अपडेटेड 13 January 2023 at 17:45 IST

kalpavaas 2023: माघ मास में है कल्पवास की परंपरा, इसके कठोर नियम जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

ऋषि-मुनियों के साथ-साथ गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग भी कल्पवास को धारण करते हैं। कल्पवास के दौरान व्यक्ति को तन मन से भगवान का ध्यान करना होता है।

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भारतीय आश्रम परम्परा में गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हिंदू धर्म पुराणों में माना गया है कि वर्ष के 11 महीने दैनिक कार्यों और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए मनुष्य अगर एक महीने सांसारिक मोहमाया से दूर रहकर पवित्र नदियों के किनारे रहकर जप-तप और साधना करता है तो उसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मोक्ष की इसी लालसा को लेकर लाखों श्रद्धालु धर्म नगरी तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर एक महीने तक वास करते हैं जिसे कल्पवास कहते हैं।

एक माह तक त्याग और संयम का जीवन जीते हुए पूरे समय भगवान के नाम का सत्संग करने वाले कल्पवासियों की इस अनूठी दुनिया में धर्म-आध्यात्म, आस्था- समर्पण और ज्ञान व संस्कृति के तमाम रंग देखने को मिलते हैं। तीर्थों के राजा प्रयागराज में संगम किनारे इन दिनों आस्था का मेला लगा हुआ है। इस मेले में पतित पावनी गंगा में आस्था की एक डुबकी लगाकर पुण्य लाभ के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आ रहे हैं, लेकिन इनमें से हजारों ऐसे भी हैं जो जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति यानी मोक्ष की कामना के लिए संगम की रेती पर एक महीने का कल्पवास कर रहे हैं।

कल्पवास यानी घर गृहस्थी, जीवन और संसार की चिंताओं को छोड़कर सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की आराधना और मुक्ति के देवता यानी भगवान विष्णु की शरण में पहुंचने की लालसा। कल्पवास का फल जितना पुण्यदायी होता है, इसके नियम उतने ही कठिन होते हैं। कल्पवासियों की दिनचर्या में शामिल होता है तम्बुओं के अनूठे शहर में घास-फूस या टेंट का आशियाना, सुबह तारों की छांव से लेकर शाम तक तीन बार गंगा स्नान, खुद अपने हाथ का बना सिर्फ एक वक्त का सादा भोजन, नंगे पांव चलना और सोने के लिए रेत का बिछौना, सुबह ध्यान व भजन के साथ तुलसी का पूजन फिर पूरे दिन संतों-महात्माओं का सानिध्य और उनकी अमृतवाणी से निकले प्रवचन सुन उन्हें जीवन में आत्मसात करना। धन-ऐश्वर्य और अहम समेत हर तरह के सांसारिक मोह-माया का त्याग और संयमित जीवन शैली, सुबह से शाम तक सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रभु का गुणगान कभी भजन के जरिये तो कभी पूजा-आराधना, यज्ञ, जप-तप और स्नान-ध्यान के ज़रिये यानी पूरे का पूरा एक महीना ईश्वर को समर्पित। आस्था की इस नगरी में राजा-रंक, अमीर-गरीब और ऊंच-नीच के बीच का भेद मिट जाता है।

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संगम तट पर माघ माह में प्रकट होते हैं 33 करोड़ देवी-देवता

पुराणों के मुताबिक, ब्रह्मा ने तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर ही दशाश्वमेध यज्ञ के जरिये सृष्टि की रचना की थी।  सर्व कल्याण के देवता भगवान भोले शंकर यहां कई रूपों में विद्यमान हैं तो मुक्ति के देवता भगान विष्णु यहां गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में साक्षात वास करते हैं। यही वजह है कि धर्म की इस नगरी में संगम के तट पर हर साल माघ माह में खुद सभी 33 करोड़ देवी-देवता और 88 हजार ऋषि-मुनि भी लोगों के कल्याण के लिए यहां प्रकट हो जाते हैं, जिसके कारण यहां के कण-कण में भक्ति और आध्यात्म की ऐसी विलक्षण ऊर्जा पैदा कर देती है कि कल्पवास करने वाले श्रद्धालुओं का रोम-रोम भक्ति के सागर में डूब जाता है। मोक्षदायिनी गंगा का स्नान, ईश्वर को समर्पित संयमित व त्यागपूर्ण जीवन और संतों के मुख से निकलने वाली ज्ञान रुपी सरस्वती, ज्ञान, आस्था और समर्पण कि यह त्रिवेणी कल्पवासियों को न सिर्फ अलौकिक आनंद की अनुभूति कराती है बल्कि उन्हें जन्म-जन्मान्तर के पापों से छुटकारा दिलाकर जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति यानी मोक्ष प्रदान करती है।

12 वर्षों के कल्पवास से मिलता है बैकुंठ में स्थान

संगम की रेती पर लगातार 12 वर्षों तक कल्पवास करने वाले आस्थावान को पूरे एक कल्प की आराधना का पुण्य मिलता है और शरीर त्यागने के बाद उसे बैकुंठ में स्थान मिलता है। नियम-संयम से बिताया गया एक महीने कल्पवास करने वाले कल्पवासी आत्मा का परमात्मा से साक्षात संगम तो करता है ही, साथ ही वैज्ञानिक आधार पर भी उसके शरीर का काया-कल्प होता है।यानी कल्पवासियों को चारों पदार्थों यानी धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष सभी की प्राप्ति होती है।

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तम्बुओं के इस अनूठे शहर में सामाजिक नियम-कायदे-कानून के बिना ही आस्था का ऐसा रामराज्य स्थापित कर होता है जिससे किसी भी श्रद्धालु में न तो किसी प्रकार का कोई भय रह जाता है और न ही घर गृहस्थी की कोई चिंता। यही वजह है कि यहां आने वाले कल्पवासी न तो अपने तम्बुओं में ताला लगाते हैं और न ही उनमें कुछ पाने की चाहत रह जाती है। लालसा होती है तो सिर्फ संत-महात्माओं के सानिध्य की, उनके आशीर्वाद की और इस वैरागी जीवन में ईश्वर के और निकट पहुंचने की। कल्पवासियों के अनुसार मोक्ष तो उन्हें मृत्यु के बाद ही मिलता है लेकिन एक महीने का कल्पवास उन्हें अलौकिक आनंद की अनुभूति कराकर उनके इस जीवन को धन्य कर देता है।

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एक महीने का कल्पवास पूरा करने के बाद श्रद्धालु यहां महाराज हर्षवर्धन की परम्पराओं का पालन करते हुए सामर्थ्य के अनुसार अपना सर्वस्व दान कर देते हैं। कोई गऊदान करता है तो कोई केश-वेणी या शैया दान। यहां से साथ में वापस जाता है तो  वोसिर्फ एक महीने में अर्जित किया गया पुण्य और महीने भर आस्था के सागर में गोते लगाती यादें हैं। कल्पवास का संकल्प तो एक महीने में पूरा हो जाता है लेकिन यहां अर्जित किया गया पुण्य इस लोक ही नही परलोक में भी साथ रहता है। 

Published By : Digital Desk

पब्लिश्ड 13 January 2023 at 17:45 IST