अपडेटेड 6 February 2025 at 22:48 IST

'अपनी प्रक्रिया अपनाई': सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर सवाल उठाया

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जिन विधेयकों पर सहमति रोक ली गई थी, उन्हें सरकार के पास वापस नहीं भेजा गया

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'अपनी प्रक्रिया अपनाई': सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर सवाल उठाया | Image: PTI

सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल आर एन रवि की ओर से की जा रही देरी पर सवाल उठाया और कहा कि “ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी ही प्रक्रिया अपना ली है”। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, “ऐसा लगता है कि उन्होंने (राज्यपाल ने) अपनी प्रक्रिया अपना ली है। वह कहते हैं, ‘मैं मंजूरी नहीं दूंगा, लेकिन मैं आपसे विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए नहीं कहूंगा।’ सहमति को रोके रखना तथा उसे विधानमंडल के पास न भेजना, जिससे अनुच्छेद 200 का प्रावधान विफल हो जाता है, इसका कोई मतलब नहीं है।”

इसलिए पीठ ने विधेयकों पर मंजूरी न देने के मुद्दे पर राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद पर निर्णय के लिए कई महत्वपूर्ण प्रश्न तैयार किए। इनमें पहला सवाल है, “जब कोई राज्य विधानसभा विधेयक पारित कर उसे राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजती है और राज्यपाल अपनी मंजूरी रोक कर रखते हैं, लेकिन विधेयक को सदन में दोबारा पारित कर उनके पास भेजा जाता है, तो क्या राज्यपाल को उसे एक बार फिर रोक कर रखने का अधिकार है?”

अगला सवाल है, “क्या राष्ट्रपति के पास विधेयक को भेजने का राज्यपाल का विवेकाधिकार विशिष्ट मामलों तक सीमित है, या क्या यह कुछ निर्धारित विषयों से परे है?” पीठ ने कहा कि यह मुद्दे पर विचार करेगी कि विधेयक को मंजूरी देने के बजाय राष्ट्रपति के पास उसे भेजने के राज्यपाल के निर्णय को किन कारणों ने प्रभावित किया। एक अन्य प्रश्न है, “पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है और भारत के संवैधानिक ढांचे में क्या इसके लिए कोई जगह है।”

पीठ ने कहा कि जिन विधेयकों पर सहमति रोक ली गई थी, उन्हें सरकार के पास वापस नहीं भेजा गया तथा विधेयकों को विधानसभा को वापस किए बिना केवल यह घोषणा करना कि सहमति रोक ली गई है, संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन होगा। संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृत करने या रोकने का अधिकार देता है। राज्यपाल विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानमंडल को वापस भी भेज सकते हैं या उसमें बदलाव का सुझाव दे सकते हैं। पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने कुछ विधेयकों पर अपनी मंजूरी रोकने और कुछ को राष्ट्रपति के पास भेजने की घोषणा करने में तीन साल लगा दिए।

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उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से पूछा कि उन्होंने विधेयकों पर इतने लंबे समय तक क्यों रोक लगा रखी थी, लेकिन बाद में उन्होंने यह भी कहा कि वे इन पर अपनी सहमति नहीं दे रहे हैं और विधेयकों को सरकार के पास वापस क्यों नहीं भेजा।

पीठ ने कहा, “हम राज्यपाल को उतना छोटा नहीं बनाएंगे जितना याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है। हम उनकी शक्तियों को कम नहीं कर रहे हैं। आज, हम राज्य विधानमंडल द्वारा विधिवत पारित 12 विधेयकों को रोकने और दो विधेयकों को सीधे राष्ट्रपति को भेजने और फिर यह कहने की उनकी शक्ति की जांच कर रहे हैं कि मैं स्वीकृति नहीं देता। आपको हमें यह बताना होगा कि विधेयकों में ऐसा क्या अनुचित था कि उन्होंने ऐसा किया।” वेंकटरमणी ने कहा कि राज्य सरकार की दलीलों से यह दिखाने की कोशिश की गई कि राज्यपाल का पद छोटा और महत्वहीन है। पीठ ने हालांकि उनसे पूछा, “विधेयक में ऐसी कौन सी बात है जिसे जानने में राज्यपाल को तीन साल लग गए?”

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पीठ ने कहा, “हम राज्यपाल की शक्तियों को कम नहीं करना चाहते। हम आज राज्यपाल के कार्यों की जांच कर रहे हैं।” पीठ ने कहा कि राज्यपाल ने विधानसभा द्वारा पुनः अधिनियमित किये जाने के बाद दो विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया तथा कहा कि वह 10 विधेयकों पर अपनी स्वीकृति रोक रहे हैं। पीठ सात फरवरी को सुनवाई फिर से शुरू करेगी और उसने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि वह तथ्यात्मक रूप से यह बताएं कि राज्यपाल ने अपनी सहमति क्यों नहीं दी।

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Published By : Ravindra Singh

पब्लिश्ड 6 February 2025 at 22:48 IST