अपडेटेड 13 June 2024 at 17:19 IST

सड़क पर नमाज ना पढ़ें, पब्लिक प्लेस पर कुर्बानी भी नहीं... बकरीद से पहले मुसलमानों के लिए आया फरमान

मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि उन्हीं जानवरों की कुर्बानी दी जाए, जिन पर कानूनी पाबंदी नहीं है। कुर्बानी वाली जगह पर सफाई का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

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eid al-adha 2024
बकरीद पर मुसलमानों के लिए एडवाइजरी जारी। | Image: PTI/File

Bakrid 2024: देशभर में ईद उल अजहा मतलब बकरीद त्योहार मनाने की तैयारी चल रही है। 17 जून को ईद उल अजहा का त्योहार मनाया जाएगा। ऐसे में देशभर के मुसलमानो के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों से सार्वजनिक जगहों पर त्योहार ना मनाने की अपील की गई है। ये एडवाइजरी उत्तर प्रदेश के लखनऊ ईदगाह इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली की तरफ से जारी की गई है।

लखनऊ ईदगाह इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली की तरफ से मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए एक एडवाइजरी जारी की गई है। इसमें फरंगी महली ने कानून के दायरे में रहकर कुर्बानी की अपील की है। फरंगी महली ने कहा है कि उन्हीं जानवरों की कुर्बानी दी जाए, जिन पर कोई कानूनी पाबंदी नहीं है। कुर्बानी वाली जगह पर सफाई का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। खुली जगहों, सड़क, गलियों और पब्लिक प्लेस पर कुर्बानी ना हो।

सड़कों पर नमाज अदा ना करने की अपील

मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने मुसलमानों से कुर्बानी की वीडियो फोटो सोशल मीडिया पर ना डालने की अपील की है। साथ ही कहा गया है कि कुर्बानी के जानवरों का खून नालियों में ना बहाया जाए। जानवरों की गंदगी को भी सड़कों पर ना फेंका जाए। मुस्लिम समुदाय से सड़कों पर नमाज अदा ना करने की भी अपील की गई है।

कब मनाया जाता है बकरीद का त्योहार?

दिल्ली की चांदनी चौक स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद बताते हैं कि ईद उल फित्र के विपरीत बकरीद का त्योहार चांद दिखने के 10वें दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर में 29 या 30 दिन होते हैं जो चांद दिखने पर निर्भर करते हैं। ईद उल जुहा या अजहा या बकरीद, ईद उल फित्र के 2 महीने 9 दिन बाद मनाई जाती है। मुफ्ती ने कहा कि इस बार ईद-उल-अजहा का त्योहार 17 जून को मनाया जाएगा।

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क्यों दी जाती है कुर्बानी?

इस्लामिक मान्यता है कि पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल को इसी दिन अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह की राह में कुर्बान करने जा रहे थे। तभी अल्लाह ने उनके बेटे को जीवनदान दिया। वहां एक पशु की कुर्बानी दी गई थी, जिसकी याद में ये पर्व मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से उन पशुओं की कुर्बानी देते हैं, जिन्हें भारतीय कानूनों के तहत बैन नहीं किया गया है।

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Published By : Amit Bajpayee

पब्लिश्ड 13 June 2024 at 17:19 IST