरह से दूसरों की मदद पर निर्भर थे। जब हम पहली बार यहां आए थे तो हमारे पास दस रुपये भी नहीं थे। कांगलेईपाक महिला बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति लिमिटेड नामक एक महिला स्वयं सहायता समूह ने कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया और हमें कीटाणुनाशक, अगरबत्ती, मोमबत्ती और पैकेजिंग के तरीके सिखाए ताकि हम इन कौशल का उपयोग आजीविका कमाने के लिए कर सकें।’’

उन्होंने बताया कि इन उत्पादों को बनाने के लिए आवश्यक कच्चा माल स्थानीय स्वयंसेवियों द्वारा दिया जाता है जो राहत शिविर का संचालन करने में मदद करते हैं।  मोनिका ने बताया कि बिक्री से होने वाला मुनाफा विस्थापित व्यक्तियों को मिलता है। उन्होंने बताया, ‘‘कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम से हमें थोड़े पैसे कमाने में मदद मिली है। पहले जब हम शिविर में आये तो हमारे पास कुछ नहीं था, पूरी तरह से दूसरों की मदद पर निर्भर थे। लेकिन अब भले ही चुनौती है लेकिन हम कोशिश कर रहे हैं।’’

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मोनिका के मुताबिक स्थानीय प्रशासन ने उत्पादों को बेचने के लिए दुकानें भी बनाई है। इसी तरह का कौशल प्रशिक्षण ‘एटा: नॉर्थ ईस्ट विमेन नेटवर्क’ द्वारा प्रदान किया जा रहा है, जो एक गैर-लाभकारी समूह है। संगठन ने मणिपुर हिंसा के विस्थापितों की सहायता के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं।एटा के न्यासी समोम बीयरजुरेखा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हिंसा भड़कने के बाद, हमने विष्णुपुर जिले में 26 राहत शिविरों में सर्वेक्षण किया, जो राज्य में सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने सैकड़ों विस्थापित महिलाओं से उनके कौशल का आकलन करने और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उपलब्ध अवसरों का पता लगाने के लिए बातचीत की।’’

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समोम ने कहा, ‘‘हमारा उद्यम पूरी तरह से एक स्वैच्छिक उद्यम है। हमने विशिष्ट हस्तनिर्मित वस्तुओं के लिए व्यक्तियों के साथ समझौता किया और उनकी सेवा ली। कार्यक्रम के बाद, हम अपने स्वयं के धन से कच्चे माल की खरीद के लिए आवश्यक प्रारंभिक पूंजी प्रदान करते हैं। हम शिविर में रह रहे लोगों से भी आग्रह करते हैं कि वे अपने उत्पाद उचित मूल्य पर बेचे। हालांकि, हम एक कदम आगे बढ़ते हैं, और वस्तुओं को बेचने में उनकी सहायता करते हैं।’’

उन्होंने दावा किया कि एटा ने महिला सशक्तीकरण के अपने मिशन के तहत कम से कम 29 करघे खरीदे हैं और लाभार्थियों को वितरित किए हैं। मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद 50,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं और इनमें से ज्यादातर पांच इंफाल घाटी जिलों और तीन पहाड़ी जिलों के राहत शिविरों में रह रहे हैं।

अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पिछले साल तीन मई को पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था जिसके बाद जातीय हिंसा भड़क गई थी और अब तक कुल 219 लोग मारे गए हैं। राज्य की कुल आबादी में 53 प्रतिशत मेइती हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं जबकि नगा और कुकी सहित आदिवासियों की आबादी 40 प्रतिशत है जो मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

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Published By : Kiran Rai

पब्लिश्ड 31 March 2024 at 18:02 IST