अपडेटेड 15 August 2021 at 06:26 IST
Independence Day 2021: इन स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी की वजह से ही देश ने देखी आजादी की सुबह
देश 15 अगस्त को अपना 75वां स्वतत्रंता दिवस मना रहा है। लेकिन हम जो आजाद हवा में सांस ले पा रहे हैं इसके लिए इतिहास में कई महानायकों की लड़ाई और कुर्बानी शामिल है।
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Independence Day 2021: 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है', ऐसे ही नारों ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ों को हिलाकर रख दिया था। देश 15 अगस्त को अपना 75वां स्वतत्रंता दिवस मना रहा है। लेकिन हम जो आजाद हवा में सांस ले पा रहे हैं इसके लिए इतिहास में कई महानायकों की लड़ाई और कुर्बानी शामिल है। भगत सिंह से लेकर चंद्रशेखर आजाद और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम शामिल हैं। इन सभी क्रांतिकारियों ने देश में अंग्रेजों के खिलाफ हवा चलाने का काम किया था। उस समय आजादी की क्या कीमत है ये बात इन्होंने ही समझाया था।
हमारे महान क्रांतिकारियों का एक ही सपना था कि भारत मां अंग्रेजों की जंजीर से जल्द से जल्द आजाद हो जाए। हालांकि, इनमें से कई स्वतंत्रता सेनानी आजाद देश की सुबह को नहीं देख पाए थे लेकिन उनका नाम भारत के इतिहास में अमर हो चुका है।
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आज हम आजादी के उन महानायकों की बात करेंगे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। देश की मिट्टी के लिए उन्होंने एक लंबा संघर्ष किया था, जिसके फलस्वरूप आज हम स्वतंत्र हैं। देश के इन सपूतों ने स्वतंत्रता आंदोलन को निडरता के साथ आगे बढ़ाया था।
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मंगल पांडे (Mangal Pandey)
मंगल पांडेय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। मंगल पांडे के विद्रोह की शुरुआत एक बंदूक की वजह से हुई। बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई जाती है। 21 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पांडेय जो दुगवा रहीमपुर (फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेंट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया था। 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
भगत सिंह (BHAGAT SINGH)
देश के महान स्वतंत्रता सेनानी में भगत सिंह का भी नाम शामिल है। चन्द्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भगत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया था। लाहौर में सांडर्स की हत्या और उसके बाद सेंट्रल असेंबली में बम फेंक कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुला विद्रोह जताया था। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। यह जिला अब पाकिस्तान है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन को बुरी तरह प्रभावित किए थे।
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चन्द्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad)
क्रांतिकारी चन्द्रशेखर मात्र 15 साल की उम्र में ब्रितानियां हुकूमत से लड़ने के लिए आजादी की लड़ाई में कूद गए थे। बाल गंगाधर तिलक की तरह आजाद का मन भी महात्मा गांधी के रास्ते से 1922 में तब उठ गया जब असहयोग आन्दोलन असफल हुआ था। इसके बाद उन्होंने राम प्रसाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन ज्वाइन की। इस संगठन का हिस्सा बन कर वह अंग्रेजी सरकार के खिलाफ क्रांति के दम पर आजादी के लिए संघर्ष करने लगे थे।
27 फरवरी 1931 को आजाद जब सुखदेव से मिलने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें घेर लिया। दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई। आजाद ने तीन पुलिस वालों को मार डाला और फिर खुद को गोली मार ली। इस तरह भारत मां का यह सपूत हमेशा आजाद रहा क्योंकि उन्होंने खुद से वादा किया था कि वह कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के हाथों नहीं पकड़े जाएंगे।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
महात्मा गांधी ने जिस प्रकार सत्याग्रह, शांति और अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता है। गांधी ने सत्याग्रह का नेतृत्व किया, हिंसा के खिलाफ आंदोलन, जिसने अंततः भारत की आजादी की नींव रखी थी। बता दें कि 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली में नाथुरम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी थी।
रानी लक्ष्मी बाई (Lakshmibai, the Rani of Jhansi)
'बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।' ये कविता तो हर किसी ने सुन ही रखी होगी। भारत की महान वीरांगना रानी लक्ष्मी अंग्रेजी हुकूमत के सामने कभी नहीं झुकी और नीडरता के साथ उनसे मुकाबला करती रहीं। मात्र 22 साल की उम्र में रानी लक्ष्मी देश और अपनी झांसी के लिए शहीद हो गई। रानी लक्ष्मी को बचपन में मणिकर्णिका नाम से पुकारा जाता था। 14 साल की उम्र में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था।
Published By : Vineeta Mandal
पब्लिश्ड 15 August 2021 at 06:25 IST