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Published 12:06 IST, September 14th 2024

Explainer: अरविंद केजरीवाल को शर्तों वाली जमानत लेकिन 'बिन पावर सब सून'!

तिहाड़ जेल से निकलते ही अरविंद केजरीवाल ने पहली बात जो मीडिया के सामने कही वो ये कि ''मैने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है, और मेरे हौसले 100 गुना बढ़ गए हैं।

Reported by: Digital Desk
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Delhi CM Arvind Kejriwal Bail
Delhi CM Arvind Kejriwal Bail | Image: Facebook

(अखिलेश राय की रिपोर्ट) 

दिल्ली की कथित शराब नीति घोटाला मामले में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को मिली जमानत में जो शर्तें सुप्रीम कोर्ट ने लगाई हैं उसकी अगर एक लाइन में व्याख्या की जाए तो यही कहा जाएगा कि 21 मार्च को केजरीवाल ईडी मामले में जेल एक मुख्यमंत्री के तौर पर गए लेकिन 13 सितंबर को जब रिहा हुए तो जमानत की शर्तों ने उन्हे आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय कन्वीनर, एक राष्ट्रीय नेता अपनी पार्टी के एक स्टार प्रचार के अधिकारों के साथ ही रिहा करने का आदेश दिया। 

लेकिन बिना अधिकारों वाले मुख्यमंत्री की क्या संविधान में कोई परिकल्पना है। लेकिन एक मुख्यमंत्री के तौर पर उसको किसी भी अधिकार से वंचित करना कानून के जानकारों के बीच भी सवाल पैदा करता है।

क्या कहते हैं कानून के जानकार

तिहाड़ जेल से निकलते ही अरविंद केजरीवाल ने पहली बात जो मीडिया के सामने कही वो ये कि ''मैने जिंदगी में बहुत संघर्ष किया है, और मेरे हौसले 100 गुना बढ़ गए है'' लेकिन अदालत की शर्तों की वजह से एक मुख्यमंत्री के तौर पर संघर्ष शायद और भी बढ़ जाए।दरअसल सीबीआई मामले में जमानत का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ईडी मामले में मिली अंतरिम जमानत की शर्तों को ही लागू कर दिया। 

मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कुछ पहलुओं को बड़ी बेंच को तय करने की बात कही तबतक के लिए केजरीवाल को कड़ी शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दे दी थी। जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए दी गई तीन हफ्तों की अंतरिम जमानत में भी यही कड़ी शर्तें रखी थीं। तब सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत केजरीवाल ने मांगी थी। लेकिन वही शर्तें सीबीआई मामले में नियमित जमानत तक लागू हो गई।

संविधान के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आर. के. सिंह का कहना है कि संविधान में दिए गए किसी भी संवैधानिक पद के साथ उसकी जिम्मेदारियां और उत्तरदायित्व भी तय किए गए हैं। उन संवैधानिक दायित्यों से वंचित करना सही नहीं है। एडवोकेट आर के सिंह मानते है कि अगर किसी राज्य के मुख्यमंत्री को किसी सरकारी फाइल पर दस्तखत करने का अधिकार नहीं है तो ये एक तरह से इससे बेहतर राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था होगी। राष्ट्रपति शासन मे कम से कम मुखिया राज्य के विकास पर फैसला तो ले सकेगा? 

कानून के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्वनी उपाध्याय का मानना है कि भले ही जमानत की शर्तों के तहत केजरीवाल कोई सरकारी फैसला नहीं ले सकते लेकिन अगर उन्हे लगता है कि जनता के हित के लिए कोई फैसला लेना है तो उस  विषय विशेष के लिए सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मांग सकते हैं। हालांकि इन कठिन  शर्तों में एक शर्त ये भी है कि अगर दिल्ली के LG को ये लगता है कि किसी फाइल पर मुख्यमंत्री के दस्तखत की जरूरत है तब एलजी की मंजूरी के बाद ही किसी सरकारी फाइल पर दस्तखत कर सकते हैं।

दिल्ली सरकार के पास हैं सीमित अधिकार

संविधान में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र वाली दिल्ली की सरकार को वैसे भी कम ही अधिकार मिले हैं। संविधान के 69 वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 239 AA के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार   का गठन के लिए 1991 मे विधेयक पारित हुआ। 70 सदस्यीय विधानसभा के गठन के साथ राज्य सरकार को दूसरे राज्यों से कम अधिकार मिले। दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली के पास पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार नहीं हैं और वह इनसे जुड़े कानून नहीं बना सकती है साथ ही केंद्र और दिल्ली की सरकार अगर किसी एक मुद्दे पर कानून बनाती है तो केंद्र का कानून क्षेत्र में लागू होगा। हालांकि केन्द्र से कई अधिकारों को हासिल करने के लिए केजरीवाल सरकार लगातार अदालती लडाई लड़ रही है। अधिकार बढ़ाने की मांग को लेकर दिल्ली सरकार अदालत से ज्यादा सियासत में जंग लड़ रही है।  

जमानत की सख्त शर्तें

केजरीवाल के तिहाड से निकलते ही जमानत की कड़ी शर्तें लागू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट से जमानत का फैसला आने के बाद राऊज एवेन्यू कोर्ट ने इन्ही कड़ी शर्तों के साथ रिलीज ऑर्डर जारी किया । सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद को जमानत देते हुए जो शर्तें लगाई है उनके तहत दस लाख रुपये की राशि के जमानत बांड देना होगा।उतनी ही राशि की दो श्योरिटी देनी होगी।अरविंद केजरीवाल सीबीआई मामले के गुण-दोष पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे , क्योंकि यह मामला ट्रायल कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। ED के मामले में जमानत देते हुए जो शर्ते लगाई गई थी वही शर्ते रहेंगी। अरविंद केजरीवाल को सुनवाई की प्रत्येक तारीख पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित रहना होगा, जब तक कि उसे छूट न दी जाए

जानिए ईडी मामलें में जमानत की शर्तें

ED मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जिन शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी थी वही शर्तें सीबीआई की नियमित जमानत में भी लागू हुई हैं। जिसके तहत केजरीवाल मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे। वह सरकारी फाइलों पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेगे जब तक कि ऐसा करना आवश्यक न हो और (दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी/अनुमोदन प्राप्त ना हो) ।अरविंद केजरीवाल वर्तमान मुकदमे के मामले में अपनी भूमिका के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं करेंगें। वह किसी भी गवाह से सम्पर्क नहीं करेंगे और/या मामले से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल तक पहुंच नहीं रखेंगे।

शर्तें केजरीवाल को नसीहत सीबीआई को

केजरीवाल की जमानत को लेकर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुईयां ने अपना- अपना फेसला सुनाया। हालांकि दोनो फैसले जमानत दिए जाने पर सहमत थे, और केजरीवाल की गिरफ्तारी को भी सही ठहराया। लेकिन जस्टिस उज्जल भुईयां सीबीआई के गिरफ्तार करने के समय को लेकर सवाल खड़ा किया। जस्टिस भुईयां ने सीबीआई के तौर तरीके पर कड़ी नाराजगी जताते हुए नसीहत भी दे दी कि ''CBI को इस तरह काम करना चाहिए कि CBI की दोबारा से पिजरे का तोता की छवि न बने''।

जस्टिस भुईयां ने फैसले में लिखा कि- ऐसा लगता है कि ईडी मामले में केजरीवाल को निचली अदालत से नियमित जमानत दिए जाने के बाद ही सीबीआई सक्रिय हुई और हिरासत की मांग की। 22 महीने से अधिक समय तक उन्हे गिरफ्तार करने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इस तरह की कार्रवाई से गिरफ्तारी पर ही गंभीर सवाल उठते हैं।जहां तक ​​गिरफ्तारी के आधार का सवाल है, ये गिरफ्तारी की आवश्यकता को पूरा नहीं करती। सीबीआई गोलमोल जवाबों का हवाला देकर गिरफ्तारी को उचित नहीं ठहरा सकती और हिरासत जारी नहीं रख सकती। और आरोपी को बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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Updated 12:06 IST, September 14th 2024