अपडेटेड 28 January 2024 at 07:34 IST

घरेलू हिंसा पीड़िता की याचिका कार्यवाही हल्के में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती- दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी वादी को घरेलू हिंसा की पीड़िता द्वारा शुरू की गयी अदालती कार्यवाही को हल्के में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

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Delhi High Court
दिल्ली हाईकोर्ट | Image: PTI representative

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी वादी को घरेलू हिंसा की पीड़िता द्वारा शुरू की गयी अदालती कार्यवाही को हल्के में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उच्च न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा (डीवी) अधिनियम उन महिलाओं के संविधान-प्रदत्त अधिकारों को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था, जो परिवार के भीतर होने वाली हिंसा की शिकार हैं।

न्यायमूर्ति अमित महाजन ने सत्र अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। सत्र अदालत ने एक मजिस्ट्रेट अदालत के जुलाई 2022 के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें उसे अपनी पत्नी को 6,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता देने का एकपक्षीय निर्देश दिया गया था।

मजिस्ट्रेट अदालत का आदेश घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत (महिला के) पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पत्नी की याचिका पर पारित किया गया था। उच्च न्यायालय ने इस माह के शुरू में जारी अपने आदेश में कहा, ‘‘किसी वादी को अदालत के समक्ष कार्यवाही को हल्के में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर तब, जब यह घरेलू हिंसा की पीड़िता द्वारा शुरू की गई कार्यवाही से संबंधित हो...।’’

उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं के उत्पीड़न को ध्यान में रखते हुए, विधायिका ने उन महिलाओं के भरण-पोषण की व्यवस्था के लिए एक तंत्र प्रदान किया है जो अपना गुजारा करने की स्थिति में नहीं हैं। इस तरह की कार्यवाही को इतने हल्के तरीके से नहीं लिया जा सकता है, जैसा याचिकाकर्ता व्यक्ति ने अनुरोध किया है।’’

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व्यक्ति ने उच्च न्यायालय के समक्ष दावा किया था कि उसे जुलाई 2022 में सत्र अदालत के आदेश के पारित होने के बारे में अक्टूबर 2022 में ही उस वक्त पता चला था, जब एक पुलिसकर्मी उसे सूचित करने आया कि उसकी पत्नी की ओर से दायर निष्पादन याचिका एक नवंबर, 2022 को अदालत के समक्ष सूचीबद्ध था।’’

इसमें कहा गया है कि हालांकि, वह व्यक्ति संबंधित अदालत में पेश नहीं हुआ और उसने अपीलीय अदालत के समक्ष जुलाई 2022 के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की। अपीलीय अदालत ने पति को गुजारा भत्ता का 50 प्रतिशत भुगतान करने की शर्त पर पहले के आदेश पर रोक लगा दी।

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उच्च न्यायालय ने उस व्यक्ति के दावे को खारिज कर दिया और कहा कि उसने अपनी इच्छा से मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना छोड़ दिया। मजिस्ट्रेट ने एकतरफा कार्यवाही की और इस प्रकार, यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि उसे निचली अदालत की ओर से पारित आदेश के बारे में पता नहीं था और उन्हें अक्टूबर 2022 में ही इसके बारे में पता चला। अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित न होने के लिए दिया गया स्पष्टीकरण निराधार है।’’

Published By : Ankur Shrivastava

पब्लिश्ड 28 January 2024 at 07:34 IST