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Published 15:07 IST, August 31st 2024

चीन से संबंधों परे बोले विदेश मंत्री, संबंधित निवेशों की समीक्षा जरूरी

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत के सामने ‘‘चीन संबंधी एक विशेष समस्या’’ है जो दुनिया की ‘‘चीन संबंधी सामान्य समस्या’’ से अलग है।

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External Affairs Minister Dr S. Jaishankar addresses the Raisina Dialogue
S. Jaishankar | Image: AP

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि भारत के सामने ‘‘चीन संबंधी एक विशेष समस्या’’ है जो दुनिया की ‘‘चीन संबंधी सामान्य समस्या’’ से अलग है। उन्होंने साथ ही कहा कि चीन के साथ संबंधों एवं सीमा पर स्थिति को देखते हुए वहां से होने वाले निवेश की समीक्षा की जानी चाहिए।

जयशंकर ने कहा कि यदि लोग चीन के साथ व्यापारिक घाटे की शिकायत कर रहे हैं और ‘‘हम भी’’ (इससे परेशान हैं) तथा ऐसा इसलिए है क्योंकि दशकों पहले ‘‘हमने चीनी उत्पादन की प्रकृति और उन लाभों को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया था, जो उन्हें ऐसी प्रणाली में प्राप्त हुए, जिसमें उन्हें अपने साथ लाए गए सभी लाभों के अलावा समान अवसर मिले।’’

उन्होंने यहां ‘ईटी वर्ल्ड लीडर्स फोरम’ में ‘नए भारत के जोखिम, सुधार और जिम्मेदारियां’ विषय पर आयोजित सत्र के दौरान कहा, ‘‘चीन कई मायनों में एक अनूठी समस्या है क्योंकि वह एक अनूठी राजनीति है, वह एक अनोखी अर्थव्यवस्था है। जब तक कोई इस विशिष्टता को समझने की कोशिश नहीं करता, तब तक इससे निकाले जाने वाले निर्णय, निष्कर्ष और नीतिगत कदमों में समस्या रहेगी।’’

जयशंकर ने कहा…

जयशंकर ने कहा, ‘‘चीन को लेकर एक सामान्य समस्या है। हम दुनिया के एकमात्र देश नहीं हैं, जो चीन के बारे में बहस कर रहे हैं। यूरोप में जाइए और उनसे पूछिए कि आज उनकी प्रमुख आर्थिक या राष्ट्रीय सुरक्षा बहस क्या है। यह बहस चीन के बारे में है। अमेरिका को देखिए। उसे भी चीन के प्रति दिक्कत है और यह कई मायनों में सही भी है।’’

उन्होंने कहा कि इसलिए सच्चाई यह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश नहीं है जिसे चीन को लेकर समस्या है। जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत को चीन को लेकर समस्या है... चीन संबंधी एक विशेष समस्या, जो चीन को लेकर दुनिया की सामान्य समस्या से परे है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब हम चीन के साथ व्यापार, चीन के साथ निवेश, चीन के साथ विभिन्न प्रकार के आदान-प्रदान को देखते हैं और यदि आप इस बात को ध्यान में नहीं रखते कि यह एक बहुत ही अलग देश है और इसके काम करने का तरीका भी बहुत अलग है, तो मुझे लगता है कि आपकी बुनियादी बातें ही पटरी से उतरने लगती हैं।’’

मंत्री ने कहा, ‘‘....चूंकि चीन को लेकर एक सामान्य समस्या है और साथ ही हमारी अपनी स्थिति भी है, आप सभी जानते हैं कि पिछले चार साल से सीमा पर हमारी स्थिति बहुत कठिन है। मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति में भारत जैसा देश जैसी सावधानियां बरत रहा है, वही समझदारी भरी प्रतिक्रिया है।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार का कभी यह रुख नहीं रहा कि उसे चीन के साथ निवेश या व्यापार नहीं करना चाहिए।

जयशंकर ने कहा, ‘‘निवेश के संबंध में यह सामान्य समझ की बात है कि चीन से होने वाले निवेश की समीक्षा की जाए। मुझे लगता है कि भारत और चीन के बीच संबंधों और सीमा को लेकर स्थिति भी इसकी मांग करती है।’’ उन्होंने कहा कि जिन देशों की सीमा चीन से नहीं लगती, वे भी चीन से होने वाले निवेश की जांच कर रहे हैं।

मंत्री ने कहा, ‘‘यूरोप की (चीन के साथ) सीमा नहीं लगती, अमेरिका की चीन के साथ सीमा नहीं है और फिर भी वे ऐसा कर रहे हैं। समस्या यह नहीं है कि आपका चीन के साथ निवेश है या नहीं, इसका हां या ना में जवाब नहीं है, मुद्दा यह है कि उचित समीक्षा का स्तर क्या होना चाहिए और आपको इससे कैसे निपटना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कभी-कभी जब मैं ऐसी सामग्री पढ़ता हूं जिसमें लोग लिखते हैं कि हमें स्पष्ट रूप से पहचान करनी चाहिए कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है, तो (मुझे लगता है कि) अब यह उस तरह से काम नहीं करता क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा का दायरा बढ़ गया है। यदि आपकी दूरसंचार सेवा चीनी प्रौद्योगिकी पर आधारित है, तो क्या आप इससे प्रभावित हुए बिना रह सकते हैं।’’

जयशंकर ने कहा, ‘‘मेरे विचार में एक निश्चित स्तर पर, कुछ देशों में कुछ स्थितियों में, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के बीच की रेखा बहुत पतली होती है।’’ उन्होंने कहा कि यूरोप में एक बड़ा युद्ध चल रहा है, पश्चिम एशिया में एक बड़ा संघर्ष है, एशिया में तनाव है और उनमें से प्रत्येक के साथ क्षेत्रीय दावों और सीमा संघर्षों का फिर से उभरना जोखिम पैदा करता है।

जयशंकर ने कहा कि दुनिया का ध्यान जोखिम कम करने पर केंद्रित है। विदेश मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हर सरकार अब भू-राजनीतिक जोखिमों का बारीकी से आकलन कर रही है, जिसमें अधिकतर प्रयास जोखिम कम करने पर केंद्रित हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में, जोखिमों का प्रबंधन और शमन करना अंतरराष्ट्रीय संबंधों और नीतियों को आकार देने में चिंता का एक केंद्रीय विषय बन गया है।

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(Note: इस भाषा कॉपी में हेडलाइन के अलावा कोई बदलाव नहीं किया गया है)

Updated 15:07 IST, August 31st 2024