अपडेटेड 14 August 2025 at 22:53 IST
Independence Day 2025: बंटवारे के समय सिर्फ जमीन-आबादी नहीं, शाही सवारी पर भी भिड़े थे भारत-पाकिस्तान, फिर टॉस कर हुआ था फैसला; जानें पूरी कहानी
जब भारत और पाकिस्तान बंटवारा हुआ तो दोनों इस बग्घी पर अपना-अपना दावा करने लगे। दोनों के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए कोई हाई अथॉरिटी नहीं थी। ऐसे में ये बग्घी किसकी होगी इसका फैसला टॉस के जरिये हुआ।
- भारत
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Traditional Buggy: साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय सिर्फ जमीन और आबादी ही नहीं बंटी बल्कि रुपये-पैसे से लेकर चल-अचल संपत्ति और यहां तक की शाही सवारी तक पर विवाद छिड़ गया था। इस दौरान सबसे दिलचस्प लड़ाई ब्रिटिश वायसराय की बग्घी को लेकर हुई जो आजाद भारत में राष्ट्रपति की आधिकारिक सवारी बन गई।
जानकारी के मुताबिक, काले रंग की भव्य बग्घी पर सोने की परत थी जो कि छह घोड़ों से खींची जाती थी। इस बग्घी के भीतर लाल मखमल सजावट थी। वहीं इसके बाहरी हिस्से पर उभरा हुआ अशोक चक्र अंकित था। ब्रिटिश शासन के दौरान इस बग्घी का इस्तेमाल वायसराय ऑपचारिक आयोजनों और वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन कहा जाता है) के ईर्द गिर्द घूमने के लिए किया करते थे।
टॉस से तय हुई बग्घी की किस्मत
जब भारत और पाकिस्तान बंटवारा हुआ तो दोनों इस बग्घी पर अपना-अपना दावा करने लगे। दोनों के बीच के विवाद को खत्म करने के लिए कोई हाई अथॉरिटी नहीं थी। ऐसे में ये बग्घी किसकी होगी इसका फैसला एक टॉस के जरिये किया गया। भारत के लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाकिस्तान के साहबजादा याकूब खान ने इसकी जिम्मेदारी टॉस पर छोड़ी। माना जाता है कि सिक्का उछला और टॉस भारत ने जीता और तभी से बग्गी देश के पास है।
देश की संप्रभुता और गौरव का प्रतीक बनी बग्घी
1950 में भारत के पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसी बग्घी में सवार होकर राजपथ पर हुई परेड में शामिल होने पहुंचे थे। बताया जाता है कि शुरुआती सालों में यह खास बग्घी गणतंत्र दिवस परेड, शपथ ग्रहण और बीटिंग द रिट्रीट जैसे प्रमुख आयोजनों का हिस्सा बनी रही। यह बग्घी सिर्फ एक सवारी भर नहीं रही, बल्कि देश की संप्रभुता और गौरव का प्रतीक बन चुकी थी।
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1984 के बाद फिर ऐतिहासिक वापसी?
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सुरक्षा के लिहाज से बग्घी का इस्तेमाल बंद कर दिया गया। जानकारी के अनुसार, इस बग्घी के बंद होने से पहले इसे आखिरी बार राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उपयोग किया था। इसके बाद बदलते समय के साथ इसकी जगह बुलेटप्रूफ कारों ने ले ली। लेकिन साल 2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में एक बार फिर बग्घी को सार्वजनिक समारोहों में शामिल किया गया। उनके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के लिए संसद तक इस बग्घी की सवारी की।
40 साल बाद परेड में फिर हुआ बग्घी का उपयोग
साल 2024 में 76वें गणतंत्र दिवस 2024 के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंडोनेशियाई समकक्ष प्रबोवो सुबियांतो के साथ बग्घी की सवारी की और परेड समारोह के लिए पारंपरिक बग्गी में सवार होकर कार्तव्य पथ पर पहुंचे। बता दें कि यह 40 साल में पहली बार था जब किसी राष्ट्रपति ने इस परंपरा को फिर से शुरू किया और 26 जनवरी की परेड में इस बग्घी का उपयोग किया।
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Published By : Priyanka Yadav
पब्लिश्ड 14 August 2025 at 22:53 IST