अपडेटेड 6 July 2024 at 09:50 IST

हरियाणा की हवा भांप गई BJP! बिप्लब देब को हटा सतीश पूनिया को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी, मायने समझिए

सतीश पूनिया राजस्थान में बीजेपी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। फिलहाल बीजेपी ने उन्हें बिप्लव देब की जगह हरियाणा का प्रभारी बनाया है।

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JP Nadda and Satish Poonia
जेपी नड्डा के साथ सतीश पूनिया। | Image: Facebook

Haryana Election: हरियाणा के विधानसभा चुनावों में ज्यादा महीने बचे नहीं हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस बार हैट्रिक की कोशिश में है। इसके लिए बीजेपी ने प्रयास तेज भी कर दिए हैं और राज्य की राजनीति को समझते हुए संगठनात्मक तौर पर बड़े बदलाव भी किए जाने लगे हैं। अभी ये बदलाव पार्टी प्रभारी के रूप में हुआ है, जिसकी जिम्मेदारी बीजेपी ने सतीश पूनिया को सौंपी है।

सतीश पूनिया राजस्थान में बीजेपी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वो राजस्थान बीजेपी में बड़े कद के नेता हैं। फिलहाल बीजेपी ने उन्हें बिप्लव देब की जगह हरियाणा का प्रभारी बनाया है। हरियाणा में चुनावों से ठीक पहले बीजेपी ने बिप्लब देब का हटाकर सतीश पूनिया को अहम जिम्मेदारी सौंपी है, तो इसके मायने भी अहम हैं।

सतीश पूनिया को क्यों बनाया हरियाणा का प्रभारी?

सतीश पूनिया खुद जाट समुदाय से आते हैं। उन्हें हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने को राजनीतिक नजरिए से देखें तो पूनिया के जरिए बीजेपी की कोशिश जाटों की नाराजगी दूर करने की हो सकती है। भले बीजेपी पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने राज्य में गैर-जाट पॉलिटिक्स को बढ़ाया दिया है, जिनसे राजनीति में जाटों के प्रभाव को हाशिए पर ढकेल दिया हो। मगर इसको भी समझना होगा कि बीजेपी जाटों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। इसलिए बीजेपी ने सतीश पूनिया के जरिए जाटों को साधने का प्रयास किया है।

हरियाणा की राजनीति में जाटों का दबदबा

हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी लगभग 26 से 28 फीसदी मानी जाती है। राज्य की लगभग एक तिहाई सीटों पर जाट समुदाय जीत हार तय करता है। अनुमानित 36 विधानसभा सीटों पर जाटों की मजबूत उपस्थिति है। 10 लोकसभा सीटों में से 4 सीटों पर जाट समुदाय का प्रभाव है। 58 साल के इतिहास में हरियाणा को 33 ऐसे मुख्यमंत्री मिले हैं, जो जाट समुदाय से आते हैं। गैर-जाट मुख्यमंत्रियों की संख्या मात्र आधा दर्जन है। ये आंकड़े बता देते हैं कि हरियाणा में जीत के लिए जाट एक बड़ा फैक्टर है।

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पिछले 2 चुनावों में बिगड़ा है बीजेपी का गणित

हरियाणा में बीजेपी की इस स्थिति के लिए जाटों की नाराजगी को ही वजह माना जाता है। चाहे किसान आंदोलन हो या पहलवानों का आंदोलन, उन्हें अगर जातीय चश्मे से देखा जाए तो इनमें खासतौर पर जाट समुदाय सबसे ऊपर था। जहां किसान पहले से ही बीजेपी से नाराज हैं तो पहलवानों के प्रदर्शन ने भी हरियाणा की राजनीति पर असर डाला। यही वजह रही कि हरियाणा का जाट समुदाय बीजेपी से नाराज है। इधर, फिर बीजेपी के पास कोई बड़ा जाट चेहरा है नहीं, जिसके आसरे मजबूत वोटबैंक को साध लिया जाए। ऐसे में हरियाणा में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती जाट समुदाय को साधने की है।

फिलहाल बीजेपी को हरियाणा की हवा का रुख लोकसभा चुनावों से ही पता चल गया होगा। वो इसलिए कि पिछली बार भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा में क्लीन स्वीप किया था। इस बार टक्कर कड़ी रही है और नतीजा ये कि 2019 के मुकाबले 2024 में बीजेपी का आंकड़ा सीधे आधा हो गया। 10 में से 5 लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में आईं। वैसे, बीजेपी को अंदाजा पिछली बार के विधानसभा चुनाव से भी हो गया होगा, क्योंकि पिछली बार के चुनावों में बीजेपी को हरियाणा की जनता ने पूर्ण जनादेश नहीं दिया था। 90 सीटों में से 40 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। इस स्थिति में पहले जेजेपी और मार्च 2024 के बाद निर्दलीय विधायकों के सहारे बीजेपी को सरकार चलानी पड़ रही है। खैर, अभी का फैसला बीजेपी का फैसला जातीय समीकरण के हिसाब से काफी अहम हो जाता है।

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Published By : Amit Bajpayee

पब्लिश्ड 6 July 2024 at 09:50 IST