अपडेटेड 18 January 2025 at 23:23 IST
महाकुंभ : जूना अखाड़े में 1,500 से ज्यादा नागा संन्यासियों का दीक्षा संस्कार
सबसे अधिक 5.30 लाख नागा संन्यासियों वाले जूना अखाड़ा में शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई और प्रथम चरण में 1500 अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है।
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सबसे अधिक 5.30 लाख नागा संन्यासियों वाले जूना अखाड़ा में शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई और प्रथम चरण में 1,500 अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि गंगा के तट पर श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों को नागा दीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो गई। पहले चरण में 1,500 अवधूतों को नागा दीक्षा दी जा रही है।
उन्होंने बताया कि जूना अखाड़ा, संन्यासी अखाड़ों में सबसे अधिक नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा है। इस अखाड़े में निरंतर नागा साधुओं की संख्या बढ़ रही है। नागा संन्यासी बनने में सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है और उसे तीन साल तक गुरुओं की सेवा करनी होती है और अखाड़ा के नियमों को समझना होता है।
पुरी ने बताया कि इस अवधि में ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। यदि अखाड़ा और उस व्यक्ति का गुरु इस बात को लेकर निश्चिंत हो जाते हैं कि वह दीक्षा का पात्र हो गया है तो उसे ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि महाकुंभ में गंगा किनारे उसका मुंडन कराने के साथ उसे 108 बार गंगा नदी में डुबकी लगवाई जाती है और अंतिम प्रक्रिया में उसका पिंडदान और दंडी संस्कार आदि शामिल होता है।
पुरी ने बताया कि अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं। प्रयागराज के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी और नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है। इन्हें अलग-अलग नाम से केवल इसलिए जाना जाता है, जिससे उनकी यह पहचान हो सके कि किसने कहां दीक्षा ली है।
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Published By : Nidhi Mudgill
पब्लिश्ड 18 January 2025 at 23:23 IST