अपडेटेड 18 October 2024 at 23:10 IST

दिल्ली की अदालत ने 2013 के मामले में तीन भाइयों को मकोका के आरोपों से बरी किया

अदालत ने कहा कि हालांकि अंतिम रिपोर्ट में व्याख्या को लेकर पूरी तरह चुप्पी साधे रखी गई है।

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Court acquits three brothers of MCOCA charges in 2013 case
Court acquits three brothers of MCOCA charges in 2013 case | Image: Freepik

शहर की एक अदालत ने तीन भाइयों को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के कड़े प्रावधानों से बरी करते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस इस अधिनियम को लागू करने और उन पर मुकदमा चलाने के कानूनी प्रावधानों को पूरा करने में विफल रही। अदालत ने यह भी कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ पिछले मामलों की सूची देने मात्र से अपराध ‘सिंडिकेट’ का अस्तित्व स्थापित नहीं होता और न ही यह साबित होता है कि कोई संगठित अपराध किया गया था।

कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रेमाचल मकोका के तहत 2013 में दर्ज एक मामले में मोहम्मद इकबाल गाजी, मोहम्मद उमर, कमालुद्दीन और मोहम्मद जमाल के खिलाफ सुनवाई कर रहे थे। उनके खिलाफ सीलमपुर थाने में मामला दर्ज किया गया था। गाजी की मुकदमे के दौरान मौत हो गई और उनके खिलाफ कार्यवाही रोक दी गई। अदालत ने 15 अक्टूबर के फैसले में कहा कि कानून के अनुसार आरोपपत्रों में स्पष्ट करना चाहिए था कि पिछले 10 वर्ष में आरोपियों के खिलाफ कौन से मामले संगठित अपराध की श्रेणी में थे और किस मामले या घटना को मकोका लागू करने के वास्ते गैरकानूनी गतिविधि माना गया।

अदालत ने कहा कि हालांकि अंतिम रिपोर्ट में व्याख्या को लेकर पूरी तरह चुप्पी साधे रखी गई है। उसने कहा कि मकोका लागू करने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी होने को लेकर संतुष्ट हुए बिना प्राथमिकी दर्ज करने की मंजूरी दी गई थी।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘वास्तव में, आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दी गई मंजूरी के संबंध में भी मेरा यही निष्कर्ष है, क्योंकि मंजूरी देने वाले प्राधिकारी ने यह भी नहीं देखा कि मकोका लागू करने के लिए सभी आवश्यक शर्तें पूरी की गई थीं या नहीं। इसलिए, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि ये सभी मंजूरी बिना सोचे-समझे दी गई थीं।’’

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अदालत ने आरोपियों के इकबालिया बयान के संबंध में अभियोजन पक्ष की दलील को भी खारिज कर दिया।

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Published By : Deepak Gupta

पब्लिश्ड 18 October 2024 at 23:10 IST