अपडेटेड 25 January 2024 at 17:40 IST

रामनामी समुदाय पूरे शरीर पर गुदवाता है राम-राम, प्राण प्रतिष्ठा पर 50 युवकों ने निभाई अपनी प्रथा

छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय (Ramnami Community) अपने पूरे शरीर पर सिर से लेकर पैर तक राम-राम के स्थाई टैटू गुदवाता है। जानें इस खास समुदाय के बारे में

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Ramnami Community In Chhattisgarh : रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या के राम मंदिर (Ram Mandir) में श्रद्धलुओं की कतार लगी है, लेकिन भारत में एक समुदाए ऐसा भी है जो दशकों से राम नाम को अपने शरीर पर गुदवाता आ रहा है। ये छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय (Ramnami Community) है, जो अपने पूरे शरीर पर सिर से लेकर पैर तक राम-राम के स्थाई टैटू गुदवाता है। रामनामी समुदाय की खास बात ये भी है कि सुबह के अभिवादन से लेकर दिन के हर काम की शुरुआत राम-राम से होती है। रामनामी संप्रदाय के लोग ज्यादातर मध्य और उत्तरी छत्तीसगढ़ में पाए जाते हैं।

हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय अपने पूरे शरीर पर राम-राम तो गुदवाता है, लेकिन मूर्ति पूजा या मंदिर पूजा पर भरोसा नहीं रखता। मूर्ति पूजा में आस्था नहीं रखने वाला यह समुदाय अपने शरीर को ही मंदिर मानता है। उन्होंने अपना पूरा शरीर राम को समर्पित किया हुआ है। रामनामी समुदाय 150 सालों से भी अधिक समय से इस प्रथा को निभा रहा है।

छत्तीसगढ़ का रामनामी समुदाय

प्राण प्रतिष्ठा पर 50 युवकों ने निभाई प्रथा

22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में हुई रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir Pran Pratishtha) में रामनामी समुदाय के मुखिया को भी बुलाया गया था। राम मंदिर बनने की खुशी में रामनामी समुदाय के 50 युवाओं ने अपने शरीर पर राम-राम गुदवाकर अपने समुदाए की प्रथा को निभाया है। अयोध्या में रामलला के दर्शन के दौरान राजनेता राजा भैया ने रामनामी समुदाय के मुखिया से मुलाकात की।

इस मुलाकात की एक फोटो राजा भैया (Raja Bhaiya) ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट X (पूर्व में टि्वटर) पर शेयर की है। जिसमें उन्होंने लिखा- 'श्री रामलला सरकार के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने का सौभाग्य मिला, वहीं रामनामी समुदाय के ‘मुखिया जी’ से भेंट हुई। मूलतः छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय के लोग अपने पूरे शरीर पर राम नाम गोदवाये रहते हैं। मुखिया जी ने बताया कि मन्दिर बनने के उत्साह में 50 युवकों ने हाल में ही अपने शरीर को राम नाम से अलंकृत किया है।'

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कैसे हुई रामनामी समुदाय की शुरुआत?

रामनामी समुदाय के लोग ना तो मंदिर जाते हैं और ना ही मूर्ति पूजा करते हैं, लेकिन फिर भी इन्हें भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। रामनामी समुदाय (Ramnami Tribals Rituals) के लोग अपने रोम-रोम में राम को बसाते हैं। इनके शरीर से लेकर घर तक राम ही राम मिलेगा। राम-राम कहकर ही एक-दूसरे के साथ बातचीत की शुरुआत करते हैं। बताया जाता है कि रामनामी समुदाय की शुरूआत 1890 में परशुराम नाम के एक दलित युवक ने चारपारा गांव से की थी। इस समुदाय के लोग बताते हैं कि रामनामी एक विराचधारा है। जब उनके पूर्वजों को मंदिर जानें से रोका गया, तो उन्होंने पूरे शरीर पर राम-राम गुदवाना शुरू कर दिया।

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रामनामी समुदाय के सदस्य

इस संप्रदाय में शरीर ही नहीं, घर, कपड़ों, चादर, गमछा और ओढ़नी समेत सब जगह राम-राम लिखने की परंपरा है। राम नाम के टैटू के अलावा रामनामी चादर ओढ़ना, सिर पर मोरपंख की पगड़ी और घुंघरू धारण करना इस समुदाय की खास पहचान है।

रामनामी समुदाय में नहीं होता अंतिम संस्कार

रामनामी समाज के महामंत्री, गुलाराम सतनामी ने बताया कि ‘हमारे समुदाय में मौत के बाद अंतिम संस्कार करने की प्रथा नहीं है। हमें जाति धर्म से कोई मतलब नहीं है। हम राम नाम को आग में नहीं जलाना चाहते। जब हमने इस दुनिया में जन्म नहीं लिया था, तो तब हम किस जाति के थे? हमारा मानना है कि सब एक हैं। हमारा मानना है कि सब राम है।’

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Published By : Sagar Singh

पब्लिश्ड 25 January 2024 at 17:34 IST