अपडेटेड 3 February 2024 at 12:24 IST
भारत रत्न से नवाजे जाएंगे लाल कृष्ण आडवाणी... जानिए राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता का सियासी सफर
LK Advani will Awarded by Bharat Ratna : राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता और भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने वाले लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न सम्मान दिया जाएगा।
- भारत
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Happy Birthday Lal Krishan Advani: भारतीय जनता पार्टी के लौह पुरुष कहे जाने वाले और पार्टी की नींव रखने वाले लाल कृष्ण आडवाणी को आज भारत रत्न सम्मान का ऐलान किया गया है। आडवाणी बीजेपी की नींव रखने वाले पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक थे। 96 वर्षीय आडवाणी पार्टी कार्यकर्ता से लेकर पार्टी अध्यक्ष तक की भूमिका निभा चुके हैं। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी को राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय किया था।
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म आठ नवंबर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके पिता श्री के डी आडवाणी और माँ ज्ञानी आडवाणी थीं। विभाजन के बाद भारत आ गए आडवाणी ने 25 फरवरी 1965 को 'कमला आडवाणी' को अपनी अर्धांगिनी बनाया। इनकी दो संतानें हैं।

Photo- PTI/File
हिन्दुत्व का बड़ा चेहरा, तैयार की सशक्त नेताओं की जमात
लाल कृष्ण आडवाणी को हिन्दुत्व के बड़े चेहरे के तौर पर जाना जाता है। राम मंदिर आंदोलन के मुख्य नेतृत्वकर्ताओं में से एक आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी के लिए एक सशक्त नेताओं की जमात खड़ी की जिसने भारतीय राजनीति में अपने कुशल नेतृत्व का लोह मनवाया। इन नेताओं में विनय कटियार से लेकर कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, दिवंगत अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक शामिल हैं।
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12 जून 1975 भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक दिन
लाल कृष्ण आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी के बाद जनसंघ के आखिरी अध्यक्ष (1973-77) थे। उन्होंने अपनी बायोग्राफी 'मेरा देश मेरा जीवन' में एक घटना का जिक्र करते हुए खुद बताया था कि वो ज्योतिष में भरोसा नहीं रखते हैं। 12 जून 1975 को भारतीय राजनीति में दो बड़ी घटनाएं हुईं जिससे कांग्रेस को जोरदार नुकसान हुआ और तत्कालीन जनसंघ काफी मजबूत हुई थी। इस दिन एक तरफ जहां इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया था तो वहीं गुजरात में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली थी।
ज्योतिषी की भविष्यवाणी से हिल गए आडवाणी
आडवाणी ने किताब में बताया कि गुजरात में हार और चुनाव में कदाचार मामले में इंदिरा गांधी के दोषी पाए जाने के बाद कांग्रेस में भारी निराशा का माहौल था जबकि दूसरे दलों में जश्न का माहौल था। ऐसे में जनसंघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का गठन किया गया जो माउंटआबू में की गई। इस बैठक में आडवाणी की मुलाकात महाराष्ट्र की कार्यकारिणी के सदस्य डॉक्टर वसंत कुमार पंडित से हुई। आडवाणी ने बड़े उत्साह से उनसे पूछा आपके सितारे अब क्या कह रहे हैं? यहां पर उनका जवाब सुनकर आडवाणी चौंक गए। पंडित ने कहा कि उनका निर्वासन हो सकता है।
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सच हुई भविष्यवाणी, टूटा आडवाणी का विश्वास
वसंत पंडित ने कहा कि भले ही कांग्रेस के सितारे गर्दिश में हो लेकिन आपका वक्त अच्छा नहीं चल रहा है और आपके सितारे यही कह रहे हैं। पंडित को खुद समझ में नहीं आ रहा था किये कैसे हो सकता है लेकिन सितारे तो यही कह रहे हैं। इसके बाद 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी गई और आडवाणी सहित तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में रहना पड़ा। आडवाणी लगभग 19 महीने तक जेल में रहे। इस घटना ने उन्हें हिलाकर रख दिया था।
आडवाणी ने बेटे को सियासत से दूर रखा
1989 में लोकसभा चुनाव होने थे पूरे देश में तैयारियां जोरों पर थीं। भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से ही अपनी पार्टी में भाई-भतीजावाद को दूर रखा था क्योंकि वो इसके विरोध में थे। ऐसे में आडवाणी ये नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र गांधी नगर से चुनाव लड़े जबकि ये हर कोई जानता था कि अगर आडवाणी के बेटे जयंत चुनाव लड़ते तो जरूर जीत जाते। विश्वंभर श्रीवास्तव की किताब 'आडवाणी के साथ 32 साल' में एक घटना का जिक्र करते हुए आडवाणी ने अहमदाबाद के पूर्व सांसद हरिन पाठक से कहा था,'जयंत गांधीनगर से आसानी से जीत सकते हैं, लेकिन मैं उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दूंगा।'

Photo - Twitter/ @IndiaHistorypic
वाजपेयी से पहली बार कब मिले थे लाल कृष्ण आडवाणी?
भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की दोस्ती किसी परिचय का मोहताज नहीं है, लेकिन हर किसी के दिमाग में ये सवाल जरूर आता है कि आखिर इन दोनों शख्सियत की पहली मुलाकात कब हुई होगी। ये बहुत ही दिलचस्प कहानी है। एक बार अटल जी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मुंबई जा रहे थे, वो भारत भर में घूम-घूम कर जनसंघ का प्रचार कर रहे थे तब कोटा में संघ प्रचारक लाल कृष्ण आडवाणी को इस बात का पता चला कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी यहां पहुंचने वाले तो वो उनसे मिलने पहुंच गए। अटल जी की तरह आडवाणी भी पेशे से पत्रकार थे। यहीं पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दोनों की मुलाकात करवाई थी। इस जोड़ी ने मिलकर देश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी।
ऐसा रहा आडवाणी का सियासी सफर
साल 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। आडवाणी इस पार्टी में स्थापना से लेकर 1957 तक सचिव के तौर पर जुड़े रहे। साल 1973 से 1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला। वो जनसंघ के आखिरी अध्यक्ष थे। इसके बाद साल 1980 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी बनाई और पहले अध्यक्ष अटल जी बने। 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद आडवाणी 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी निभाया।

Photo- Twitter/ @Digangana9
1990 में निकाली थी राम रथ यात्रा
बीजेपी के अध्यक्ष रहते हुए आडवाणी ने साल 1990 में राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। इस रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के आरोपियों में आडवाणी का नाम भी शामिल था लेकिन बाद में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई। साल 1998 से लेकर 2004 तक वो देश के गृहमंत्री रहे इसके अलावा 2009 का लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में एनडीए ने लड़ा था लेकिन इसमें उन्हें हार मिली।
Published By : Ravindra Singh
पब्लिश्ड 3 February 2024 at 12:04 IST