अपडेटेड 23 December 2025 at 11:51 IST

पत्नी को घरेलू खर्चों का लेखा-जोखा रखने को कहना, मां-बाप को पैसे भेजना कोई अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

SC ने कहा कि मां-बाप को पैसे भेजना, पत्नी से खर्चों का हिसाब मांगना, मोटापे को लेकर पत्नी को ताने देना जैसी बातें कानून तौर पर क्रूरता के दायरे में नहीं आते। अदालत ने साफ किया कि इसे मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता।

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Supreme Court of India
Supreme Court of India | Image: ANI

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी पति का अपनी पत्नी से घरेलू खर्चों का हिसाब मांगना,माता-पिता की आर्थिक मदद करना या प्रसव के बाद पत्नी की बढ़े हुए वजन को लेकर ताने देना जैसी बातें भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत 'क्रूरता' की श्रेणी में नहीं आतीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसले पत्नी की ओर से दर्ज की गई एक FIR पर सुनाया।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि वैवाहिक जीवन के दैनिक उतार-चढ़ाव और छोटी-मोटी नोक-झोंक को क्रूरता मानकर आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती। पीठ ने टिप्पणी की, ये आरोप वैवाहिक जीवन के रोजमर्रा के घिसाव-पिटाव को दर्शाते हैं और इन्हें किसी भी स्थिति में क्रूरता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

SC ने अपने फैसले में क्या कहा?

SC ने कहा कि मां-बाप को पैसे भेजना, खर्चों का हिसाब मांगना, मोटापे को लेकर ताने देना जैसी बातें कानून तौर पर क्रूरता के दायरे में नहीं आते। अदालत ने साफ किया कि इसे मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने ऐसे आरोपों पर दर्ज एक FIR को रद्द कर दिया और वैवाहिक मामलों में अदालतों को अत्यधिक सावधानी बरतने की हिदायत दी।

पत्नी ने पति के खिलाफ दर्ज कराई थी FIR

बता दें कि यह मामला एक NIR पति से जुड़ा था, जो अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। पत्नी ने उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर दहेज प्रताड़ना और क्रूरता के आरोप लगाते हुए 2022 में तेलंगाना में FIR दर्ज कराई थी। आरोपों में शामिल था कि पति पत्नी से घरेलू खर्चों की एक्सेल शीट बनवाते थे, अपने माता-पिता और भाई को पैसे भेजते थे, गर्भावस्था के दौरान देखभाल नहीं की और प्रसव के बाद वजन बढ़ने पर ताने भी मारे थे।

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पति की याचिका पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि माता-पिता को आर्थिक मदद करना या घरेलू खर्चे पर नियंत्रण रखना भारतीय समाज की एक वास्तविकता हो सकती है, जहां अक्सर पुरुष घर की अर्थव्यस्था संभालते हैं, लेकिन  इसे आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बनाया जा सकता। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि कथित आर्थिक या वित्तीय वर्चस्व, जब तक उससे कोई ठोस मानसिक या शारीरिक क्षति साबित न हो, क्रूरता नहीं माना जा सकता।

वहीं, गर्भावस्था और प्रसव संबंधी आरोपों पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये अगर सही भी मान लिए जाएं, तो अधिकतम पति के चरित्र पर सवाल उठाते हैं, लेकिन इन्हें कानूनी रूप से क्रूरता नहीं कहा जा सकता जिसके आधार पर आपराधिक प्रक्रिया चलाई जाए। कोर्ट ने पति की ओर से पेश वकील की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि FIR में लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य है। एफआईआर में किसी विशेष उत्पीड़न की ठोस घटनाओं या साक्ष्यों का उल्लेख नहीं किया गया है।

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Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 23 December 2025 at 11:51 IST