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Published 23:14 IST, August 31st 2024

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया केंद्र को झटका! 1987 के बेदखली के नोटिस को किया निरस्त

HC ने केंद्र के फैसले को मनमाना और दुर्भावनापूर्ण ठहराते हुए 37 साल पुराने नोटिस को निरस्त कर दिया, जिसमें मीडिया प्रतिष्ठान को परिसर से बाहर निकलने को कहा गया

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Delhi high court
दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला | Image: ANI

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित 'एक्सप्रेस बिल्डिंग' के लिए एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स के साथ लीज डीड को समाप्त करने के केंद्र के फैसले को मनमाना और दुर्भावनापूर्ण ठहराते हुए 37 साल पुराने उस नोटिस को निरस्त कर दिया है जिसमें मीडिया प्रतिष्ठान को परिसर से बाहर निकलने को कहा गया था। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने तीन दशक पहले केंद्र सरकार और एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स लिमिटेड दोनों द्वारा दायर मुकदमों पर सुनवाई करते हुए कहा कि 'अधिकारियों की कार्रवाई एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को कुचलने और इसकी आय के स्रोत को खत्म करने' का एक प्रयास था।

हालांकि, अदालत ने एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को इमारत के संबंध में कन्वर्जन (रूपांतरण) शुल्क, भूमि किराया और अतिरिक्त भूमि किराए के भुगतान के रूप में केंद्र को लगभग 64 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया। अदालत ने शुक्रवार को सुनाए गए अपने फैसले में कहा, '29 सितंबर, 1987 और 2 नवंबर, 1987 को जारी नोटिस के जरिए 17 मार्च, 1958 की तारीख वाले पट्टे की समाप्ति मनमानी और दुर्भावनापूर्ण है। इसने कहा, 'एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को पुनः प्रवेश नोटिस और किराएदारों (एक्सप्रेस बिल्डिंग में) को दिनांक 2 नवंबर, 1987 को जारी नोटिस को गैरकानूनी और अवैध घोषित किया जाता है।'


2 नवंबर, 1987 को केंद्र सरकार ने दायर किया था मुकदमा

अदालत ने कहा कि तदनुसार, इसे निरस्त किया जाता है। इसने कहा, 'भारत संघ भूखंड पर कब्ज़ा पाने का हकदार नहीं है।' वर्ष 1987 में उच्च न्यायालय में दायर अपने मुकदमे में, केंद्र ने हर्जाने और अन्य राहतों के साथ ‘एक्सप्रेस बिल्डिंग’ पर कब्ज़ा मांगा था। अधिकारियों ने शुरू में दावा किया था कि वह एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स से बकाया के रूप में 17,500 करोड़ रुपये वसूलने के लिए उत्तरदायी है, लेकिन अंततः दावा घटाकर 765 करोड़ रुपये कर दिया गया। दूसरी ओर, एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स ने 1988 में आवास और शहरी विकास मंत्रालय के तहत आने वाले निकाय भूमि और विकास अधिकारी (एल एंड डीओ) द्वारा जारी 2 नवंबर, 1987 के पुनः प्रवेश और बेदखली के नोटिस का विरोध करने के लिए एक अलग मुकदमा दायर किया था।


लीज डीड की समाप्ति और पुनः प्रवेश के नोटिस पर हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक

पट्टा समाप्ति और पुनः प्रवेश के नोटिस पर अंततः उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई। केंद्र ने अदालत को बताया कि उसने एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स द्वारा शर्तों का उल्लंघन कर संपत्ति का विभिन्न उपयोग करने के लिए इमारत को अपने कब्जे में लेने का फैसला किया है। जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 'पुन: प्रवेश नोटिस' पर विचार करने के समय 1985 में इन सभी मुद्दों पर पहले ही विचार किया था और निर्णय लिया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि मीडिया प्रतिष्ठान से केंद्र केवल 'रूपांतरण शुल्क' और 'अतिरिक्त भूमि किराया' ही वसूल सकता है, इसके अलावा और कुछ नहीं।


इमरजेंसी के दौरान निष्पक्ष भूमिका का परिणामः कोर्ट

अदालत ने कहा कि 2 नवंबर, 1987 को जारी नोटिस एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स को कभी तामील नहीं हुआ और इसकी जानकारी दूसरे अखबार की एक खबर से मिली। इसने फैसले की शुरुआत दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेल्सन मंडेला के इस कथन से की कि 'स्वतंत्र प्रेस लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है।' अदालत ने कहा, 'मामले में पक्षों के बीच विवाद 1975-1977 की आपातकाल अवधि के दौरान मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा निभाई गई निष्पक्ष और स्वतंत्र भूमिका के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा की गई कार्रवाई का परिणाम था।'

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Updated 23:14 IST, August 31st 2024