अपडेटेड 19 December 2025 at 18:23 IST
Importance Of Aravalli Hills: चांदी से लेकर जस्ता, सीसा और कैडमियम तक... Aravalli Hills में पाए जाते हैं 70 से अधिक अलग-अलग खनिज
मई 2025 में आई पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार अरावली पर्वतमाला का अनूठा भूवैज्ञानिक इतिहास इसे खनिज संसाधनों से समृद्ध बनाता है। अरावली पहाड़ियों में 70 से अधिक अलग-अलग खनिज पाए जाते हैं, जिनमें से लगभग 65 का व्यावसायिक पैमाने पर खनन किया जा रहा है।
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Save Aravalli Hills : अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक है, जो पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत को आकार देने वाली एक प्रमुख भूवैज्ञानिक विशेषता है। अरावली बेसिन का निर्माण लगभग 200 करोड़ साल पहले प्रीकैम्ब्रियन युग के दौरान शुरू हुआ था। वलित पर्वत (Fold Mountains) पृथ्वी की पपड़ी में टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से उभरे, जिससे विशाल संरचनाओं का निर्माण हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदल दी है, जिसमें अब केवल 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियां ही संरक्षित मानी जाएंगी। इससे 91% क्षेत्र सुरक्षा से बाहर हो जाएगा, खनन और विकास बढ़ेगा। अरावली थार रेगिस्तान को रोकती हैं, भूजल रिचार्ज करती हैं और प्रदूषण कम करती हैं। अरावली के ना रहने से रेगिस्तान फैलेगा, धूल प्रदूषण बढ़ेगा और जल संकट गहराएगा। अरावली क्षेत्र में तीन अलग-अलग ऋतुएं होती हैं, ग्रीष्म, मानसून और शीत ऋतु। इस क्षेत्र में वार्षिक औसत वर्षा 500 से 700 मिमी के बीच होती है।
70 से अधिक अलग-अलग खनिज
मई 2025 में आई पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट 'Aravalli Landscape Restoration' के अनुसार अरावली पर्वतमाला का अनूठा भूवैज्ञानिक इतिहास इसे खनिज संसाधनों से समृद्ध बनाता है। खनन इस क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है। अरावली पहाड़ियों में 70 से अधिक अलग-अलग खनिज पाए जाते हैं, जिनमें से लगभग 65 का व्यावसायिक पैमाने पर खनन किया जा रहा है। अरावली में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण खनिजों में जस्ता, सीसा, चांदी, कैडमियम, संगमरमर, बहुमूल्य और अर्ध-बहुमूल्य पत्थर, टंगस्टन, जिप्सम, सोपस्टोन, रॉक-फॉस्फेट, एस्बेस्टस, मिट्टी, कैल्साइट और भवन निर्माण पत्थर शामिल हैं।
अरावली में पाए जाने वाले वन्यजीव
यह क्षेत्र कुल 22 वन्यजीव अभयारण्यों (Wildlife Sanctuaries) का घर है, जो दिल्ली, गुजरात, हरियाणा और राजस्थान में फैले हुए हैं। इनमें मुकुंदरा हिल्स, रणथंबोर और सारिस्का जैसे तीन टाइगर रिजर्व और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं। ये क्षेत्र अपनी अनोखी आवास स्थलियों, वनस्पतियों और जीवों के लिए प्रसिद्ध हैं। अरावली के वन्यजीवों में टाइगर, तेंदुआ, स्लॉथ भालू, सांभर, चीतल, चौसिंगा, नीलगाय, साही, जंगली सूअर, सिवेट, गिलहरी, मोंगूस, घड़ियाल और मगरमच्छ जैसी प्रजातियां शामिल हैं।
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पहाड़ियों के लुप्त होने से क्या होगा असर?
अरावली पहाड़ियां एक अवरोधक के रूप में काम करती है, जो पूर्वी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के इंडो-गंगा के मैदानी हिस्सों में रेतीले रेगिस्तान के विस्तार को रोकती है। अरावली दिल्ली से गुजरात तक करीब 700 किलोमीटर में फैली हुई है और उत्तर भारत की पर्यावरणीय रीढ़ है। दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियां नियंत्रित करती हैं, भूजल रिचार्ज करती हैं और जैव विविधता का खजाना हैं।
अगर ये पहाड़ियां गायब हुईं तो रेगिस्तान तेजी से बढ़ेगा, भूजल स्तर और गिरेगा, प्रदूषण बढ़ेगा और कृषि प्रभावित होगी। पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि दिल्ली की हवा और खराब हो सकती है। अरावली क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है, जैसे तांबा, फॉस्फेट और मार्बल। नई परिभाषा से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां खनन और निर्माण के लिए खुल सकती हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह फैसला अवैध खनन को बढ़ावा देगा, जिससे पहले से क्षतिग्रस्त क्षेत्र और बर्बाद होंगे। हरियाणा और राजस्थान के कई जिलों में पहले ही खनन से बड़ी तबाही हो चुकी है।
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Published By : Sagar Singh
पब्लिश्ड 19 December 2025 at 18:23 IST