अपडेटेड 2 November 2025 at 19:34 IST
LVM3 की दिखी ताकत, ISRO ने पहली बार 4,000 किलो से भारी सैटेलाइट स्पेस में भेजा, आगे इंसानों को भेजने के लिए होगा इस्तेमाल!
इसरो LVM-3 लॉन्च व्हीकल की क्षमता बढ़ाने पर काम कर रहा है, खासकर यह देखते हुए कि इसका इस्तेमाल देश के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए किया जाएगा।
- भारत
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इसरो ने आज शाम एक कम्युनिकेशन सैटेलाइट CMS-03 को अंतरिक्ष में भेजा। इसके लिए सबसे बड़े रॉकेट LVM-3 का इस्तेमाल किया गया। यह पहली बार है कि इसरो ने 4,000 किलो से अधिक वज़न वाले सैटेलाइट को दूर जिओसिन्क्रोनस ट्रांसफर ओरबिट में स्थापित किया है। CMS-03, एक मल्टीबैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट है, जिसका वज़न 4,410 किलोग्राम है। इसे पृथ्वी की सतह से लगभग 29,970 किमी x 170 किमी की ट्रांसफर ओरबिट में स्थापित किया गया है।
गगनयान मिशन के लिए जगी उम्मीद
अब तक, इसरो को अपने भारी सैटेलाइट के लॉन्च के लिए अन्य देशों की निजी अंतरिक्ष एजेंसियों को ठेका देना पड़ता था। इस लॉन्च को LVM3 रॉकेट की बढ़ती क्षमता की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। आने वाले समय में गगनयान मिशन में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
LVM-3, जो कि लॉन्च व्हीकल है, ठोस, तरल, साथ ही क्रायोजेनिक-ईंधन इंजनों का इस्तेमाल करके पृथ्वी की निचली ऑरबिट में 8,000 किलोग्राम तक और जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ओरबिट में 4,000 किलोग्राम तक भार को स्थापित कर सकता है। इससे पहले भारत के पिछले भारी सैटेलाइट को अन्य निजी कंपनियों द्वारा ऑरबिट में स्थापित किया गया था।
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आपको बता दें कि इसरो LVM-3 लॉन्च व्हीकल की क्षमता बढ़ाने पर काम कर रहा है, खासकर यह देखते हुए कि इसका इस्तेमाल देश के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए किया जाएगा।
इसरो इन चीजों पर कर रहा काम
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एक तरीका रॉकेट के तीसरे या क्रायोजेनिक अपर स्टेज द्वारा पैदा किए गए थ्रस्ट को बढ़ाना है, जो सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ओरबिट में स्थापित करने के स्पीड का लगभग 50% होता है। वर्तमान में लॉन्चिंग व्हीकल में इस्तेमाल किया जा रहा C25 स्टेज केवल 28,000 किलोग्राम प्रोपैलेंट ले जा सकता है, जो 20 टन का थ्रस्ट पैदा करता है। नया C32 स्टेज 32,000 किलो ईंधन ले जाने और 22 टन का थ्रस्ट पैदा करने में सक्षम होगा।
अंतरिक्ष एजेंसी सेमी-क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल करने पर भी विचार कर रही है। एक क्रायोजेनिक इंजन ईंधन के रूप में अत्यधिक कम तापमान पर तरलीकृत गैसों का इस्तेमाल करता है । एक सेमी-क्रायोजेनिक इंजन एक तरलीकृत गैस और एक लिक्विड प्रोपैलेंट का इस्तेमाल करता है। इसरो ने एक रिफाइन कैरोसिन ऑइन और तरल ऑक्सीजन-आधारित सेकंड स्टेज का इस्तेमाल करने की योजना बनाई है। यह न केवल लॉन्चिंग व्हीकल की क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि यह सस्ता भी हो सकता है।
नए इंजन के साथ, यह व्हीकल वर्तमान 8,000 किलो के बजाय लगभग 10,000 किलोग्राम को पृथ्वी की निचली ऑरबिट में ले जाने में सक्षम होने की संभावना है। अंतरिक्ष एजेंसी लूनर मॉड्यूल लॉन्च व्हीकल (LMLV) नामक एक नया व्हीकल विकसित करने पर काम कर रही है जो पृथ्वी की निचली ऑरबिट में 80,000 किलो तक ले जाने में सक्षम होगा। इसे मुख्य रूप से मनुष्यों को चंद्रमा पर भेजने के मिशनों को अंजाम देने के लिए डिज़ाइन किया जा रहा है।
Published By : Subodh Gargya
पब्लिश्ड 2 November 2025 at 19:34 IST