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अपडेटेड 26 June 2025 at 13:26 IST

मेट्रो सिटी की लाइफ कितनी महंगी? 70 लाख की सैलरी पर भी नहीं हो पा रहा गुजारा; शख्स ने सोशल मीडिया पर शेयर किया दुःख

Metro City Cost of Living: गुड़गांव के इनवेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहूजा की एक LinkedIn पोस्ट ने इंटरनेट पर हलचल मचा दी है। इस पोस्ट में उन्होंने यह सवाल उठाया कि आख़िर क्यों लाखों रुपये कमाने वाले लोग भी महीने के अंत तक आर्थिक दबाव में रहते हैं?

Reported by: Ravindra Singh
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मेट्रो सिटी की लाइफ कितनी महंगी? 70 लाख की सैलरी पर भी नहीं हो पा रहा गुजारा;शख्स ने सोशल मीडिया पर शेयर किया दुख | Image: Meta- AI

Inflation in Metro City: मेट्रो सिटीज में बढ़ती लैविश लाइफस्टाइल के चलते फ्लैट की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। इस लाइफस्टाइल की वजह से लोगों के खर्च में अपरंपार बढ़ोत्तरी हुई है इस वजह से लोगों की इनकम से खर्च कहीं ज्यादा आगे निकल गया है।  हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक युवक ने अपने दोस्त की कहानी साझा की, जिसने इस जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया। इस शख्स ने लिखा, 'मेरे दोस्त की सालाना आय 20 लाख रुपये है। हर महीने सवा लाख रुपये (इनहैंड) की अच्छी खासी तनख्वाह मिलती है। लेकिन इतने पैसों के बावजूद भी वो अपना घर नहीं खरीद पाया है। वह अब भी किराए के मकान में रह रहा है।' ये कोई अकेला मामला नहीं है। गुड़गांव के इनवेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहूजा की एक हालिया सोशल मीडिया पोस्ट ने भी इसी दर्द को उजागर किया और देखते ही देखते वह पोस्ट वायरल हो गई।


सार्थक ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे आज के युवा, लाखों कमाने के बावजूद, मेट्रो सिटीज़ में स्थिरता और घर का सपना पूरा नहीं कर पा रहे। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस पीढ़ी की हकीकत है जो ऊंचे पैकेज और शानदार नौकरियों के बावजूद महंगाई, किराए और होम लोन की बड़ी किस्तों के बीच जूझ रही है। गुड़गांव के इनवेस्टमेंट बैंकर सार्थक आहूजा की एक हालिया लिंकडेन पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। इस पोस्ट में उन्होंने एक चौंकाने वाली लेकिन सच्ची बात सामने रखी, आज के शहरी भारत में 70 लाख रुपये सालाना कमाना भी मिडिल क्लास जिंदगी आराम से जीने के लिए काफी नहीं है। सार्थक ने अपनी पोस्ट में विस्तार से बताया कि कैसे मेट्रो शहरों में रहने वाले प्रोफेशनल्स, चाहे वे लाखों कमा भी रहे हों, असल में फाइनेंशियल प्रेशर में जी रहे हैं।

सोशल मीडिया पर सार्थक की पोस्ट

सार्थक ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, 'अगर कोई व्यक्ति 70 लाख रुपये सालाना कमा रहा है, तो उसमें से लगभग 20 लाख रुपये इनकम टैक्स में चला जाता है।' बाकी बचे 50 लाख में उसे किराया, बच्चों की फीस, गाड़ी की ईएमआई, मेडिकल खर्च, बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल और बाकी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करनी होती हैं। अगर कोई घर खरीदना चाहे, तो आज के समय में मेट्रो शहरों में फ्लैट की कीमतें इतनी अधिक हैं कि होम लोन की ईएमआई ही उसकी इनकम का बड़ा हिस्सा निगल जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि लगातार बढ़ती 'लिविंग कॉस्ट', महंगी प्रॉपर्टी और मॉर्डन लाइफस्टाइल की अपेक्षाएं आज के मध्यमवर्गीय पेशेवरों को एक अनदेखी आर्थिक तंगी की ओर धकेल रही हैं।

लोगों के दिलों को छू गई सार्थक की ये पोस्ट

सार्थक की यह पोस्ट इसलिए लोगों को छू गई क्योंकि यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं कर रही थी। यह उस मानसिक और आर्थिक दबाव को उजागर कर रही थी, जिससे आज का हर मध्यमवर्गीय युवा गुजर रहा है, चाहे वह कितनी भी अच्छी तनख्वाह क्यों न कमा रहा हो। इसके बाद नौकरी छूटने का डर अलग से लगा रहता है। सार्थक आहूजा, गुड़गांव के एक इनवेस्टमेंट बैंकर, की LinkedIn पोस्ट ने देश के शहरी मध्यम वर्ग की आर्थिक सच्चाई को उजागर कर दिया है। उन्होंने बताया कि भले ही किसी की सालाना कमाई 70 लाख रुपये हो, लेकिन वह आर्थिक रूप से कितना दबाव महसूस करता है, यह समझना जरूरी है।

सार्थक ने लिखा कि इनकम टैक्स कटने के बाद हाथ में हर महीने लगभग ₹4.1 लाख आते हैं। यह रकम सुनने में बहुत लग सकती है, लेकिन जब शहरी जीवन के जरूरी खर्चों का हिसाब जोड़ा जाता है, तो यह आंकड़ा काफी छोटा लगने लगता है। उन्होंने अपने पोस्ट में एक आम शहरी प्रोफेशनल का खर्च कुछ इस तरह बताया

  • 1.7 लाख / महीना — एक 3 करोड़ के फ्लैट की होम लोन ईएमआई
  • 65,000 / महीना — कार लोन की किस्त
  • 50,000 / महीना — इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों की फीस
  • 15,000 / महीना — घरेलू मेड और घरेलू मदद का खर्च


इनके बाद भी कई जरूरी खर्च बाकी

इन जरूरी खर्चों के बाद बचते हैं महज ₹1 लाख। लेकिन इसी में से घर की ग्रॉसरी, पेट्रोल, बिजली बिल, मेडिकल खर्च, बाहर खाना, शॉपिंग और सालाना छुट्टियों के लिए सेविंग भी करनी है। सार्थक ने सवाल उठाया कि अगर 70 लाख कमाने वाला व्यक्ति भी खुद को आर्थिक रूप से असुरक्षित महसूस कर रहा है, तो यह केवल व्यक्ति की खर्च करने की आदतों की बात नहीं है, यह शहरी भारत की मौजूदा आर्थिक संरचना और जीवनशैली की महंगाई का प्रतिबिंब है। यह कहानी न केवल सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, बल्कि हजारों लोगों ने इससे सहमति जताई, क्योंकि यह आज की मिडिल क्लास रियलिटी है, जो आंकड़ों से नहीं, अनुभवों से समझी जाती है।

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पब्लिश्ड 26 June 2025 at 13:25 IST