अपडेटेड 22 May 2025 at 22:33 IST
देश के किस राज्य में है वो गांव? जहां 6 महीने नीचे तो 6 महीने पहाड़ पर रहते हैं लोग, जानिए वजह
क्या कभी आपने किसी ऐसे गांव का नाम सुना है जहां 6 महीने तक गांव के लोग गांव में रहें और 6 महीने के बाद गांव छोड़कर पहाड़ों पर चले जाएं। तो चलिए आज हम आपको देश के उस गांव के बारे में बताते हैं जहां लोग 6 महीने गांवों में रहते हैं और 6 महीने तक गांव के ऊपरी पहाड़ों पर जाकर जीवन यापन करते हैं। इतना ही नहीं वो अपने साथ अपने मवेशियों को भी ले जाते हैं।
- भारत
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अब तक हमने 6-6 महीने में राजधानी बदलने की परंपरा जम्मू-कश्मीर में देखी थी जहां 6 महीने तक श्रीनगर राजधानी होती है और 6 महीने तक जम्मू लेकिन क्या कभी आपने किसी ऐसे गांव का नाम सुना है जहां 6 महीने तक गांव के लोग गांव में रहें और 6 महीने के बाद गांव छोड़कर पहाड़ों पर चले जाएं। तो चलिए आज हम आपको देश के उस गांव के बारे में बताते हैं जहां लोग 6 महीने गांवों में रहते हैं और 6 महीने तक गांव के ऊपरी पहाड़ों पर जाकर जीवन यापन करते हैं। इतना ही नहीं वो अपने साथ अपने मवेशियों को भी ले जाते हैं। अब आप ये सोचकर हैरान हो रहे होंगे कि आखिर वो गांव कहां है? किस राज्य के किस जिले में है? तो हम आपकी जिज्ञासा को शांत करते हुए बता ही देते हैं कि ये गांव राजस्थान के भरतपुर जिले में है। आज हम इस ऑर्टिकल में आपको इस गांव के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं।
राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील का 'मोर तालाब' गांव यह गांव ऐतिहासिक विजयगढ़ दुर्ग की तलहटी में अरावली पहाड़ियों की ऊंचाइयों पर समुद्र तल से लगभग 800 फीट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। इस गांव की सबसे खास बात है कि यहां पर रहने वाले लोग एक साल में दो बार अपना ठिकाना बदलते हैं। इस पूरे गांव की आजीविका पशुपालन पर निर्भर है। यहां की भौगोलिक परिस्थिति कुछ ऐसी है कि गांव वालों को 6 महीने गांव में तो 6 महीने तक पहाड़ों पर आजीविका के लिए गुजारा करना पड़ता है। यहां की परिस्थितियां कुछ ऐसी होती हैं कि गर्मियों के दिनों में यहां पर पानी का अभाव हो जाता है जिसकी वजह से यहां रहने वाले लोग अपने परिवार और पशुओं सहित पहाड़ी पर स्थित पुराने घरों में चले जाते हैं।
बरसात के महीने में आती इस गांव में नई ऊर्जा
राजस्थान के 'मोर तालाब' गांव में हर साल बरसात के महीने एक नई ऊर्जा और जीवन लेकर आते हैं। जैसे ही बादल बरसते हैं और चारों ओर हरियाली छा जाती है, गांव के लोग अपने परिवार और पशुओं को लेकर पहाड़ियों की ओर रूख करते हैं। वहां पुराने समय से बने उनके पारंपरिक घर होते हैं, जो विशेष रूप से इन महीनों में उपयोग किए जाते हैं। इन ऊंचाई पर बसे घरों में रहना न केवल मौसम के अनुकूल होता है, बल्कि वहां पानी की भी बेहतर उपलब्धता होती है। हरे-भरे चारागाहों में पशुओं को भरपूर चारा और ताजा पानी मिलता है, जिससे उनका स्वास्थ्य सुधरता है और उत्पादन भी बढ़ता है। यह समय गांव के लोगों के लिए प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव और पारंपरिक जीवनशैली में लौटने का प्रतीक होता है।
पानी की कमी से बदलते हैं जगह, आज भी अपनी संस्कृति से जुड़े हुए
यह कहानी एक ऐसे गांव की है, जो अपनी समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। गर्मियों की शुरुआत होते ही, जब पानी और अन्य आवश्यक सुविधाओं की कमी होने लगती है, तो गांववाले अपने पहाड़ी घरों को छोड़कर नीचे मैदान में स्थित अपने दूसरे घरों में आ जाते हैं। यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी पहले थी। मोर तालाब नामक यह गांव न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि इसका इतिहास भी गौरवपूर्ण रहा है। यहां करीब 200 से अधिक गुर्जर परिवार बसे हुए हैं, जो आज भी अपनी जड़ों, संस्कृति और मिट्टी से गहराई से जुड़े हुए हैं। इन गांववासियों की आजीविका का मुख्य स्रोत पशुपालन है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।
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Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 22 May 2025 at 22:26 IST