अपडेटेड 14 July 2023 at 13:53 IST

'करवा चौथ के चांद' से 'ईद के चांद तक'... जिसका अध्ययन करना चाहता है चंद्रयान-3, उसका क्या है धार्मिक महत्व

चांद सबके लिए कौतुहल का सबब है। इसका धार्मिक महत्व भी है। आइए जानते हैं।

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Mystery Moon:  सुहागनों को जब अपना व्रत तोड़ना हो तो चांद देखती हैं, ज्योतिषीय गणना में भी इस सेलेस्टियल बॉडी की अहम भूमिका है। हमारे व्रत त्योहार भी चंद्रमा के उगने और डूबने के साथ तय किए जाते हैं। दिन-रात, महीना-साल सब कुछ तो वो आसमान वाला चमकदार नैचुरल सैटेलाइट ही तय करता है। क्यों है वो इतना Important आइए समझते हैं।

करवा चौथ हो या फिर गणेश चौथ- सुहागनों के लिए चंद्रमा का खास महत्व होता। दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद मुंह में जल डालती हैं तो चंद्रमा को देखने के बाद ही। आखिर ऐसा क्यों है? हमारे वेद पुराणों में भी इसका जिक्र है। कई कहानियां है करवा चौथ को लेकर। जिनमें से एक देवता बनाम दानवों को लेकर भी है।

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करवा चौथ पर चांद को अर्घ्य

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को हर वर्ष करवा चौथ मनाया जाता है। सुहागिनें दिन भर कुछ नहीं खाती पीतीं फिर शाम को चांद का इंतजार करती हैं। एक कथा के मुताबिक ब्रह्माजी के कहने पर इस व्रत की शुरुआत हुई और सबसे पहले देवों के राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रखा। कथा कुछ यूं है कि एक बार देवताओं और दानवों में भयंकर युद्ध हुआ।

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देवों को लगा को वो दानवों से चित्त हो जाएंगे। सभी हाथ जोड़कर ब्रह्माजी की शरण में पहुंचे। उनसे उपाय पूछा। तब सृष्टि रचयिता ने कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ (Karwa Chouth) है। इस दिन सभी देवताओं की पत्नियां करवा चौथ का व्रत करें तो उन्हे अखंण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर सभी देवाताओं की पत्नियों ने व्रत रखा भी और चंद्रमा को पूजा। 

चंद्रमा को क्यों?

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मान्यता है कि मान्यता है कि चंद्रमा ब्रह्मा जी का रूप है। चंद्रमा सुंदरता और प्रेम का भी प्रतीक है। अब अगर सब कुछ कनेक्ट करें तो समझ में आ जाता है कि चंदा मामा क्यों पूजे जाते हैं। चूंकि ब्रह्म ज्ञान था और उनका आशीर्वाद जरूरी था इसलिए  सम्मान स्वरूप उनकी पूजा देव पत्नियों ने की और फिर उसी परम्परा को अब तक सुहागिनें बनाए रखे हैं।  

ज्योतिष क्या कहता है

ज्योतिष भी चंद्रमा को अहम ग्रह की तरह डील करता है। Astrology में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है। जिस पर मेहरबान हो उसे ऐश्वर्य और सुख समृद्धि से कभी दूर नहीं रहना पड़ता।  कुंडली भी चंद्रमा की दशा के अनुसार ही बनती है। जिस भाव में चंद्रमा होता है, उसी के अनुसार जातक की चंद्र राशि बनती है। 

पुराणों में चंद्र उदय की कहानी

अग्नि पुराण की कहानी मानस पुत्रों से जुड़ी है। इसके अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि को रचा तो सबसे पहले मानस पुत्रों को बनाया। उनमें से एक ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ और उनसे चंद्रमा संतान के रूप में उत्पन्न हुए।

पद्म पुराण में भी एक कथा है। इसके मुताबिक ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी । जिसके बाद महर्षि अत्रि ने एक तप प्रारंभ किया। तप काल में ही एक दिन महर्षि के आंखो से जल की कुछ बूंदें गिरी जिनमें प्रकाश ही प्रकाश था। तब दिशाओं ने स्त्री रूप में आ पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया। लेकिन उन बूंदों को दिशाएं धारण न रख सकीं और त्याग दिया।  त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने चंद्रमा का नाम दिया।

वहीं, स्कन्द पुराण कहता है कि देवों और असुरों ने मिलकर जब सागर मंथन किया तब चौदह रत्न निकले थे। चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक है। 

ईद का चांद

इस्लाम में भी चांद अहमियत रखता है।  सभी त्योहारों से पहले चांद को देखे जाने का रिवाज है। ईदुल फितर, रमजान, ईदुज्जुहा और मुहर्रम जैसे अहम इवेन्ट्स पर चांद देखकर ही रस्में निभाने की परम्परा है। इसकी शुरुआत 622 हिजरी से बताई जाती है। तब जब पैगम्बर मोहम्मद साहब ने मक्का से मदीना की ओर रुख किया था। जिसे हिज्र कहते हैं इस शब्द से ही बना हिजरी कैलेंडर। इस्लामिक कलेंडर में चंद्रमा अहम है। अमावस्या इस  कैलेंडर का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें 12 महीने होते हैं और प्रत्येक 29 या 30 दिन का होता है।

एक और प्रचलित मान्यता है कि चूंकि इस्लाम अरब में उभरा। रेगिस्तान का इलाका। दिन भयंकर तपिश वाले होते थे। इस वजह से व्यापारी रात को यात्रा पर निकलते थे। उस दौरान चंद्रमा नेविगेशन का काम करता था। सो आगे चलकर इसे फिलॉसफी और धर्म से जोड़कर देखा जाने लगा। यानि चंद्रमा जीवन पथ पर ईश्वर के मार्गदर्शन का प्रतिनिधित्व करता सा प्रतीत हुआ।

इस्लाम अरब में उभरा जहां रेगिस्तानी व्यापार मार्गों पर यात्रा ज्यादातर रात में होती थी, और नेविगेशन चंद्रमा और सितारों की स्थिति पर निर्भर करता था। अमावस्या मुस्लिम कैलेंडर का भी प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें 12 महीने होते हैं और प्रत्येक 29 या 30 दिन का होता है।

वैज्ञानिकों के लिए चंद्रमा इंट्रेस्टिंग

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 चंद्रमा पर वातावरण नहीं है इसलिए वहां की सतह पर सौरमंडल की शुरुआत के सारे प्रमाण ज्यों के त्यों मौजूद हैं, जैसे नील ऑर्मस्ट्रॉन्ग के जूतों के निशान। ये इंट्रेस्टिंग फैक्ट है। अगर वैज्ञानिक चंद्रमा की सतह का अध्ययन कर पाएंगे तो सोलर सिस्टम की उत्पत्ति के बारे में शायद पता लगा पाएंगे। इसके अलावा चंद्रमा पर पृथ्वी और शुक्र इत्यादि ग्रहों की तरह टेक्टॉनिक ऐक्टिविटी नहीं होती जिसकी वजह से चंद्रमा की इंटरनल फॉरमेशन, इसकी उत्पत्ति के समय से वैसी ही है, इसमें किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। ऐसे में इसका अध्ययन करके वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि ग्रहों की आंतरिक संरचना बनी तो बनी कैसे? 

कहा ये भी जा रहा है कि इससे डीप-स्पेस स्टडी करने में मदद मिलेगी। सबसे अहम बात चांद पर इंसान की रिहाइश की संभावना की तलाश। नासा और इसरो ने चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर बर्फ की खोज की जिसने आने वाले समय में मनुष्य के लिए चंद्रमा पर रिहायश की एक उम्मीद जगाते हैं।

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Published By : Kiran Rai

पब्लिश्ड 14 July 2023 at 13:53 IST